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पद / 1

एहो ब्रजराज कत बैठे हौ निकुंज माँहि,
कीन्हों तुम मान ताकी सुधि कछु पाई है।
ताते वृषभानुजा सिंगार साजि नीकी भाँति,
सखियाँ सयानी संग लेय सुखदाई है॥
‘चन्द्रकला’ लाल अवलोको और मारग की,
भारी भय-दायिनी अपार भीर छाई है।
रावरो गुमान अति बल अति भट मानि,
जोबन को फौज लैके मारिबे को धाई है॥

पद / 2 

नेकौ एक केश की न समता सुकेशी लहै,
नैनन के आगे लागै कमल रुमाली।
तिल सी तिलोत्तमाहू रति हू सी लगे,
समनुख ठाढ़ रहै लाल हित लालची॥
‘चन्द्रकला’ दान आगे दीन कल्पवृक्ष लागै,
वैभव के आगे लागे इन्द्रहू कुदालची।
धन्य धन्य राधे बृषभानु की दुलारी तोहिं,
जाके रूप आगे लगे चन्द्रमा मसालची॥

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