कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं
कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं
कि इस दुनिया में तुमको हम से बेहतर कौन समझेगा
हमीं इक हैं तुम्हारे साथ जो हर हाल में ख़ुश हैं
नहीं तो इस ज़रा सी छाँव को घर कौन समझेगा
बग़ीचा बाग़वाँ की याद में दिन-रात रोता है
मेरे पेड़ों को अब बेटों से बढ़कर कौन समझेगा
हया है शोखियाँ हैं और पलकों में शरारत है
कि इस इन्सान-सी मूरत को पैकर कौन समझेगा
ज़रा ज़ुर्रत तो देखो चाँद को महबूब कहता है
कि इस मुहज़ोर दीवाने को शायर कौन समझेगा
कोई तो है जो मुझको भीड़ में पहचान लेता है
सिवा उसके मुझे औरों से हटकर कौन समझेगा
उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते
उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते
सरे बाज़ार हम रुसवा हुए बाज़ार के चलते
तेरे रहमोकरम पे जो अंधेरे तलघरों में थे
यक़ीनन रोशनी में आ गए अख़बार के चलते
ज़मीनी साज़िशों के और ऊपर की सियासत के
मुसलसल बीच में पिसते रहे घर-बार के चलते
ग़लत रस्ते में हो तुम और हम अपनी जगह पे हैं
बुज़ुर्गों की दिखाई रोशनी की धार के चलते
आए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ
आए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ
रुदादे-सफ़र[1] पूछ मगर रास्ता न पूछ
गर हो सके तो देख ये पाँवों के आबले[2]
सहरा कहाँ था और कहाँ ज़लज़ला न पूछ
वाँ[3] से चले हैं जबसे मुसलसल[4] नशे में है
ले जाए किस दयार में हमको नशा न पूछ
वाक़िफ़ नहीं है इश्क़ की पेचीदगी से तू
है ये शुरू कहाँ से कहाँ पे सिरा न पूछ
मौसम गए सुकून गया ज़िन्दगी गई
दीवानगी की आग में क्या-क्या गया न पूछ
किसकी तलाश कैसी हम्द कैसी बन्दगी
है धूप में कि छाँव में मेरा ख़ुदा न पूछ
जब वो नज़र के बीच जले है चराग़-सा
ख़्वाहिश न कोई पूछ कोई इल्तिजा न पूछ
शब्दार्थ
- ऊपर जायें↑ यात्रा की कहानी
- ऊपर जायें↑ छाले
- ऊपर जायें↑ वहाँ
- ऊपर जायें↑ निरंतर
हमारी आग को पानी करोगे
हमारी आग को पानी करोगे
दिली रिश्तों को बेमानी करोगे
हमें ऐसी न थी उम्मीद तुमसे
कि तुम इतनी भी नादानी करोगे
यक़ीनन आँधियों से मिल गए हो
दिये के साथ मनमानी करोगे
हया, ईमां, वफ़ा सब ख़त्म कर दी
बचा क्या है कि क़ु
र्बानी करोगे
ख़ुदा से आदमी बनकर दिखाओ
तो बन्दों पर मेहरबानी करोगे