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बस्ता

बस्ते में बच्चे रख रहे हैं
ताज़ा उगी सुबह की धूप का टुकड़ा
जैसे वे अपनी किताबों को
किसी अदृश्य अधेरे से बचाना चाहते हैं
वैसे, किताबों के बारे में
सबसे ज्यादा जानकारी है बस्ते के पास
उसे ही पता है किताबों में छपे हर अक्षर का
सही-सही वजन
बस्ता सबसे ज्यादा नजदीक होता है
किताबों की गम्भीर ऊष्मा के
वही पहचानता है ठीक-ठीक
पीठ के पसीने और बांसी कागज़ की
मिली-जुली विशिष्ट गन्ध
उसी ने सबसे ज्यादा बचाया है साहित्य को
गीला कर देने वाली बारिश और तेज धूप से
तुलसी, शेक्सपियर और मिल्टन की लगभग एक साथ
बस्ते को ही सबसे अधिक चिंता है
नाजुक पीठ और मासूम दिमाग पर पड़ रहे बोझ की

हम यहाँ बैठे इतने जटिल रूपक तलाश रहे हैं
उधर बहुत खुश है बस्ता
बच्चे उसके अन्दर रंगीन पत्थर, कंचे
और काग़ज़ के हवाई जहाज रख रहे हैं
वे उसे एक संग्रहालय बनाने की कोशिश में हैं।

जतिन मेहता एम ए

जतिन मेहता एम ए

जतिन मेहता एम ए

जतिन मेहता एम ए
अपने ऍंधेरे कमरे में
पीली रोशनी से भरा कोई काग़ज़ पढ़ रहा है
और उससे थोड़ी दूर दीवार पर
एक अधेड़ मकड़ी पूरी मेहनत से
इतिहास का सघनतम जाला बुन रही है

अभी-अभी कमरे की खिड़की पर
पंखों पर गहरे कत्थई दाग़ वाली
एक तितली आकर बैठ गई है
वह किसी पेट्रोल कम्पनी के
लुभावने विज्ञापन से भाग आई है
जिसे समूचे विश्व के अधिनायक द्वारा दिये
शान्ति-सन्देश के बाद दिखाया जा रहा था
खबरें बता रही हैं
ठीक अभी कुछ समय पहले
बसरा के किसी उपनगर में
मार दिये गये हैं कुछ अनाम लोग

बाहर मुहल्ले की संकरी गली में
कोई पुराने हारमोनियम पर
किसी मर्सिए के पहले टुकड़े जैसी
भारी और उदास धुन बजाने की कोशिश में है
और दूर अहमदाबाद की किसी निचली अदालत में
सहमी हुई कोई लड़की अपना बयान बदल रही है
अपनी फीकी और बदरंग ओढ़नी में
न्याय के नाम पर समेट रही है
गीला और साँवला दु:ख

पीली रोशनी से भरा हुआ यह काग़ज़
शोक-प्रस्ताव जैसा दिखने वाला एक सन्धि-पत्र है
आइए इसकी सयानी बारीकियों को समझें –
तुम तो ब्रेष्ट और नेरुदा को समझते हो जतिन
इस काग़ज़ को किसी रूखे शासनादेश की तरह नहीं
किसी मोनोग्राफ या निबन्ध की तरह
पूरी सहजता और भरोसे के साथ पढ़ो
पढ़ो और समझो कि हमने गढ़ा है
निर्ममता का सम्भ्रान्त शिल्प
लोगों के मर जाने के पीछे हमने
सुलझे हुए और गहरे वैज्ञानिक तर्क दिये हैं
तुम्हें सबकुछ दिखाया है सजीले माध्यमों के जरिये
तो यह सारा कुछ गम्भीरता से देखो
और बस यहीं
मार्मिक होने से पहले कृपया थोड़ा रुको
दुखी होने से पहले
अपने शोक और विषाद की मात्रा को
बाज़ार जैसी ज़रूरी व्यवस्था को तय करने दो

जतिन मेहता एम ए
पीली रोशनी से भरे काग़ज़ को
गुलाबी चिट्ठियों के बीच सम्भालकर रख रहा है
उसे पढ़ने लिखने मे मुश्किल हो रही है अब

मुन्नू मिसिर का आलाप

बहुत पक्का गला है मुन्नू मिसिर का
अद्भुत गाते हैं मुन्नू मिसिर
फिर भी भव्य सभाओं में नहीं जाते मुन्नू मिसिर
कहीं किसी किताब में नहीं छपा है उनका नाम
उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं

अयोध्या के नये घाट पर गली जैसा कुछ
गली जैसे कुछ में मोड़ जैसा कुछ
मोड़ जैसे कुछ पर पीपल एक पुराना
वहीं कुछ-कुछ घर जैसा
और भीतर झुलनी खटिया पर मुन्नू मिसिर

छोटी कोठरी में फैला मुन्नू मिसिर का अथाह एकान्त
बातें करता रहता उनके तरल अंधेरे से
जब बहुत कम कुछ याद रहता है मुन्नू मिसिर को
जैसे वे भूल जाते हैं कि वे शाकद्वीपीय हैं या सरयूपारीण
या फिर कितने साल हुए उन्हें रिटायर हुए

तब उनसे ज्यादा दु:ख सामनेवाले को होता है
कभी-कभी याद आ जाता है उन्हें कोई विचलित राग
कोठरी के अंधेरे में तब टिमटिमाता है
उनके बुजुर्ग गले का सुर
चारपाई का सरकता ढीला निवाड़
डगमगाता है एक प्राचीन हारमोनियम
सीली कोठरी में सन्न-सन्न हवा दु्रत
सांवली बिटिया बारती है एक अरूणाभ ढिबरी
रौशनी को परनाम कर आलाप लेते हैं मुन्नू मिसिर
साधते हैं एक साथ सुर और अपनी चिरन्तन खांसी को
शहर के उदास पीलेपन को मुग्ध करता है
उनका खरखराता सधा गला
गाना धीमे से शामिल होता है दुनिया में
दुनिया से अचानक थोड़ा दूर जाते हैं मुन्नू मिसिर
वे अपने दुखों से दूर जाते हैं इस तरह

अपने सुरों की नाव पर चढ़ वे घूम आते हैं नदी पार
कभी उनके साथ होते हवा में शामिल
तैरते रहते तमाम प्रतिबन्धित जगहों के ऊपर
कभी दुबक जाते किसी जीर्ण प्राचीन खिड़की पर
कान लगाकर सुनते उसकी जर्जर कुण्डी का संगीत
फिर वे जाते टेढ़ी बाज़ार अपने सुरों के साथ समोसा खाने
कहकहे लगाते उनके कन्धों पर रखकर हाथ
थककर लौटते अंतत: अपनी उसी संकरी गली में
विलम्बित आलाप में याद करते जीवन का अवरोह
नष्ट छन्द नष्ट गद्य नष्ट संगीत
जीवन एक बहदहवास भौंरे की चीख जितना शोर
जीवन डूबती झलमल झपल रौशनी

अचानक खांस पड़ते हैं मुन्नू मिसिर
हारमोनियम के कोने से छिल जाती है कुहनी
एक ताज़ा दर्द सम्मिलित होता है
मुन्नू मिसिर के आलाप में

डाल्टनगंज के मुसलमान 

कोई बड़ा शहर नहीं डाल्टनगंज
बिल्कुल आम क़स्बों जैसी जगह
जहाँ बूढ़े अलग-अलग किस्मों से खाँसकर
ज़िन्दगी का क़ाफिया और तवाज़ुन सम्भालते हैं
और लड़के करते है। ताज़ा भीगी मसो ंके जोश में
हर दुनियावी मसले को तोलने की कोशिश
छतों के बराबर सटे छज्जों में
यहाँ भी कच्चा और आदिम प्रेम पनपता हैं
सुस्ताये प्रेम को संवाद की ऊर्जा बख़्शते

डाल्टनगंज के जीवन में इस तरह कुछ भी नया नहीं है
यहाँ भी कभी-कभी
समय काटने के लिए लोग रस्मी तौर पर
अच्छे और पुराने इतिहास को याद कर लेते हैं

इन सारी बासी और ठहरी चीजों के जमाव के बावजूद
डाल्टनगंज के बारे में जानने लगे हैं लोग
अख़बार आने लगा है डॉल्टनगंज में
डाल्टनगंज में आने लगी हैं ख़बरें
आखि़रकार लोग जान गये हैं
पास के क़स्बों में मारे जा रहे हैं लोग
डाल्टनगंज का मुसलमान
सहमकर उठता है अज़ान के लिए
अपनी घबराहट में
बन्दगी की तरतीब और अदायगी के सलीकों में
अक्सर के बैठता है ग़लतियाँ
डाल्टनगंज के मुसलमान
सपने में देखते हैं कबीर
जो समय की खुरदरी स्लेट पर
कोई आसान शब्द लिखना चाहते हैं
तुम मदरसे क्यों नहीं गये कबीर
तुमने लिखना क्यों नहीं सीखा कबीर
हर काई बुदबुदाता है अपने सपनों में बार-बार
क़स्बे के सुनसान कोनों में
डाल्टनगंज के मुसलमान
सहमी और काँपती हुई आवाज़ में
खु़शहाली की कोई परम्परागत दुआ पढ़ते हैं
डाल्टनगांज के आसमान से
अचानक और चुपचाप
अलिफ़ गिरता है

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