नदी
जिसने चाहा किया उसी ने
पार नदी को।
पूजा-उत्सव
सभी व्यवस्था
पहले जैसी
दान-दक्षिणा
सन्त-भक्त
गणिकाएँ विदुषी
युगों युगों से
रहे निरन्तर तार नदी को।
सभी कुशल तैराक
नहीं होते
नायक ही
विजयी होने की
उनकी इच्छाएँ
सतही
कभी न भाया
यह दैहिक व्यापार नदी को।
सहमति वाली नाव
असहमति वाले
पुल से
बालू के विस्तार
और
मटमैले जल से
समय दे रहा है
अजीब आकार नदी को।
इच्छा
वर्जित फल खाने की इच्छा
घने वनों तक ले आई।
शान्त महानद
क्रुद्ध लहर के कारण
सीमा तोड़ गया
अपने पीछे केवल
आँसू भरी कथाएँ
छोड़ गया
सागर हथियाने की इच्छा
रेत कणों तक ले आई।
निर्वासन का शाप
झेलते
कितने ही युग बीत गए
है अभियोग पुराना
लेकिन
अभियोजक हैं नए-नए
हर्षद पल पाने की इच्छा
दुखद क्षणों तक ले आई।
गई देह की आग
बची मिट्टी
पथराकर ठोस हुई
समय ज़िन्दगी यूँ धुनता है
जैसे धुनिया
धुने रुई
भीष्म कहे जाने की इच्छा
कठिन प्रणों तक ले आई।
ठंडी ठंडी फुहार चेहरे पर
ठंडी ठंडी फुहार चेहरे पर
आ गयी है बहार चेहरे पर
एक संदेह सर उठता है ,
रंग आये हजार चेहरे पर !
झुर्रिया चादर है फूलो की ,
बन गयी एक मजार चेहरे पर
लाश पाई गयी सुधारो की,
दाग थे बेशुमार चेहरे पर!
आज गम्भीर लिख ही डालेगा ,
अपने सारे विचार चेहरे पर !
ये शौक क्या कि पहले कोई गम तलाशिए
ये शौक क्या कि पहले कोई गम तलाशिये,
फिर ज़ख्मे दिल के वास्ते मलहम तलाशिये!
फसले तबाह करता है रोना फिजूल का,
रोना है गर तो बढियाँ सा मौसम तलाशिये!
साया भी अपना साथ नहीं देता है सदा,
कैसे कहूँ मैं आपसे हमदम तलाशिये !
इंसानियत का कुम्भ लगे जिसके तट के पास,
रोटी का भूख से वही संगम तलाशिये!
बदलाव के जुलूस से मत दूर भागिए,
आते हुए ज़माने का परचम तलाशिये!
किसके लहू का जोश शहर कि रंगों में है,
आखें हैं आज गाँव कि क्यों नम, तलाशिये!