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प्रथमपतिगृहानुभवम्

प्रथमपतिगृहानुभवम्
हे सखि पतिगृहगमनं
प्रथमसुखदमपि किंत्वतिक्लिष्टं री।
परितो नूतन वातावरणे
वासम् कार्यविशिष्टं री।।
वदने सति अवरुद्धति कण्ठं
दिवसे अवगुण्ठनमाकण्ठं।
केवलमार्य त्यक्त्वा तत्र
किंञ्चिदपि मया न दृष्टं री।।
वंश पुरातन प्रथानुसरणं
नित्यं मर्यादितमाचरणं।
परिजन सकल भिन्न निर्देश पालने
प्रभवति कष्टं री।।
भर्तुर्पितरौ भगिनी भ्राता
खलु प्रत्येकः क्लेश विधाता।
सहसा प्रियतममुखं विलोक्य तु
सर्वं कष्ट विनिष्टं री।।
अभवत् कठिनं दिवावसानम्
बहु प्रतीक्षितं रजन्यागमनम्।
लज्जया किञ्च कथं कथयानि
विशिष्ट प्रणयपरिशिष्टं री।।

सौन्दर्यँ दशर्नम् 

वैभवं कामये न धनं कामये
केवलं कामिनी दर्शनं कामये
सृष्टि कार्येण तुष्टोस्म्यहं यद्यपि
चापि सौन्दर्य संवर्धनं कामये।
रेलयाने स्थिता उच्च शयनासने
मुक्त केशांगना अस्त व्यस्तासने
शोभिता तत्र सर्वांग आन्दोलिता
अनवरत यान परिचालनं कामये।
सैव मिलिता सड़क परिवहन वाहने
पंक्ति बद्धाः वयं यात्रि संमर्दने
मम समक्षे स्थिता श्रोणि वक्षोन्नता
अप्रयासांग स्पर्शनं कामये।
सैव दृष्टा मया अद्य नद्यास्तटे
सा जलान्निर्गता भाति क्लेदित पटे
दृशयते यादृशा शाटिकालिंगिता
तादृशम् एव आलिंगनं कामये।
एकदा मध्य नगरे स्थिते उपवने
अर्धकेशामपश्यम् लता मण्डपे
आंग्ल शवानेन सह खेलयन्ती तदा
अहमपि श्वानवत् क्रीडनं कामये।
नित्य पश्याम्यहं हाटके परिभ्रमन्
तां लिपिष्टकाधरोष्ठी कटाक्ष चालयन्
अतिमनोहारिणीं मारुति गामिनीम्
अंग प्रत्यंग आघातनं कामये।
स्कूटी यानेन गच्छति स्वकार्यालयं
अस्ति मार्गे वृहद् गत्यवरोधकम्
दृश्यते कूर्दयन् वक्ष पक्षी द्वयं
पथिषु सर्वत्र अवरोधकम् कामये।

संस्कृत हाइकु


अपमानित
सर्वदा क: देवता?
पति देवता।

पत्नी समक्षे
अहर्निशं पतति
कथ्यत् पति:।

ददाति सदा
आचरेण रोटिका:
सदाचारिणी।

अरुचिपूर्ण:
केवल सुदर्शन:
स्वरुचि भोज:।

या निज पति
व्रत कारयति-सा
पतिव्रतास्ति।

संस्कृत से हिंदी में अनुवाद स्वयं कवि के द्वारा

अपमानित
सदा कौन देवता?
पति देवता।

पत्नी सामने
बार-बार पतित
होता है पति।

खिलाती सदा
अचार से रोटियाँ
सदाचारिणी।

अरुचिपूर्ण
देखने में सुंदर
स्वरुचि भोज।

पति को रोज़
व्रत कराती वह
पतिव्रता है।

होशंगाबाद- वैशिष्ट्यम 

रे मन वसतु होशंगाबादे।
समय-विशिष्टं न तु कुरू नष्टं, व्यर्थे वाद-विवादे।

कृपया महादेव शिव-जाता, बहति नर्मदा माता।
संता: दृष्टा: कवय: व्यस्ता:, भगवद् गुणानुवादे।।

तापहरं सेठानी घट्टं, वाराणसी-सदृष्यं।
सुखं वर्धयति शमयति क्लेशं विहरतु हर्ष विषादे।।

मंदिरेषु जप पूजनार्चनम्, यज्ञ हवन व्रत दानम्।
परम् विशुद्धं वातावरणं, घंटा शंख निनादे।।

चतुर्पथास्तु सन्ति संसारे, सप्तपथोस्मिन्नगरे।
चयनतु सरल यथेष्टं मार्गं, चलतु बिना उन्मादे।।

अत्र स्थितं प्रकाकोद्योगं, रचयति रूप्यक-पत्रम्।
कर्मकरास्त्वागता: सर्वत:, संमिलयन्त्याल्हादे।।

रेवा बंध हेतु आयातौ, भीमेन सुगिरि खण्डौ।
संरक्षित इतिहासं उदरे, भवत: लुप्त प्रमादे।।

संत स्थितो रामजी बाबा, सअसंपृक्त समाधौ।
आप्तकाम भव भक्त समूह:, प्रमुदति प्राप्त प्रसादे।।

बान्द्राभानं तीर्थ पवित्रं, पश्यतु तवा संगमम्।
प्रति वर्षे सम्मिलति मेलक:, विंध्याचल आच्छादे।।

रे मन! वसतु होशंगाबादे…

संस्कृत-लोकगीतम्।

प्रेषितं न किञ्चित् सन्देशम्
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।

खण्डितं तु सप्तपञ्च वचनानुबन्धं
कस्यचिदागच्छति षडयन्त्रस्यगन्धं ।
दृश्यते ह्रदि अपरा प्रवेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।

रोचते न तेन बिना शुष्क शुष्क दिवसः
निशा भवति भयावहा क्रमश;क्रमशः
कष्टकरं सर्वं परिवेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।

श्रूयते तु अहर्निशं स्वासुः अपशब्दं
दैनिकोपियोगि वस्तु अस्ति नोपलब्धं
रोचते न स्वशुरोपदेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।

वैरी प्रत्यागतॊ न भवति एक-मासः
आगतं न पत्रं न कृतं दूरभाषः
प्रेषितं च नैव धनादेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।

न जानेप्यहं तेन त्यक्ता किमर्थम्
अधुनाहं थकितास्मि पथ दर्शं-दर्शं
किमर्थं ददाति ह्रदय क्लेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।

संस्कृत मातु: आरती

ॐ जय संस्कृत मातः देवि! जय संस्कृत मातः
नित्यं वयं भजामः त्वां सायं प्रातः।।ॐ जय….

देवास्तव महिमानं सर्व गीतवन्तः।
कालिदास वाल्मीकिः व्यासादिक सन्ताः।।ॐ जय …..

पाणिनि कात्यायिन पतञ्जलिः मुनि सेवित चरणा।
सन्धि समासालंकृता त्रयष्षष्ठि वर्णा।।ॐ जय ….

प्रत्ययोपसर्गावृत शोभितांगवस्त्रैः।
नश्यति तिमिरान्धत्वं षट्कारक शस्त्रैः।।ॐ जय ….

त्वं सद् ज्ञान स्वरूपा त्वं भारत धात्री।
कामधेनुरिव मातः सत्पदार्थ दात्री।।ॐ जय ….

यस्त्वामाराधयते किल पवित्र मनसा।
लभते फलमभीप्सितं कर्मणा च वचसा।।ॐ जय …

ॐ प्रणवस्य प्रभावं येनाप्यनुभूतम् ।
अमृत पदमाप्नोति न पश्यति यमदूतम्।।ॐ जय ….

गायति नित्यगोपालः तव ध्यानं कृत्वा।
अहर्निशं सेविष्ये जित्वाऽपि च मृत्वा।।ॐ जय …

रजनी व्यतीता

रजनी व्यतीता
भवने सभीता .।

एकाकिनी गृहे गहनान्धकारे
मग्नाहमासम् क्लेशे अपारे
निद्रां न नीता .।
रजनी व्यतीता ।।

कामेन मुग्धा विरहाग्नि दग्धा
रात्रिर्समस्ता शान्तिर्न लब्धा
नयनाश्रु पीता।
रजनी व्यतीता ।।

आगतो न कन्तः आगतो बसन्तः
मम वेदनायाः दृश्यते न अन्तः
युवता अतीता ।
रजनी व्यतीता।।

नर्मदा स्तुतिः

आगच्छन्तु नर्मदा तीरे ।
कलकल कलिलं प्रवहति सलिलं
कुरु आचमनं सुधी रे ।

दृष्टा तट सौन्दर्यमनुपमं अवगाहन्तु सुनीरे
सद्यः स्नात्वा जलं पिबन्तु वसति न रोगः शरीरे ।।
आगच्छन्तु नर्मदा तीरे ।

मन्त्रोच्चरितं ज्वलितं दीपं घण्टा ध्वनि प्राचीरे ।
मुनि तपलग्नाः ध्यान निमग्नाः उत्तर दक्षिण तीरे ।।
आगच्छन्तु नर्मदा तीरे ।

बालः पीनः कटि कोपीनः जलयुत्पतति गंभीरे ।
जल यानान्युद्दोलयन्त्युपरि चपले चलित समीरे ।।
आगच्छन्तु नर्मदा तीरे ।

गुरुकुल बालाः पठन्ति वेदान् एकस्वरे गंभीरे ।
रक्षयन्ति नः संस्कृतिमार्यम् निवसन्तस्तु कुटीरे ।।
आगच्छन्तु नर्मदा तीरे ।

गजगामिनि /

गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।
हँससि किमर्थं त्वं माम दृष्ट्वा,
तिष्ठ क्षणं हे कामिनि ।

मार्गे चलसि सर्वतः पश्यसि,
हे घनविद्युद्दामिनि ।
खण्ड-खण्डितं पण्डित हृदयं
मम मन-अन्तर्यामिनि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।

स्वात्मानं पश्यन्त्यादर्शे,
लज्जास्मित-गौरांगिनि ।
अधोमुखी विलोकयसि धरणीं,
निजस्वरूप-अभिमानिनि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।

कथयसि कथं न किं कामयसे,
हे भावी-गृहस्वामिनि ।
शीघ्रं कुरु हर मम परितापं,
कामज्वर-अपहारिणि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।

हे लघु वस्त्रे हे नयनास्त्रे,
हे मम मनोविलासिनि ।
मा कुरु वक्र-दृष्टि-प्रक्षेपं
भो भो मारुति-वाहिनि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।

आगच्छ कृष्ण!

हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !
आगच्छ मामुद्धराऽहं मग्नोस्मि भवसागरे।।

अभवत्तु धर्मस्य ग्लानिः अधर्मस्य जातं प्रभुत्वम्।
खलु शास्त्रनीत्याश्च हानिः गतं संकटे मानवत्वम्।।
गीता स्वकथनानुसारेण आगच्छ नटनागर हे!
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !

स्वार्थाय मिथ्यात्र प्रीतिः अपूर्णाऽक्षमा दण्डनीतिः।
भ्रष्टाऽभवल्लोकरीतिः स्वैरंगता राजनीतिः ।।
आगच्छ हे चक्रपाणे! नीत्वा सुदर्शनं करे।।
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !

लुप्तं मधुर संगीतं बहु श्रूयते पाप गीतम्।
ननु दृश्यते नग्नतैव गतं क्व विशिष्टं अतीतम्।।
संस्थापनार्थं कलायाः आगच्छ मुरलीधर हे!
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !

दधि दुग्ध तक्राण्यपेयं दुश्चूषकं बालप्रेयं ।
पेप्सी द्रवं नंमधेयं सर्व प्रियं शितपेयं।।
पञ्चामृत प्रिय गोपालं नवनीत चौरं भजे।
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !

जयतु मध्यप्रदेशः

बुन्देलं च बघेलखण्डं निमाणं मालवादिनाम् ।
पवित्र भूमेर्जातः मध्यप्रदेशस्तु कथ्यते ।।

परमाति विशालोऽयं प्रदेशो मध्यभारतः ।
कृष्णा उर्वरा भूमिः युक्तो वन खनिज सम्पदाभिः ।।
बहन्ति नर्मदा चम्बल नद्यः वेत्रवत्यादयः ।
स्थितौ प्रहरी इवारण्यौ सतपुड़ा विन्ध्याचलौ ।।

भोजो विक्रमादित्यः अहिल्या दुर्गावती ।
आदर्शाः राजनयिकानां सत्य न्याय प्रजाप्रियाः
भोपालमस्य राजधानी वनखण्ड परिवेष्टिता ।
विविधाः सांस्कृतिक केन्द्राः इन्दौरे च जबलपुरे ।।

पचमढीव प्रकृति सौन्दर्यं खजुराहो इव कलाकृतिः ।
स्वर्गः पर्यटकानां कला सौन्दर्य ज्ञानिनाम् ।।
उज्जयिन्यां महाकालं सांची ओंकारेश्वरम् ।
मोक्षदः तीर्थ यात्रिभ्यः संमिलति कुम्भमेलकः ।।

माखनलाल चतुर्वेदी परसाई हरिशंकरः ।
भवानीप्रसाद मिश्रश्च भूमिः साहित्यधर्मिणाम् ।।
शिवराजसिंह चौहानः नेतृत्वे मुख्यमन्त्रिणः
विकासशीलः चाग्रसरः नित्यं उन्नति पथे ।।

आओ अब विचार करें

आओ अब विचार करें
सामने रखें दर्पण
सत्य को स्वीकार करें
गवाँ चुके काफ़ी समय
और न गँवाएँ अब
उलझी हुई समस्या को
और न उलझाएँ अब
मिल जुलकर बैठें सभी
खुद पर उपकार करें
आओ अब विचार करें ।

सड़ते हुए घावों को
कब तक ढक पाएँगे
गोलियों से कब तक अपना
दर्द हम भुलाएँगे
साहस से खोलें और
खुद से उपचार करें
आओ अब विचार करें ।

जाति भेद वर्ग भेद
धर्म भेद त्यागेँ अब
कूप मण्डूकता की
निद्रा से जागें हम
आदमी है‚ आदमी से
आदमी-सा प्यार करें
आओ अब विचार करें ।

शकनु के षड्यन्त्रो मे
दुर्योधन व्यस्त है
बुद्धिजीवी भीष्म सारे
जाने क्यों तटस्थ हैं
न्याय का समर्थन
अन्याय का प्रतिकार करें
आओ अब विचार करें ।

भारत की वैज्ञानिक
सुपरिष्कृत भाषाएँ
हतप्रभ कुपुत्रो की
सुनकर परिभाषाएँ
अँग्रेज़ी छोड़ें
मातृ भाषा से प्यार करें
आओ अब विचार करें ।

सारे मुखपृष्ठों पर
गुण्डों के भाषण हैँ
कुण्ठित प्रतिभावों पर
तम का अनुशासन है
तथ्यों को समझें
भ्रम का बहिष्कार करें ।।

आओ अब विचार करें ।

हिंसा 

हिंसा ही यदि लक्ष्य हो गया जिस मानव का
पाठ अहिंसा का क्या कभी समझ पाएगा
कर हिंसा स्वीकार अहिंसा व्रत का पालन
हिंसा का ही तो परिपोषण कहलाएगा।

हिंसा की पीड़ा का अनुभव जिसे नहीं है
वही व्यक्ति तो खुलकर हिंसा कर पाता है
हिंसक मूढ, अहिंसा की भाषा क्या जाने
अपनी ही भाषा में व्यक्ति समझ पाता है।

नहीं करूँगा हिंसा और न होने दूँगा
ऍसा सच्चा अहिंसार्थ व्रत लेना होगा
हिंसा के जरिए यदि हिंसा कम होती है
व्यापक अर्थ अहिंसा का अब लेना होगा।

आदमी होता चला गया

नफ़रत का भाव ज्यों ज्यों खोता चला गया
मैं रफ़्ता रफ़्ता आदमी होता चला गया ।

फिर हो गया मै प्यार की गंगा से तरबतर
गुज़रा जिधर से सबको भिगोता चला गया ।

सोचा हमेशा मुझसे किसी का बुरा न हो
नेकी हुई दरिया में डुबोता चला गया ।

कटुता की सुई लेके खड़े थे जो मेरे मीत
सद्भावना के फूल पिरोता चला गया ।

जितना सुना था उतना ज़माना बुरा नहीं
विश्वास अपने आप पर होता चला गया ।

अपने से ही बनती है बिगड़ती है ये दुनिया
मैं अपने मन के मैल को धोता चला गया ।

उपजाऊ दिल हैं बेहद मेरे शहर के लोग
हर दिल में बीज प्यार के बोता चला गया ।

सुख दुख इस जीवन में

मन से ही उत्पन्न हुए हैं
खो जाते हैं मन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

हो मन के अनुकूल
उसे ही सुख कहते हैं
मन से जो प्रतिकूल
उसे ही दुख कहते हैं
गमनागमन किया करते हैं
इच्छा के वाहन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

दूल्हे जैसा सर्व प्रतीक्षित
सुख आता है
अनचाहे मेहमान सरीखा
दुख जाता है
एक गया तो दूजा आया
पड़ें न उलझन में

सुख फूलों सा मनमोहक
सुन्दर दिखता है
फिर दुख आता हे तो
काँटों सा चुभता है
एक हँसाता एक रुलाता
क्रमशः मन के वन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

दोनों का ही कुछ स्वतन्त्र
अस्तित्व नहीं है
और किसी का कुछ भी
स्थायित्व नहीं है
दुख भोगा सुख की तलाश में
मिला न तन धन में
आते हैं जाते हैं
सुख दुख इस जीवन में ।

जल ही जीवन है

जल ही जीवन है
जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।

शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस
गन्ध रहित युत शब्द रूप रस
निराकार जल ठोस गैस द्रव
त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस
सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

भूतल में जल सागर गहरा
पर्वत पर हिम बनकर ठहरा
बन कर मेघ वायु मण्डल में
घूम घूम कर देता पहरा
पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

नदी नहर नल झील सरोवर
वापी कूप कुण्ड नद निर्झर
सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का
कल-कल ध्वनि संगीत मनोहर
जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

बादल अमृत-सा जल लाता
अपने घर आँगन बरसाता
करते नहीं संग्रहण उसका
तब बह॰बहकर प्रलय मचाता
त्राहि-त्राहि करता फिरता, कितना मूरख मन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।

धरती माता

धन्य-धन्य हे धरती माता
तुमसे ही जग जीवन पाता ।
धन्य-धन्य हे धरती माता ।।

पृथिवी धरणी अवनि भू धरा
भूमि रत्नगर्भा वसुन्धरा
गन्धवती क्षिति शस्य श्यामला
जननी विविध नाम विख्याता ।
धन्य-धन्य हे धरती माता ।।

अन्न पुष्प फल वृक्ष मनोहर
सरित सरोवर सागर निर्झर
स्वर्ग छोड़ करके ईश्वर भी
तेरी ही गोदी में आता ।
धन्य-धन्य हे धरती माता ।।

जल पावक समीर आकाशा
गन्ध रूप रस शब्द स्पर्शा
सब पदार्थ तेरे आँचल में
जो जन जो चाहे पा जाता ।
धन्य-धन्य हे धरती माता ।।

देख प्रकृति की ओर

देख प्रकृति की ओर
मन रे! देख प्रकृति की ओर ।
क्यों दिखती कुम्हलाई संध्या
क्यों उदास है भोर
देख प्रकृति की ओर ।

वायु प्रदूषित नभ मंडल
दूषित नदियों का पानी
क्यों विनाश आमंत्रित करता है मानव अभिमानी
अंतरिक्ष व्याकुल-सा दिखता
बढ़ा अनर्गल शोर
देख प्रकृति की ओर ।

कहाँ गए आरण्यक लिखने वाले
मुनि संन्यासी
जंगल में मंगल करते
वे वन्यपशु वनवासी
वन्यपशु नगरों में भटके
वन में डाकू चोर
देख प्रकृति की ओर ।

निर्मल जल में औद्योगिक मल
बिल्कुल नहीं बहायें
हम सब अपने जन्मदिवस पर
एक-एक पेड़ लगाएँ
पर्यावरण सुरक्षित करने
पालें नियम कठोर
देख प्रकृति की ओर ।

जैसे स्वस्थ त्वचा से आवृत
रहे शरीर सुरक्षित
वैसे पर्यावरण सृष्टि में
सब प्राणी संरक्षित
क्षिति जल पावक गगन वायु में
रहे शांति चहुँ ओर
देख प्रकृति की ओर ।

प्रेमिका और पर्यवेक्षक

प्रेमी की प्रतीक्षा में
प्रेमिका के तीन मिनिट
परीक्षा हाल में पर्यवेक्षक के तीन घन्टे,
बराबर होते हैं तीन युगों के,
दोनों ही बेचैन, हैरान, परेशान,
घबराता दिल, आफत में जान,

दोनों ही अस्त, व्यस्त, त्रस्त,
बिना काम के अति व्यस्त,

बाहर शान्ति, मन में अशान्ति,
दोनों को अति-महत्वपूर्ण होने की भ्रान्ति,
किंकर्तव्य विमूढ, स्थिति शोचनीय,
काम पूरा का पूरा अत्यन्त गोपनीय,

रहते हैं बेकरार
प्रेमिका मिलने को,
पर्यवेक्षक बिछुड़ने को,
कान खड़े, चौकन्नी आँखें
लगाते चक्कर, अगल॰बगल ताकें,
गंभीर मुद्रा, निष्ठुरता का प्रयास
अज्ञात भय, परस्पर अविश्वास,

चिन्ता होती है :
प्रेमिका को आने वाले कल की
पर्यवेक्षक को नकल की,

बुरा लगता है :
प्रेमिका को चालू रस्ता
पर्यवेक्षक को उड़न दस्ता,

बहुत सताती है :
प्रेमिका को तन्हाई
पर्यवेक्षक को जम्हाई,

डर लगता है :
प्रेमिका को अपने भाई से
पर्यवेक्षक को डी० पी० आई० से,

शिकायत है :
प्रेमिका को अपने चित्तचोर से
पर्यवेक्षक को अपने चिटचोर से,

दोनों को रहती है :
गुप्त पत्रों की तलाश
छुपा कर रखे गये हैं जो
बड़े जतन से वहीं कहीं आसपास,
प्रेमिका को
प्रेमी द्वारा प्रणय निवेदन की अर्जियाँ
पर्यवेक्षक को
गुड़ी माड़ी गाइड की पर्चियाँ,

करें क्या ?
कुछ बंधती नहीं सम्पट
दोनों को किसी के भी देख लेने का संकट,
मिलता है बाद में :
प्रेमिका को आकाश से तारे तोड़ लाने का आश्वासन
पर्यवेक्षक को दस रुपये का नोट
और केन्द्राध्यक्ष का भाषण,

परीक्षा और प्रेम का स्तर
यदि इसी तरह गिरता जाएगा
तो भविष्य में एक दिन ऐसा भी आएगा
प्रेमिका और पर्यवेक्षक
ऐसे गायब होंगे कि
ज़माना ढूँढता रह जाएगा

देखो बसन्त आ गया 

पीत पीत हुए पात
सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रात
ठिठुरन का अन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।

मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरस बबरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल सृष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया ।

शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
सिमटी सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।

पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
मादक बासन्ती उपवन
करने कामाग्नि दहन
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।।

मत बिफर नर्मदा मैया

मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।
ये तेरे विकराल रूप से मच गई ता ता थैया ।।

खतरे को एलान सुनो सब निकर निकर के भागे
जित देखो उत पानी पानी महाप्रलय सो लागे ।
देखत देखत घरई डूब गओ छत पै चल रई नैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

देख जरा वीरान हो गये ये तेरे तट वाले
भर बारिश में बेघर हो गये खाने के भये लाले
राशन पानी गओ पानी में बह गये नगद रुपैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

डूबे खेत सबई किसान की भई पूरी बरबादी
सड़ गये बिन्डा अब हुइहै कैसे बिटिया की शादी
थालत भैंस कितै बिल्ला गई कितै दुधारू गैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

कछू पेड़ पर सात दिनों से बैठे भूखे प्यासे
डरे डरे सहमे सहमे से बच्चे पूछें माँ से
कहाँ चलो गओ कक्का अपनों कहाँ चलो गओ भैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

हेलीकाप्टर को एरो सुन करके बऊ घबरा रई
कह रई बेटा मोहे लगत है मनों मौत मँडरा रई
साँप देख नत्थू चिल्लानो हाय दैया हाय दैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

अबहिं अबहिं तो भओथो गरमी में गोपाल को गोनों
नओ सुहाग को जोड़ा बह गओ और दहेज को सोनो
बाढ़ शिविर में सिमटी सिमटी बैठी नउ दुल्हैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

बुरे फसे पोलिंग आफीसर चिन्ता घर वालों में
डरे रिटर्निंग आफीसर से घुसे नदी नालों में
पीठासीन बागरा पहुंचो पेटी सोन तलैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

रात दिना सेवा में लग गये बचे पड़ोसी सारे
विपदा में भी राजनीति दिखला रहे कुछ बेचारे
चार पुड़ी में वोट मांग रहे यै नेता छुटभैया ।
मत बिफर नर्मदा मैया अब उतर नर्मदा मैया ।

भारतभूमि

भारत की भूमि न्यारी स्वर्ग से भी ज्यादा प्यारी
देवता भी जन्म लेना चाहें मेरे देश में ।
पर्वतों का राजा यहाँ नदियों की रानी यहाँ
धरती का स्वर्ग काश्मीर मेरे देश में ।।
शिवाजी प्रताप चन्द्रशेखर भगतसिंह
लक्ष्मीबाई जैसी नई पीढ़ी मेरे देश में ।
भारत महान था ये आज भी महान है
एक सिर्फ व्यवस्था की कमी मेरे देश में ।।

2

दुनियाँ की पहली किताब अपने पास में है
अमृतवाणी देवभाषा संस्कृत अपने पास है ।
पातञ्जल ध्यान योग गीता ज्ञान कर्मयोग
षटरस छप्पन भोग भी अपने पास है ।
आयुर्वेद धनुर्वेद नाट्यवेद अस्त्र शस्त्र
यन्त्र तन्त्र मन्त्र का भी लम्बा इतिहास है
पढ़े लिखे ज्ञानी सब बैठे हैं अँधेरों में और
लालटेनें सभी निरे लल्लुओं के पास हैं ।।

3
बढ़े अपराध दिन दूने रात चौगुने हैं
लगी है पुलिस सब चोरों की सुरक्षा में
राष्ट्रनिर्माता ज्ञाता वोटरलिस्ट बनाता
नई पीढ़ी मक्खी मारे बैठी बैठी कक्षा में ।
न्यायविद सरेआम बेच रहे संविधान
गुण्डे अपराधियों की खड़े प्रतिरक्षा में
भारत की भोली भाली जनता है आस्तिक
बैठी किसी नये अवतार की प्रतीक्षा में ।।

4

खेत जिसके पास में है सर्विस की तलाश में है
सर्विस वाले घूमते दूकान की तलाश में ।
ग्राहक को ठगने की ताक में दूकानदार
ग्राहक भी उधार लेके खाने के प्रयास में ।
बड़े पेट वाले बीमार हैं अधिक खा के
श्रमिक बेचारे खाली पेट उपवास में ।
डाकू चोर किन्नर आसीन राजगद्दियों पे
चन्द्रगुप्त चाणक्य गये वनवास में ।।

5
सींकचों के पीछे खड़े जिन्हें होना चाहिये था
ओढ़के मुखौटा आज बैठे हैं सदन में ।
गाँधी जी की जय जयकार करके करें भ्रष्टाचार
जयन्ती मनायें एयरकंडीशन भवन में ।
सत्य का तो अता नहीं त्याग का भी पता नहीं
मन में वचन में न दिखे आचरण में ।
बुद्ध फिरें मारे मारे बुद्धू सारे मजा मारें
प्रबुद्ध युवा बेचारे पड़े उलझन में ।।

वर्षा ॠतु

जब ग्रीष्म ॠतु गई और वर्षा ॠतु आई
तब हम बिल्कुल फालतू थे
इसलिए एक कविता बनाई
और एक बड़े कार्यक्रम में
तबियत से गाकर सुनाई

बदरा घिर आए रुत है भीगी॑ भीगी
नाचे मन मोरा मगन ताका धीगी धीगी
बीच में बैठे एक श्रोता से नहीं रहा जा रहा था
उससे वर्षा ॠतु का पारम्परिक वर्णन नहीं सहा जा रहा था
फिर भी हमने की बेहयाई
अपनी कविता और भी आगे बढ़ाई
सावन का महीना पवन करे शोर
जियरा रे ऐसे झूमे जैसे वन में नाचे मोर
अब श्रोता हो गया था बिल्कुल बोर

वह चिल्लाया अबे चुप चोर!
एक घंटे से सुनी सुनाई कविता बाँच रहा है
हम मरे जा रहे हैं और तेरा जियरा नाच रहा है
बिना सोचे समझे क्या ऊटपटांग लिखता है
इतना वाहियात मौसम तुझे सुहाना दिखता है
यदि तुझे सचमुच आता है बरसात में मजा
तो जरा हाउसिंग बोर्ड में अजा
घुसते ही तथाकथित ऐतिहासिक सड़क में फँस जाएगा
और जरा सा बहका तो
स्कूटर समेत नाली में धँस जायेगा

फिर तेरा मन नाच नहीं कूद-कूद जायेगा
दूरदर्शन पर वरसात की भविष्यवाणी से ही
सारी कविता भूल जायेगा
खिड़की से पवन के झोंके की जगह
साँप की फुफकार सुनोगे तो तबियत हिल जायेगी
और कहीं चपेट में आ गये तो
कविता के साथ साथ कवि से भी मुक्ति मिल जायेगी

यदि लिखना है तो लिखो हालात सच्चे
तुम मोर नाचने की बात करते हो
जबकि नाच रहे हैं सुअर के बच्चे
टूटे सेप्टिक टेंक की गन्दगी
जो बाकी समय सड़क के किनारे वहती थी
अब बरसात की कृपा से
दरवाजे तक आ जाती है
और हरियाली के साथ साथ चारों ओर
गन्दगी ही गन्दगी छा जाती है
हमें पता ही नहीं
कैसी होती है मिट्टी की गन्ध ?
यहाँ तो व्याप्त हो जाती है
सिनेटरी लाईन की दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध

माना कि वरसात की बूँदें
प्रेमियों को अच्छी लगती हैं
बशर्ते वे घंटे दो घंटे गिरें
बादलों से भी शिकायत नहीं
वे घिरें तो घिरें उनका स्वागत है
पर आपको नहीं मालूम श्रीमान !
यह हाउसिंग बोर्ड का छत है
बादल तो पन्द्रह मिनिट बरस कर चला जाता है
परन्तु यह हरामजादा छत
उसे पन्द्रह घंटे तक टपकाता है

अँधेरी रात स्ट्रीट लाईट बन्द
घनघोर बारिश में और भी कई दन्द-फन्द
इस सींड़े मौसम में न खा पाते हैं
न सो पाते हैं
सच पूछिये तो वरसात के नाम पर
हमारे कटारे खड़े हो जाते हैँ

नया वर्ष 

नया वर्ष कुछ ऐसा हो पिछले बरस न जैसा हो
घी में उँगली मुँह में शक्कर पास पर्स में पैसा हो ।

भूल जाएँ सब कड़वी बातें पाएँ नई नई सौगातें
नहीं काटना पड़ें वर्ष में बिन बिजली गर्मी की रातें ।
कोई घपला और घुटाला काण्ड न ऐसा-वैसा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…

बच्चे खुश हों खेलें खायें रोज सभी विद्यालय जायें
पढ़ें लिखें शुभ आदत सीखें करें शरारत मौज मनायें
नहीं किसी के भी गड्ढ़े में गिरने का अंदेशा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…

युवा न भटकें गलियाँ-गलियाँ मिल जाएँ सबको नौकरियाँ
राहू केतु शुभ हो जाएँ मिल जाएँ सबकी कुण्डलियाँ
लड़की ऐश्वर्या-सी लड़का अभिषेक बच्चन जैसा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…

स्वस्थ रहें सब वृद्ध सयाने बच्चे उनका कहना मानें
सेवा में तत्पर हो जाएँ आफिस कोर्ट कचहरी थाने
डेंगू और चिकनगुनियाँ का अब प्रतिबन्ध हमेशा हो
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…

नए वर्ष में नूतन नारे बना सकें नेता बेचारे
गाली बकलें कोई किसी को पर जूते चप्पल न मारे
नहीं विश्व में अन्त किसी का बेनजीर के जैसा हो ।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…

कलियुगी रामलीला 

रावण के प्रति हनुमान का उदार भाव देखकर
रामलीला का मैनेजर झल्लाया
हनुमान को पास बुलाकर चिल्लाया
क्यों जी ? तुम रामलीला की मर्यादा तोड़ रहे हो
अच्छी ख़ासी कहानी को उल्टा किधर मोड़ रहे हो?
तुम्हें रावण को सबक सिखाना था
पर तुम उसके हाथ जोड़ रहे हो
हनुमान बना पात्र हँसा और बोला
भैया यह त्रेता की नहीं कलियुग की रामलीला है
यहाँ हर प्रसंग में कुछ न कुछ काला पीला है
मैं तो ठहरा नौकर मुझे क्या रावण क्या राम
जिसकी सत्ता उसका गुलाम
आजकल हमें जल्दी-जल्दी मालिक बदलना पड़ता है
इसीलिए राम के साथ-साथ
रावण से भी मधुर संबंध रखना पड़ता है
मुझे अच्छी तरह मालूम है कि
यह रावण मरेगा तो है नहीं
ज़्यादा से ज़्यादा स्थान बदल लेगा
वह राम का कुछ बिगाड़ पाए या नहीं
किन्तु मेरा तो पक्का कबाड़ा कर देगा
अतः रावण हो या राम
हमें तो बस तनख़्वाह से काम
जैसे आम के आम और गुठलियों के दाम
मैं ही नहीं सभी पाखंडी चालें चल रहे हैं
समय के हिसाब से सभी किरदार
अपनी भूमिका बदल रहे हैं
अब विभीषण को ही देखिए
कहने को तो रावण ने उसे लात मारी थी
पर वह उसकी राजनीतिक लाचारी थी
देखना अब विभीषण इतिहास नहीं दोहराएगा
मौका मिलते ही राम की सेना में दंगा करवाएगा
अब कुंभकर्ण भी फालतू नही मरना चाहता
फ़्री की खाता है और
कोई काम भी नहीं करना चाहता
उसे अब नींद की गोली खाने के बाद भी
नींद नहीं आती
फिर भी जबरन सोता है
पर सोते हुए भी लंका की हर गतिविधि से वाकिफ़ होता है
इस बार उसकी भूमिका में भी परिवर्तन हो जाएगा
कुंभकर्ण लड़ेगा नहीं
जागेगा । खाएगा पिएगा और फिर सो जाएगा
अब अंगद में भी
आत्मविश्वास कहाँ से आएगा?
उसे मालूम है कि पैर अब
पूरी तरह जम नहीं पाएगा
कौन जाने भरी सभा के बीच
कब अपने ही लोग टाँग खींच दें
इसलिए उसे हमेशा युवराज बने रहना मंज़ूर नहीं है
यदि बालि कुर्सी छोड़ दे तो दिल्ली दूर नहीं है
वह अपनी सारी नैतिकता को
जमकर दबोच रहा है
आजकल वह बाली को ख़ुद मारने की सोच रहा है
वह राजमुकुट अपने सिर पर धरना चाहता है
और बचा हुआ सुग्रीव का रोल ख़ुद करना चाहता है
बूढ़े जामवंत भी अब थक गए हैं
अपने दल के अनुशासनहीन बंदरों के वक्तव्य सुनकर कान पक गए हैं
अब जामवंत का उपदेश नहीं सुना जाएगा
इस बार दल का नेता
कोई चुस्त चालाक बंदर चुना जाएगा
सुलोचना को भी
भरी जवानी में सती होना पसंद नहीं है
कहती है
साथ जीने का तो है पर मरने का अनुबंध नहीं है
इसलिए अब वह मेघनाद के साथ सती नहीं हो पाएगी
बल्कि उसकी विधवा बनकर
नारी जागरण अभियान चलाएगी
जटायु को भी अपना रोल बेहद खल रहा है
वह भी अपनी भूमिका बदल रहा है
अब वह दूर दूर उड़ेगा
रावण के रास्ते में नहीं आएगा
अपना फर्ज तो निभाएगा पर
अपने पंख नहीं कटवाएगा
मारीच ने भी अपने निगेटिव रोल पर
गंभीरता से विचार किया है
उसने सुरक्षा के लिए
बीच का रास्ता निकाल लिया है
वह सोने का मृग तो बनेगा
पर अन्दर बुलेटप्रूफ जाकिट पहनेगा
राम का बाण लगते ही गिर जाएगा
लक्ष्मण को चिल्लाएगा और धीरे से भाग जाएगा
अभी परसों ही शूर्पनखा की नाक कटी है
बड़ी मुश्किल से
अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हटी है
पर भूलकर भी यह मत समझना कि
अब वह दोबारा नहीं आएगी
कटी नाक लेकर अब वह
लंका नहीं सीधे अमेरिका जाएगी
किसी बड़े अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी करवाएगी
और नया चेहरा लेकर फिर एक बार
अपनी भूमिका दोहराएगी
यूँ तो शूर्पनखा के कारनामे जग जाहिर हैं
पर करें क्या
खर और दूषण राम की पकड़ से बाहर हैं
यदि शूर्पनखा से बचना है तो
उसकी नाक नहीं जड़ें काटना होगी
अब लक्ष्मण को बाण नहीं तोप चलानी होगी
ऐसी परिस्थिति में राम को भी
मर्यादा के बंधन छोड़ने पड़ेंगे
रावण को मारना है तो
सारे सिद्धांत छोड़ने पड़ेंगे

भारती पुकारती

परम पुनीत पुण्यभूमि भारती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती।

सत्य दान शीलता की मूर्ति,
अभीष्ट सब पदार्थों की पूर्ति।
चंद्रमा-सी जिसकी धवल कीर्ति
बनी विपन्नता की प्रतिमूर्ति
वो आस भरी दृष्टि से निहारती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती।

राम-कृष्ण की ये पावन धृति
श्लांघनीय संस्कृत सुसंस्कृति
रत्नपूर्ण इस धरा की संतति
क्यों है अशक्त काँच के प्रति
मातृभक्ति पर कभी न हारती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती

झाँक लो ज़रा सुखद अतीत को
शौर्य वीर्य धैर्य के प्रतीक को
छोड़ भेदभाव की अनीति को
जगाओ स्वाभिमान की प्रतीति को
जलाओ दिव्य चेतना की आरती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती

कविता बन रही उपहास

जाग हे कवि प्रेम की जग में जगा दे प्यास
कविता बन रही उपहास

दूर रवि से भी कभी जाता रहा कवि
युद्ध में भी शांति पद गाता रहा कवि
आज दिल्ली तक पहुँचने की लगाए आस
कविता बन रही उपहास

नीति भ्रष्ट अशिष्ट छबि मुखपृष्ठ पर है
व्यक्ति निष्ठा की प्रतिष्ठा कष्टकर है
सत्यनिष्ठ विशिष्ट को डाले न कोई घास
कविता बन रही उपहास

मुक्त छंद निबंध काव्य प्रबंध सारे
हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे
हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास
कविता बन रही उपहास

पठन पाठन श्रवण चिंतन मनन होगा
प्रसव पीड़ा जनित उत्तम सृजन होगा
करें सार्थक पारमार्थिक सतत अथक प्रयास
कविता बन रही उपहास

सतपुड़ा के महाजंगल 

सतपुड़ा के महा जंगल थे कभी गए कहाँ जंगल
घटे जंगल कटे जंगल माफ़ियों में बटे जंगल
अए लकड़ चोरों बताओ बेच आए कहाँ जंगल

इन वनों के गए भीतर दिखे मुर्गे और न तीतर
पन्नियाँ ही पन्नियाँ बिखरी पड़ी थी उस ज़मीं पर
कहाँ गए वे हिरण कारे खा गए इंसान सारे
शेर चीते लकड़बग्घे गाँव में छुपते बेचारे
साँप अजगर थे घनेरे ले गए उनको सपेरे
तमाशा दिखला रहे हैं शहर में सायं सबेरे
नाम के ये रहे जंगल सतपुड़ा के महाजंगल

घुस न पाती थीं हवायें रोक लेती डालियाँ
अब वहाँ ट्रक घुस रह हैं और टेक्टर ट्रालियाँ
फूल पत्ते फल न छाया दूर तक कुछ नज़र आया
जानवर की जगह हमने आदमी हर जगह पाया
ले चलो हो जहाँ जंगल सतपुड़ा के महाजंगल

गौड़ भील किरात काले मोबाइल को गले डाले
धूप का चश्मा लगाए घूमते वे पेंट वाले
तुंबियों की जगह संग में प्लास्टिक के बैग धरते
ट्रांज़िस्टर लिए फिरते और डिस्को डांस करते
ढोल इनके गुम गए हैं बोल इनके गुम गए हैं
कोका कोला पेप्सी के साथ रम में रम गए हैं
अखाड़े से हुए जंगल सतपुड़ा के महाजंगल.

गणपति बब्बा आइयो

गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।
इते परो बुद्धि को टोटा सद्बुद्धि लेतैयो।

वायुयान सुरक्षित नइहां बा में सफर मती करियो
रोड हो गये उबड़ खाबड़ बस में पाँव नहीं धरियो
मूषा छोड़ कबहुँ धोखे से रेल में मत चढ़ जइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।

करियो मती अबेर तनिक दिनछित मुकाम पे आजइयो
बिजली को कछु नहीं ठिकानो मती भरोसे में रहियो
बीच सड़क में खुदी तलैंयें कींच में मत धस जइयो
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।

अबकी साल पढान गुरु जी कक्षा में नहिं आ रहे हैं
घर-घर घूमत फिरें गाँव में वोटर लिस्ट बना रहे हैं
आये परीक्षा सपने में पेपर आउट कर दइयो
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।

हो रहे अबहिं चुनाव सबइर अपनी-अपनी चिल्ला रहे हैं
आश्वासन वादों के मन के लड्डू खूब खिला रहें हैं
बचके रहियेगा तुम चुनाव को चिन्ह मती बन जइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।

नकली भगत तुम्हारे तुमको गोदी में बैठा लेंगे
कंधों पर ले ले के तुमको सारो शहर घुमा देंगे
मोदी और बघेला के चक्कर में मत पड़ जइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।

सबरो दूध गाँव को बाबू व्यर्थ चाय में खो रहे हैं
खाके तेल मिलावट बारो हम सब कांटे हो रहे हैं
तुम्हहिं उते से कामधेनु को देशी घी लेत अइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।

निर्भय हो बंदूकें लेके घूम रहे हैं हत्यारे
भये अनाथ कई मोड़ा-मोड़ी भटक रहे मारे-मारे
तुम आतंकवादियों की अब खाल में भुस भर दैयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋ़द्धि सिद्धि लइयो।

पैसा बारे तुम्हें बतेंहैं सोना चाँदी और मेवा
हम फट्टी पे बैठन वारे का कर पाएँगे सेवा
तुम महलों को मेवा तजके साग हमारो खइयो।।
गणपति बब्बा अइयो ऋद्धि सिद्धि लइयो।

जीवन दुख से भार न होता 

जीवन दुःख से भार न होता
काश हृदय में प्यार न होता

प्यार बिना मन कैसे खिलता
फिर किससे कोई क्यों मिलता
मिलता जब न बिछुड़ता कैसे
तब क्यों कर होती व्याकुलता
निपट अकेले भवसागर में
माँझी बिन पतवार होता
काश हृदय में प्यार न होता

करता कौन प्यार की बातें
खलती नहीं जागती रातें
क्यो दिल के विश्वास टूटते
होती न आँसू की बरसातें
ज़ख़्म लिए दिन रात रुलाने
कोई बेवफ़ा यार न होता
काश हृदय में प्यार न होता

सारा जीवन भ्रम में बीता
सपनों में हारा या जीता
भरता रहा निरन्तर फिर भी
मन का घट रीता का रीता
तड़प तडप कर ज़िन्दा रहने
यह तन कारागार न होता
काश हृदय में प्यार न होता

लोग किसी के घर क्यों जाते
नहीं बनाते रिश्ते नाते
स्वयं बनाये सम्बन्धों की
नहीं फ़र्ज़ की रस्म निभाते
खोज-खोज दुख पहुँचाने को
कोई रिश्तेदार न होता
काश हृदय में प्यार न होता

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जय जवान जय किसान जय विज्ञान

युगों युगों से रहा निरन्तर जिसका लक्ष्य महान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

सीमा की रक्षा करना सैनिक का काम बड़ा है
भारत माँ की रक्षा करने सीना तान खड़ा है
चाहे हिमालय की चोटी हो या फिर रेगिस्तान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

सदियों से किसान ने इस धरती पर स्वेद बहाया
सही मायने में गीता का कर्मयोग अपनाया
हरित् क्रान्ति और श्वेत क्रान्ति से देश बना धनवान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

आर्यभट्ट भाभा कलाम जैसे वैज्ञानिक पाये
पृथ्वी नाग त्रिशूल सरीखे प्रक्षेपास्त्र बनाये
स्वयं किया परमाणु परीक्षण बढ़ा राष्ट्र सम्मान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

पालन करता है किसान रक्षा जवान करता है
साधन दोनों को सदैव विज्ञान दिया करता है
तत्पर है हर भारतवासी देने को बलिदान
सत्य न्याय के पथ पर बढ़ता मेरा हिन्दुस्तान।
जय जवान जय किसान जय विज्ञान

टी० वी० का ज्ञान

एकमात्र ही शेष बची है मर्दों की पहचान।
जो सरटेक्स कम्पनी के पहिने चड्डी बनियान।।
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

नये एरियल डिटर्जेन्ट से जो कपड़े धोता है
मेकेनिक से इंजीनियर वहीं तुरन्त होता है
ठंडे का मतलब केवल कोका कोला होता है
जो अन्दर फ़िट होता है बाहर भी हिट होता है
जो जितने कम कपड़े पहिने विश्वसुन्दरी मान।।
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

आज समूचा भारत पेप्सी पीकर ही जीता है
पहले तो इंसान मगर अब चीता भी पीता है्
तीस रुपल्ली में आज़ादी मिलती इतनी सस्ती
गुटका खाकर बुड्ढा भी करने लगता मस्ती
वृक्ष लगा उतरो पड़ोस की छत पर सीना तान।।
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

कठिन पुरानी योगक्रिया के चक्कर में मत पड़िए
ले एक्शन के शूज़ पहनिए रोज़ हवा में उड़िए
दीवारों पर कभी भूलकर चूना मत वापरिए
लड़की की शादी करनी हो विरला व्हाइट करिए
पच्चीस नाइन्टी नाइन लेकर बनिए इंसान।
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

कोई कम्पनी गोविन्दा को बेहूदा नचवाती
कान पकड़कर बिग बी बच्चन को बैठक लगवाती
चाकलेट में हीरोइन कपड़े उतार देती है
गुटका खाओ तो कोई लड़की पीछे हो लेती है
बुद्धिमान तो खाए चवाजा बुद्धू खाए पान।
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

सुन्दरियों के वक्षस्थल में मन्त्री जी रहते हैं
जो भी मन्त्री खाते हैं वे ही मन्त्री रहते है
कम्बल साल ओढ़ते जो अपमान सदा सहते है
जो न पहनते लक्स सूट उनको उल्लू कहते हैं
अन्दर की बातें बतलाते सुनो लगाकर कान।।
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

नहीं जानते आप प्यार का रंग लाल होता है
लाल चाय पीने से दिल भी लाल-लाल होता है
जहाँ पताका चाय वहाँ का ट्रैफ़िक रुक जाता है
वाह ताज पीने वालों का तबला बज जाता है
दूध तो केवल बिल्ली पीती चाय पियें श्रीमान।।
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

दिन भर जो टी०वी० देखे तो टी०बी० हो जाएगी
बच्चे होंगे ढेर मगर फिर बीबी खो जाएगी
दुख भोगने की फिर सारी युक्ति मिल जाएगी
इसी तरह जल्दी जीवन से मुक्ति मिल जाएगी
मिले मुफ़्त में उसे नरक में टी०वी० की दूकान
ये है टी०वी० का ज्ञान।।

उठो लाल अब आँखें खोलो

उठो लाल अब आंखें खोलो
अपनी बदहालत पर रोलो
पानी तो उपलब्ध नहीं है
चलो आंसुओं से मुँह धोलो।।

कुम्हलाये पौधे बिन फूले
सबके तन सिकुड़े मुंह फूले
बिजली बिन सब काम ठप्प है
बैठे होकर लँगड़े लूले
बेटा उठो और जल्दी से
नदिया से कुछ पानी ढ़ोलो।।उठो,,,,

बीते बरस पचास प्रगति का
सूरज अभी नहीं उग पाया
जिसकी लाठी भैंस उसी की
फिर से सामन्ती युग आया
कब तक आँखें बन्द रखोगे
बेटा जागो कुछ तो बोलो।।उठौ,,,,

जिसको गद्दी पर बैठाला
उसने अपना घर भर डाला
पांच साल में दस घंटे का
हमको अंधकार दे डाला
सबके इन्वर्टर हटवाकर
इनकी भी तिो आँखें खोलो।।उठौ,,,,,

चुभता वर्ग भेद का काँटा
सबको जाति धर्म में बांटा
जमकर मार रहे कुछ गुण्डे
प्रजातन्त्र के मुंह पर चांटा
तोड़ो दीवारें सब मिलकर
भारत माता की जय बोलो।।उठौ,,,,,

चली आँधियां भ्रष्टाचारी
उड़ गई नैतिकता बेचारी
गधे पंजीरी खयें बैठकर
प्रतिभा फिरती मारी मारी
लेकर हांथ क्रान्ति की ज्वाला
इन्कलाब का हल्ला बोलो।।उठौ,,,,,

आस न करना सोये सोये
मिलता नहीं बिना कुछ खोये
खरपतवार हटाओ बचालो
बीज शहीदों ने जो बोये
लड्डू दोनों हांथ न होंगे
या हंसलो या गाल फुलोलो।।उठो,,,,,

जो बोते हो वह उगता है
सोये भाग नहीं जगता है
और किसी के रहे भरोसे
उसको सारा जग ठगता है
कठिन परिश्रम की कुंजी से
खुद किस्मत का ताला खोलो।।उठौ,,,,

नहीं किसी से डरना सीखो
सच्ची मेहनत करना सीखो
जागो उठो देश की खातिर
हंसते हंसते मरना सीखो
राष्ट्रभक्ति की बहती गंगा
तुम भी अपने पातक धोलो।।उठो,,,,,

हर सवाल ला जबाब

दैया रे दैया सुनो रे भैया
कैसा कामाल हो गया
लाजबाब हर सवाल हो गया।।

देश के जो कर्णधार
बन गये उसी को भार

नित नई परियोजना बनाते है
स्वयं करें साफ हाथ
चाटुकार लेके साथ
नित नये अभियान ये चलाते है
लेकर विदेशी ॠण ऐसे उड़ायें
जैसे बाप का ही माल हो गया।।
लाजबाब हर सवाल हो गया।।

जो पैदल न जाये
बिना मेहनत की खाये
मातृभाषा न आये
वो शिक्षित कहलाये
जो धर्म को न जाने
पूर्वजों को न माने
न संस्कृति पहचाने
सुसंस्कृत कहलाये
अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी पढ़ाये
मानो अक्ल का अकाल हो गया।।
लाजबाब हर सवाल हो गया।।

सरकारी तन्त्र जैसे
बिगड़ा सा यन्त्र
चाटुकारिता सफलता का
बना महामन्त्र
सेवक स्वतन्त्र सभी
मालिक परतन्त्र
सारी प्रजा दीनहीन
ऐसा कैसा प्रजातन्त्र
कार्यालय बने सभी
लेन देन केन्द्र
बड़ा साहब दलाल हो गया।।
लाजबाब हर सवाल हो गया।।

ट्रांसफरी मौसम

आया विकट ट्रांसफरी मौसम
और शुरू छलछन्द हो गया
काम काज सब बन्द हो गया।।

आफिस के अन्दर ही अन्दर
उठे रोज कागजी बबण्डर
कोई आ गया घर के अन्दर
चला दूर कोई सात समुन्दर
हंस हुए सर से निष्काषित
बगुलों का आनन्द हो गया।।

आशंका की छाई बदलियां
बिन गरजे ही गिरें बिजलियां
बिना सोर्स अधिकारी तड़पें
जैसे पानी बिना मछलियां
दुबला हुआ सूखकर धरमू
लालू सेहतमन्द हो गया।।

छुटभैये मेंठक टर्राते
डबरे देख देख गर्राते
बड़े सांप भी उनके आगे
शीश झुका थर थर थर्राते
हुई असह्य उष्ण जलवायु
मौसम देहशतमन्द हो गया।।

बड़ी दूर से मुख्यालय पर
आया भैयाजी का चमचा
मास्साब को रोब दिखाता
उनके चमचे का भी चमचा
शिष्टाचार हुआ प्रतिबन्धित
अनाचार स्वच्छन्द हो गया।।

भैयाजी स्तोत्रम्

तीरथ चारों धाम हमारे भैया जी ।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

भैया जी का रौब यहाँ पर चलता है
हर अधिकारी भैया जी से पलता है
चाँद निकलता है इनकी परमीशन से
इनकी ही मरजी से सूरज ढ़लता है
दिखते बुद्धूराम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

पाँचों उँगली घी में और मुँह शक्कर में
कोई न टिकता भैया जी की टक्कर में
लिये मोबाइल बैठ कार में फिरते हैं
सुरा सुन्दरी काले धन के चक्कर में
व्यस्त सुबह से शाम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

भैया जी के पास व्यक्तिगत सेना है
दुष्ट जनों को रोजगार भी देना है
चन्दा चौथ वसूली खिला जुआँ सट्टा
प्रजातन्त्र किसको क्या लेना देना है
करते न आराम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

फ़रजी वोट जिधर चाहें डलवा देते
पड़ी ज़रूरत तुरत लट्ठ चलवा देते
भैया जी चाहें तो अच्छे अच्छों की
पूरी इज़्ज़त मिट्टी में मिलवा देते
कर देते बदनाम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

बीच काम में जो भी अटकाता रोड़ा
अपने हिस्से में से दे देते थोड़ा
साम दाम से फिर भी नहीं मानता जो
भैया जी ने उसको कभी नहीं छोड़ा
करते काम तमाम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

चोरी डाका बलात्कार या हत्या कर
पहूँच जाइये भैया जी की चौखट पर
नहीं कर सकेगा फिर कोई बाल बाँका
भैया जी थाने से ले आयेंगे घर
लेते पूरे दाम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

हिन्दू हो मुस्लिम हो या फिर ईसाई
सदा धर्म निरपेक्ष रहें अपने भाई
धन्धे में कुछ भी ना भेद भाव करते
कोई विदेशी हो या कोई सगा भाई
नहीं है नमकहराम हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

जो भैया जी स्तोत्र सुबह सायँ गाते
सड़क भवन पुलियों का ठेका पा जाते
भक्ति भाव से भेया जी रटते-रटते
अन्तकाल में खुद भैया जी बन जाते
इतने शक्तिमान हमारे भैया जी ।।
कर देते सब काम हमारे भैया जी ।।

माँ

तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन
कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुमसा
माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।

ब्रह्मा तो केवल रचता है
तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते
तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं
और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।

ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे
सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में
ममता बिन सब रूखे रूखे
पूजा करे सताये कोई
सब की सदा तुम हितैषी हो।

कितनी गहरी है अद् भुत सी
तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है
तेरे आगे करुणा सागर
जाकी रहि भावना जैसी
मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।

मेरी लघु आकुलता से ही
कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में
तुम भूखी ही सो जाती हो
सब जग बदला मैं भी बदला
तुम तो वैसी की वैसी हो।

तुम से तन मन जीवन पाया
तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता
काम तुम्हारे कभी नआया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा
तुम भी तो जाने कैसी हो
माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।

प्यारी सासु हमारी

प्यारी प्यारी सासु हमारी
प्रियतम की महतारी ।।प्यारी,,,,,,,,

प्राणनाथ के पिता ससुर जी
उनकी भी घरवारी
सम्प्रभुता सम्पन्न स्वगृह की
अनुविभाग अधिकारी।।प्यारी,,,,,,,,

बड़बोली मन की अति भोली
अनुभव की भण्डारी
सद् गृहस्थ जीवन जीने की
सिखा देत विधि सारी।।प्यारी,,,,,,,,

कुल परम्परा रीति नीति सब
की सांस्कृतिक प्रभारी
धन सम्पदा मान मर्यादा
सब घर की रखवारी।।प्यारी,,,,,,,,

सद् गुण देख प्रशंसा करती
कबहुँ अशीषे भारी
कबहुँ कबहुँ कुनेन सी कड़वी
देती बहु विधि गारी ।।प्यारी,,,,,,,,

रखती ध्यान अहर्निश माँ सम
सखियाँ सम हितकारी
गुरु समान सब ज्ञान सिखाती
सासू की गति न्यारी।।प्यारी,,,,,,,,

दुःस्वप्न 

राम जाने क्यों हुआ दुःस्वप्न दर्शन
गीदड़ों के सामने हरि का समर्पण
नृत्य मिलकर कर रहे थर सांप नेवले
दे रहे थे गिद्ध बाहर से समर्थन

कुकरमुत्तों का अजूबा संगठन
चुनौती देने लगे लगे वटवृक्ष को
वृक्ष के गुण धर्म की चर्चा नहीं
दिखाते वे महज संख्या पक्ष को

अमावश्या की अंधेरी रात ने
ढ़क लिया था पूर्ण उजले पक्ष को
सूर्य को धिक्कारते बेशर्म जुगनू
मानकर वृह्माण्ड अपने कक्ष को

आक्रमण था तीव्र घोर असत्य का
अनसमर्थित सत्य बेवश हो चला
खो गया फिर स्वयं गहरे अंधेरों में
पर गया कुछ आश के दीपक जला

दृश्य यह ईश्वर करे दुःस्वप्न ही हो
कामना है तिक्त अनुभव क्षणिक होगा
चीरकर गहरे अनिश्चय बादलों को
प्रखर तैजस युक्त भास्कर उदित होगा

होली

एक दूजे के अंग लगें तो होली है
सबको लेकर संग चलें तो होली है

बच्चे तो शैतानी करते रहते हैं
बूढ़े भी हुड़दंग करें तो होली है

औरों को तो रोज परेशां करते हैं
अपनों को ही तंग करें तो होली है

चलते रहते रोज अजीवित वाहन पर
गर्धव का सत्संग करें तो होली है

बनते हैं पकवान सभी त्यौहारों पर
हर गुझिया में भंग भरें तो होली है

घोर विषमता भरे कष्टकर जीवन में
मुसकाने का ढ़ंग करें तो होली है

नारिशील पर मर्यादा की सील लगी
वही शील को भंग करें तो होली है

बच्चे बूढ़े प्रेम करें तो जायज है
इसी काम को यंग करें तो होली है

ॠतु वर्णन

जिन्दगी तोरे बिन रीती रीती पिया
कैसे कैसे के एक साल बीती पिया।।
चैत को महीना शिशिर ॠतु आई
पानी में धो धाके धर दई रजाई
ठण्डक से गर्मी की हो गई सगाई
अमियां और इमली की भावै खटाई
भई भैंसों की पानी से प्रीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,

ग्रीष्म ॠतु आई लगो जेठ को महीना
ऊँसई बतियाबे में निकरै पसीना
अच्छो लगे प्याज संग पौदीना
सूरज भओ दुष्मन कोई निकरै कहीं ना
फिरूँ घर के अगीती पछीती पिया।.कैसे कैसे,,,,,,,,,
वर्षा ॠतु सावन में चमके बिजुरिया
बार बार डरपावे कारी बदरिया
सारी रात बतियावें मेंदरो मिंदरिया
ऐंसे में याद आये तोरी संवरिया
और पपीहा बतावे प्रेम रीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
क्वांर मास शरद ॠतु सपने सी मीठी
खीर लगे दन्ने की खिचरी सी सीठी
दिखे शरद चाँद जैसे जलती अँगीठी
आवे की कह गये और भेजी नहिं चीठी
ऐंसी कैसी है तोरी राजनीति पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
पूस को महीना हेमन्त ॠतु ठण्डी
वैरी भये नदी ताल सूनी पगडण्डी
सीधो सो हो गओ जो सूरज घमण्डी
सारी रात टेरे वो चकवा पाखण्डी
लगे चूल्हे की आग शीती शीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
आई बसन्त ॠरु फागुन की बारी
तोरे बिन एक एक दिवस लगे भारी
कोयल की कूक लगे होली की गारी
खिड़की से झांके पड़ौसी गिरधारी
किस जतन से मदन से मैं जीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,

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