अफ़सोस है कि हम कूँ दिल-दार भूल जावे
अफ़सोस है कि हम कूँ दिल-दार भूल जावे
वो शौक़ वो मोहब्बत वो प्यार भूल जावे.
रुस्तम तेरी अँखियों के आवे अगर मुक़ाबिल
अबरू कूँ देख तेरी तलवार भूल जावे.
आरिज़ के आईने पर तुमना के सब्ज़ ख़त है
तूती अगर जो देखे गुफ़्तार भूल जावे.
क्या शैख़ क्या बरहमन जब आशिक़ी में आवे
तस्बी करे फ़रामुश ज़ुन्नार भूल जावे.
यूँ ‘आबरू’ बनावे दिल में हज़ार बातें
जब रू-ब-रू हो तेरे गुफ़्तार भूल जावे.
बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब
बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता
के जूँ कर गरम होवे है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता.
किया ख़त नें तेरे मुख कूँ ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
गहन जूँ माह कूँ लेता है दाब आहिस्ता आहिस्ता.
लगा है आप सीं ऐ जाँ तेरे आशिक़ का दिल रह रह
करे है मस्त कूँ बेख़ुद शराब आहिस्ता आहिस्ता.
दिल आशिक़ का कली की तरह खिलता जाए ख़ुश हो हो
अदा सीं जब कभी खोले नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता.
लगा है ‘आबरू‘ मुझ कूँ वली का ख़ूब ये मिसरा
सवाल आहिस्ता आहिस्ता जवाब आहिस्ता आहिस्ता
जलते थे तुम कूँ देख के
जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम
पहुँचे थे रात शम्मा के हो कर बरन में हम
तुझ बिन जगह शराब की पीते थे दम-ब-दम
प्याले सीं गुल के ख़ून-ए-जिगर का चमन में हम
लाते नहीं ज़बान पे आशिक़ दिलों का भेद
करते हैं अपनी जान की बातें नयन में हम
मरते हैं जान अब तो नज़र भर के देख लो
जीते नहीं रहेंगे सजन इस यथन में हम
आती है उस की बू सी मुझे यासमीं में आज
देखी थी जो अदा कि सजन के बदन में हम
जो कोई कहेगा आप कूँ रखता है आप अज़ीज़
यूसुफ़ हैं अपने दिल के मियाँ पैरहन में हम
क्यूँकर न होवे किल्क हमारा गुहर-फ़िशाँ
करते हैं ‘आबरू’-ए-तख़ल्लुस सुख़न में हम
मगर तुम सीं हुआ है आशना दिल
मगर तुम सीं हुआ है आशना दिल
कि हम सीं हो गया है बे-वफ़ा दिल.
चमन में ओस के क़तरों की मानिंद
पड़े हैं तुझ गली में जा-ब-जा दिल.
जो ग़म गुज़रा है मुझ पर आशिक़ी में
सो मैं ही जानता हूँ या मेरा दिल.
हमारा भी कहाता था कभी ये
सजन तुम जान लो ये है मेरा दिल.
कहो अब क्या करूँ दाना के जब यूँ
बिरह के भाड़ में जा कर पड़ा दिल.
कहाँ ख़ातिर में लावे ‘आबरू’ कूँ
हुआ उस मीरज़ा का आशना दिल.
मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन
मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन
आ जुदाई ख़ूब नहीं मिल जा सजन.
बे-दिलों की उज़्र-ख़्वाही मान ले
जो कि होना था सो हो गुज़रा सजन.
तुम सिवा हम कूँ कहीं जागे नहीं
पस लड़ो मत हम सेती बेजा सजन.
मर गए ग़म सीं तुम्हारे हम पिया
कब तलक ये ख़ून-ए-ग़म खाना सजन.
जो लगे अब काटने इख़्लास के
क्या यही था प्यार का समरा सजन.
छोड़ तुम कूँ और किस सीं हम मिलें
कौन है दुनिया में कोई तुम सा सजन.
पाँव पड़ता हूँ तुम्हारे रहम को
बात मेरी मान ले हा हा सजन.
तंग रहना कब तलक गुंचे की तरह
फूल के मानिंद टुक खिल जा सजन.
‘आबरू’ कूँ खो के पछताओगे तुम
हम को लाज़िम है इता कहना सजन.
फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए
फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए
वे आशिक़ी के हाए ज़माने किधर गए.
मिज़ग़ाँ तो तेज़-तर हैं व लेकिन जिगर कहाँ
तरकश तो सब भरे हैं निशाने किधर गए.
कहते थे हम कूँ अब न मिलेंगे किसी के साथ
आशिक़ के दिल कूँ फिर के सताने किधर गए.
जाते रहे पे नाम बताया न कुछ मुझे
पूछूँ मैं किस तरह कि फ़ुलाने किधर गए.
मैं गुम हुआ जो इश्क़ की रह में तो क्या अजब
मजनून ओ कोह-कन से न जाने किधर गए.
प्यारे तुम्हारे प्यार कूँ किस की नज़र लगी
अँखियों सीं वे अँखियों के मिलाने किधर गए.
अब रू-ब-रू है यार नहीं बोलता सो क्यूँ
क़िस्से वो ‘आबरू’ के बनाने किधर गए.
रहता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर
रहता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर ला-वबाली का
हुनर सीखा है उस शमशीर-ज़न ने बेद-माली का.
हर इक जो उज़्व है सो मिसरा-ए-दिलचस्प है मौजूँ
मगर दीवान है ये हुस्न सर-ता-पा जमाली का.
नगीं की तरह दाग़-ए-रश्क सूँ काला हुआ लाला
लिया जब नाम गुलशन में तुम्हारे लब की लाली का.
रक़ीबाँ की हुआ ना-चीज़ बाताँ सुन के यूँ बद-ख़ू
वगरना जग में शोहरा था सनम की ख़ुश-ख़िसाली का.
हमारे हक़ में नादानी सूँ कहना ग़ैर का माना
गिला अब क्या करूँ उस शोख़ की मैं ख़ुर्द-साली का.
यही चर्चा है मजलिस में सजन की हर ज़बाँ ऊपर.
मेरा क़िस्सा गोया मज़मूँ हुआ है शेर हाली का.
तुम्हारा क़ुदरती है हुस्न आराइश की क्या हाजत
नहीं मोहताज ये बाग़-ए-सदा-सर-सब्ज़ माली का.
लगे है शीरीं उस को सारी अपनी उम्र की तलख़ी
मज़ा पाया है जिन आशिक़ नें तेरे सुन के गाली का.
मुबारक नाम तेरे ‘आबरू’ का क्यूँ न हो जग में
असर है यू तेरे दीदार की फ़र्ख़ुंदा-फ़ाली का.
तुम्हारा दिल अगर हम सीं फिरा है
तुम्हारा दिल अगर हम सीं फिरा है
तो बेहतर है हमारा भी ख़ुदा है.
हमारी कुछ नहीं तक़सीर लेकिन
तुम्हीं कूँ सब कहेंगे बे-वफ़ा है.
हुए हो इस क़दर बे-ज़ार हम सीं
कहो हम नीं तुम्हारा क्या किया है.
किसू सीं मत मिलो माशूक़ हो कर
ग़लत है हम नीं तुम सीं कब कहा है.
वो झूठा है कहा है जिन नीं तुम से
मिलो जिस सीं तुम्हारा दिल मिला है.
उसे यूँ मना करना पहुँचता है
तुम्हारे साथ जिस का दिल लगा है.
फ़क़त इक दोस्ती है हम को तुम सीं
हमें यूँ मना करना कब रवा है.
फ़क़त इख़्लास में इता अकड़ना
सितम-गर बे-वफ़ा ये क्या अदा है.
मगर दीन-ए-मुरव्वत में तुम्हारे
यही कुछ दोस्त-दारी की जज़ा है.
तुम्हारी इक लहर लुत्फ़ ओ करम की
हमारे दर्द कूँ दिल के दवा है.
ग़रीबों की मोहब्बत की अगर क़द्र
अपस के दिल में बूझो तो भला है.
वगरना पीत आख़िर की हमारी
सुनो समझो के जान-ए-मुद्दआ है.
तुम्हारे साथ मैं क़दमों लगा हूँ
मुझे यूँ टाल देना कब बजा है.
फ़क़त सय्याद दिल ख़ूब-सूरती नईं
करम है मेहर-बानी है वफ़ा है.
अबस बे-दिल करो मत ‘आबरू’ को
मुसाफ़िर है शिकस्ता है गदा है.
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
अफ़आ कहो सियाह कहो अज़दहा कहो
क़ातिल निगाह कूँ पूछते क्या हो कि क्या कहो
ख़ंजर कहो कटार कहो नीमचा कहो
टुक वास्ते ख़ुदा के मेरा इज्ज़ जा कहो
बे-कस कहो ग़रीब कहो ख़ाक-ए-पा कहो
आशिक़ का दर्द-ए-हाल छुपाना नहीं दुरुस्त
परघट कहो पुकार कहो बर्मला कहो
इस तेग़-ज़न नीं दिल कूँ दिया है मेरे ख़िताब
बिस्मिल कहो शहीद कहो जाँ-फ़िदा कहो
शाह-ए-नजफ़ के नाम कूँ लूँ ‘आबरू‘ सीं सीख
हादी कहो इमाम कहो रह-नुमा कहो
यार रूठा है हम सीं मनता नईं
यार रूठा है हम सीं मनता नईं
दिल की गर्मी सीं कुछ ऊ पहनता नईं.
तुझ को गहना पहना के मैं देखूँ
हैफ़ है ये बनाओ बनता नईं.
जिन नीं इस नौ-जवान को बरता
वो किसी और को बरतता नईं.
कोफ़त चेहरे पे शब की ज़ाहिर है
क्यूँके कहिए कि कुछ वो चुनता नईं.
शौक़ नईं मुझ कूँ कुछ मशीख़त का
जाल मकड़ी की तरह तनता नईं.
तेरे तन का ख़मीर और ही है
आब ओ गिल इस सफ़ा सीं सनता नईं.
जीव देना भी काम है लेकिन
‘आबरू’ बिन कोई करंता नईं.