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गुजरी गंवारी और ग्वालिनी अहिर जात

गुजरी गंवारी और ग्वालिनी अहिर जात,
गारी उठ प्रातः देत शरम हूं न आवे है।
घर में दही दूध कान्ह, मान-मान मान मेरी,
तेरी सूं रात दिवस यशोदा अकुलावे है।
नंद महर बेर-बेर ग्राम गली हेर हेर,
कृष्ण नाम लेर -लेर श्याम को बुलावे है।
कहता शिवदीन लाल, राधे कर जोर कहे,
मानो ना मानो श्याम श्यामा समुझावे है।

घुंघट पट में कामिनी, कंचन पावे और 

घुंघट पट में कामिनी, कंचन पावे और,
फेर चाहिये और क्या, क्षण में ले चित्त चोर।
क्षण में ले चित्त चोर, बचे कोई दास संत का,
अनुगामी अनुराग प्रेम सतसंग पंथ का,
कंचन काया कामिनी माया अपरंपार,
शिवदीन त्यागीये दूर ते भजिये कृष्ण मुरार।
राम गुण गायरे

भूल ही भूल बही तुझसे, प्रभु-भूल के, माया से प्रीत करी है

भूल ही भूल बही तुझसे, प्रभु-भूल के, माया से प्रीत करी है
कर्म को भूल के, शर्म को भूल के,धर्म की बात हृदय ना धरी है
चाहत है परिवार सम्बन्ध को, बन्धन की मन बान परी है,
भूल गयो सगरो सद्ज्ञान, अज्ञान भयो, न भज्यो तू हरि है

तीर्थ हजार करे, प्रभु से न प्यार करे

तीर्थ हजार करे, प्रभु से न प्यार करे,
प्रेम बिन अंत नाव, नीर में डुबो गये।
एक ही पलक उधो, प्रेम की झलक लखि,
जनमों का पाप दाग, प्रेम हूं सो धो गये।
प्रेम के समान ज्ञान, ध्यान व समाध नहीं,
प्रेम पाठ पढि-पढि, रामाकार हो गये।
प्र्रेम की अपार माया, उद्धव पिछान करी,
निरगुण ब्रह्म प्रेम गलियों में खो गये।

अनुराग में प्रेम है त्याग में प्रेम है

अनुराग में प्रेम है त्याग में प्रेम है,
भाग्य में प्रेम है ये ही तो नेम है।
ग्यान ही प्रेम है ध्यान ही प्रेम है,
राम ही प्रेम है प्रेम ही प्रेम है।
शिवदीन है प्रेम कहो मन में,
जन में तन में कुशलानंद क्षेम है।
परवाह करो न डरो न मरो,
मन प्रेम करो शुभ टेम ही टेम है |

प्रेम बसाया बस रहा, नगर डगर में प्रेम

प्रेम बसाया बस रहा, नगर डगर में प्रेम,
तन मन में, बन में बसा, नर में घर में प्रेम।
नर में घर में प्रेम, प्रेम है प्यारे हर में,
कृष्ण नाम में प्रेम, प्रेम है सीतावर में।
जल में थल में प्रेम है, प्रेम जहां नहीं नेम,
शिवदीन नेममय प्रेम है, प्रेम प्रेममय प्रेम।
राम गुण गायरे।।

प्रेम किये जा प्रेम है, नहीं प्रेम में पाप

प्रेम किये जा प्रेम है, नहीं प्रेम में पाप,
बसा प्रेम अपने हृदय उर में आपो आप।
उर में आपो आप, राम को प्रेम पियारा,
बिना प्रेम के जगत खुष्क है कडवा-खारा।
शिवदीन प्रेम फल है अमी, मीठा प्रेमी स्वाद,
प्रेम किये तें हो गये कितने घर आबाद।
राम गुण गायरे।।

प्रेम बिना जीवन नीरस सरस प्रेम सरसाय 

प्रेम बिना जीवन नीरस सरस प्रेम सरसाय,
धन्य दिवस प्रेमी मिले प्रेम सुधा बरसाय।
प्रेम सुधा बरसाय प्रेम फल ईश्वर अरपन,
फल चारों मिल जाय ज्ञानमय देखो दरपन।
कर भक्ति भगवान की राम नाम के संग,
उर शिवदीन निहारले अनुपम अद्भुत रंग।
राम गुण गायरे।।

राम हृदय में बसि रहा प्रेम प्रगट कर जान

राम हृदय में बसि रहा प्रेम प्रगट कर जान,
प्रेम बिना फीका लगे प्रानी थोथा ज्ञान।
प्रानी थोथा ज्ञान, ज्ञान से प्रेम पिछानो,
मन मंदिर में राम प्रेम करि करि के जानो।
उर में गंगा प्रेम की, नित नहा शिवदीन,
प्रेम-प्रेम है प्रेम है अद्भुत सदा नवीन।
राम गुण गायरे।।

पूजा पत्री प्रेम की मन की माला ठीक 

पूजा पत्री प्रेम की मन की माला ठीक,
प्रेम प्यार परमात्मा मार्ग भक्ति का नीक।
मार्ग भक्ति का नीक प्रेम दे उर में दाता,
बढे प्रेम से प्रेम, प्रेम है भाग्य विधाता।
शिवदीन प्रेम ही है प्रभु, संत प्रेम का रूप,
प्रेम, प्रेम से दे जना, साधु सत्य स्वरूप।
राम गुण गायरे।

प्रेम की मूरत, प्रेम की सूरत, प्रेम ही ईश्वर, लक्ष्य हमारो 

प्रेम की मूरत, प्रेम की सूरत, प्रेम ही ईश्वर, लक्ष्य हमारो,
प्रेम के संग व प्रेम उमंग से प्रेम की गंग में स्नान संवारो।
प्रेम का हार व प्रेम शृंगार से, प्रेम की पूजन और चितारो,
प्रेम प्रभु से रच्यो शिवदीन, सदा दिल में यह प्रेम विचारो

प्रेम के समान ध्यान योग यज्ञ तप नहीं

प्रेम के समान ध्यान योग यज्ञ तप नहीं,
प्रेम के समान और ज्ञान क्या लगाइये।
प्रेम का प्रभाव बडा भक्ति भाव भावना है,
राम कृष्ण जाने और कौन को जनाइये।
विद्या सब नीकी प्रेम भाव बिन फीकी-फीकी,
कहे शिवदीन बात और ना बढाइये।
आवो सतसंग करें मन में उमंग करे,
हमें जनम-जनम प्रभु प्रेम भाव चाहिये।

ऐ! ज्ञान के दिवाने उधो कछु नहीं जाने प्रेम

ए! ज्ञान के दिवाने उधो कछु नहीं जाने प्रेम,
प्रेम की न बात, आया ज्ञान तू सिखाने को।
दर्द प्यार प्रेम का है, दवा लाया और-और,
यही पाई ठौर मूर्ख मन के बहलाने को।
आग प्रेम की न बुझे, ज्ञान को जलाय देगी,
कहे शिवदीन आया और तू जलाने को।
साथ गाता नांचता था खाता माखन चौर-चौर,
कृष्ण नहीं आया भेजा तुम्हे समझाने को।

कर्णफूल कानों में है पहने अब मुद्रा उधो,
घर-घर घूम-घूम अलख जगायेगी।
साधे हम जोग रोग जोग तू सिखाने आया,
बन-बन जाय-जाय कंद मूल खायेंगी।

प्रेम रस बस भई तू क्या जाने निरदई,
स्वर बांसुरी का त्याग-त्याग सींगियां बजायेंगी।
ज्ञान के गुमान वाला उधो बता मतवाला,
एती ब्रजबाला मृगछाला कहां पायेंगी।

जिन्हे देख-देख हम जीती ब्रजमण्डल में,
अब सूख रही मीन, नीर बिन क्या करे।
हाल है बेहाल नंदलाल ओ गोपाल बिन,
कुंज गली प्रेम गली आवें झांक-झांक रे।

यमुना के तीर भरे नीर अब नैनां में है,
कंकरी वे गगरी में मारी ताक-ताक रे।
ध्यान लाया ज्ञान लाया भूल से न प्रेम लाया,
तू ही बता उधो हम हां करें या ना करें।

ज्ञान परदा फाड देगा प्रेम का दिवाना झार,
कहें बार-बार उधो मान-मान मानजा।
उलझ-उलझ मरे कौन ठौर पग धरे,
यहां ज्ञान टिके कहां अब भी पहचान जा।

प्रेम का प्रकाश रास महारास कृष्ण संग,
मूढ़ ज्ञान चादरी को तू भी व्यर्थ तान जा।
प्रेम है रसीला रंग ज्ञान हुडदंग व्यंग,
ठाने मती हठ बात प्रेम हूँ से जानजा।

चाह नहीं परवाह नहीं ए ! उद्धव ज्ञान नहीं मन भावे,
श्याम सलौना से नैन लगे अब क्यूं गुन और हमें समझावे।
प्रीत लगी उस प्रितम से विपरीत कलेजे क्यूं हूंक जगावे,
सरगुण कृष्ण रसीला पिया बिन चैन कहां जो तू ज्ञान सधावे।

प्रेम ही प्रान है, प्रानन में प्रभु, प्रेम पिया संग खूब रही हैं।
क्यू पाती पढावत, छाती जलावत, प्रेम पगी महबूब रही है।
बिछुरे जब से, नहीं चैन परे, इस जीवन से हम उब रही हैं।
नहीं जान सके तुम गोपिन को अरे प्रेम के सिन्धु में डूब रही हैं।

मुक्ति की चाह नहीं, चाह जिन्हें दीजे ज्ञान,
जोग सधवा के उन्हे वैरागन बनाइये।
हम हैं सुहागन उधो, श्याम ते सिंगार करें,
प्यार प्रेम वृन्दावन, प्रेम गीत गाइये।
यहाँ ज्ञान ध्यान लाये, जोग सधवाने आये,
यहाँ प्रेम प्रेम है, और बात ना बढाइये।
गोपी कहें बार -बार, प्रेम प्यार अंग-अंग,
ये है वृन्दावन उधो, मथुरा ही जाइये।

ज्ञान सिखाने मैं आया तुम्हें, सही प्रेम का पाठ मैं सीख चला,
धन्य है प्रेम के पाठक को पढि प्रेम के मारग ठीक चला।
ज्ञान कबान ना बान सधा उर प्रेम बसा कर नीक चला,
सो जन्म रहूं ब्रज की रज में तुमसे यही मांग के भीख चला।

चमकत है बिजरी गरजत घन श्याम श्याम

चमकत है बिजरी गरजत घन श्याम श्याम,
कारे मतवारे बादर भी सुहावना।
बरसत ज्यूं फुवांरे पल पल मेघमाली के,
दादुर गीत गावें जैसे आये हो पावना।
मोरन की शोर मची पीहूं-पीहूं बोलि रहे,
कोयल के मधुर शब्द बारिश बरसावना।
कहता शिवदीन राम सबही को चैन भयो,
करो तो यकीन आया सावन मन भावना।

श्रावन और भादव की कारी घटा कारी रैन 

श्रावन और भादव की कारी घटा कारी रैन,
बोलत मृदु बैन मधुर कोयल मतवारी हैं।
पीहूं-पीहूं बोलत मोर पपैया पुकार करें,
दादुर गीत गावे देख शोभा कछु न्यारी हैं।
बिजरी की चमक चारों ओर में प्रकाशमान,
कहाँ लो बखान करूं बरषा ऋतु प्यारी हैं।
कविता शिवदीन कहो कृष्ण-कृष्ण राधे से,
कृष्ण कहे आज बजी बांसुरी हमारी है।

धन्य है विधना तेरे लेख

धन्य है विधना तेरे लेख।
पढे़ नहीं जा सकते पढ़के, थाके गुनी अनेक।
जिसके भाग्य लिखा सोही होता, लाख लगाये ज्ञानी गोता,
विधी के लिखे कुअंक मिटादे, सो लाखों में एक।
ये चक्कर कर्मो का लेखा, मति अनुकूल समझ से देखा,
गुरू कृपा समझा कुछ तो भी, रहे आंख से देख।
कर्महीन जन शब्द न माने, अनहित और लगे वो जाने,
शुभ पल मिले तजे वहीं श्रद्धा, इसमें मिन न मेख।
याते मौन साधकर रहियो, कभी किसीसे कुछ ना कहियो,
कहे शिवदीन कहा क्या माने, ईश्वर राखे टेक।

समझ नर, मन से सब कोई हारा 

समझ नर, मन से सब कोई हारा।
बडे-बड़े राजा महाराजा, देव दनुज जग सारा।
बनवासी तपसी भी हारे, हार गये तन गोरे कारे,
दश हजार गजबल वारे भी, नागराज अहि कारा।
मन के कारन पड़े भरम में, क्या जाने क्या लिखा करम में,
समझदार व्रत तीरथवारे, मरा न मन, मन ही ने मारा।
बरषो़ जुगों हीं साधन साधा, मन है मन तो सबका दादा,
एक छनक में धूर उड़ा दे, चले न कोई चारा।
कहे शिवदीन संत की दाया, जिस पर भी होजाये भाया,
वह कोई जीते मन को जीते, है वही प्रभु का प्यारा।

बनी रे माधो राधा कृष्ण बनी

बनी रे माधो राधा कृष्ण बनी।
कृष्ण रंगे राधा के रंग में, युगल छवि सोहे ईक संग में,
मोर मुकुट धर, पिताम्बर धर, दमकत शीश मणी।
नंद यशोदा के मन भावन, धन्य-धन्य हैं पतित पावन,
संत विप्र के प्राण, प्राण धन, दीनानाथ धनी।
पग नूपूर पैजनियां बाजे, रतन सिंघासन कृष्ण बिराजे,
शिवदीन मनोहर श्रीराधाजी, संग में सखी सजनी।
युगल छवि शोभा कस बरणो, झांकी देख लेलियो शरणो,
रंग अबीर बरष कर बरषे, बूंटी और छनी।

मनन करूं, मन है कूर कुजात 

मनन करूं, मन है कूर कुजात।
मारत और उडान पलक में, फिर ना आवे हाथ।
सतगुरू बांध रखो मेरे मन को, पर स्त्री चाहे पर धन को,
सतसंगत की बात भुला कर, करे और ही बात।
मन बस होवे कौन विधी से, शंकर नाचे धन्य सिद्धी से,
इन्द्र मुनिन्द्र नचे बहुतेरे, जन की क्या ओकात।
जप तप छांडि बजारां भागे, रैन दिवस सोवे ना जागे,
जंत्र मंत्र कोइ काम न आवे, यो चिघरत दिन रात।
याते अर्ज करूं सुनि दाता, सतगुरू सत्य ज्ञान के ज्ञाता,
शिवदीन दीन पर किज्यो किरपा, संत सयाने तात।

तेर मेर छांडे बिना, देर-फेर फेर पडे 

तेर मेर छांडे बिना, देर-फेर फेर पडे,
उर में हरि हेरे बिना, मिले कहां बावरे।
लगाके लंगोटी बना, वारे वा रोटी दास,
दुनियां की न आस तजी, झूठा तप ताव रे।
पेट भरण भरण हेत करता जागरण मूढ़,
ज्ञान ध्यान भक्ति बिन कहां हर्ष चाव रे।
कहता शिवदीनराम राम-राम राम रिझा,
त्यागो अभिमान मान संत शरण आवरे।

धरे अनेकों स्वांग पेट की खातिर खोटे

धरे अनेकों स्वांग पेट की खातिर खोटे,
केते मूढ़ असंत बने मायावी मोटे।
पाप ताप संताप चढे़ सिर काल नचाये,
झूंठे नमक हराम नहीं हरि के गुण गावे।
बिता रहे उमर बुरे धरे ठगन का वेष,
शिवदीन बचावें रामजी ब्रह्मा विष्णु महेश।
राम गुण गायरे।

स्वांग बना छलिये फिरें बैठे जटा बढ़ाय

स्वांग बना छलिये फिरें बैठे जटा बढ़ाय,
भेष बना साधु तणा मांस मछलिया खाय।
मांस मछलियां खाय शराबी बन कर डोलें,
बाजेगें वही सिद्ध गजब की बोली बोलें।
विप्र छांडी बैठे करम बन कर चोर लबार,
शिवदीन भजन बिन क्या बने डूबेगें मझधार।
राम गुण गायरे।

राम नाम की ओट लिये, करते छल, छलियां 

राम नाम की ओट लिये, करते छल, छलियां,
तिलक छाप की ओट लिये फिरते दिल जलियां।
देते है ताबीज दुनी को ठगते रहते,
मनमाने यह दुष्ट हमेशा बकते रहते।
जटा जूट शिर पर बढ़ा बने सिद्ध महाराज,
शिवदीन इन्हे आती नहीं तनिक जरासी लाज।
राम गुण गायरे।

निपट कपट की खान दुकानें खुली खुल गई

निपट कपट की खान दुकानें खुली खुल गई,
छल बल छाया घोर जोर से गांठ घुल गई।
पाप ताप संताप बढावे ढ़ोंगी साधू,
बाजीगर बन गये दिखावें भैया जादू।
शिवदीन बचो इनसे सभी ये हैं पूत कपूत,
समय पाय खिच जायेगें इनके सगरे सूत।
राम गुण गायरे।

खद्दरधारी खर कई चरग्या चारों कूंट 

खद्दरधारी खर कई चरग्या चारों कूंट,
शिवदीन वोट के कारणे घर-घर फैली झूठ।
आज काल का हाल ये आगे कौन हवाल,
महगांई आवाज दे बढ़-बढ़ कर हर साल।
बढ़-बढ़ कर हर साल दुःखी होगा जन केता,
हुआ देश बेहाल मौज मारे सब नेता।
राम गुण गायरे।

खद्दरधारी कहें करां म्हे भोत भलाई

खद्दरधारी कहें करां म्हे भोत भलाई,
देश भक्त हाँ मगर कभी खुद जावे खाई।
पेट दियो भगवान कह्यां इन तो भरस्या,
लोगों समझो बात और म्हे कांई करस्या।
खेत तणीं म्हे बाड़ ही खांवा खडा-खडा,
शिवदीन अचम्भा क्यू करो खर नेता बड़ा-बड़ा।
राम गुण गायरे।

नगर-नगर हर गांव-गांव में जो है बस्ती

नगर-नगर हर गांव-गांव में जो है बस्ती,
सभी ठौर इक रंग मिले ना चीजां सस्ती।
दो नम्बर का काम काम तो करबो सीखो,
नेतां से जा मिलो फेर रंग पडे न फिको।
अटपट भाषा बोलकर देश भक्त कहलाय,
देश धर्म निरपेक्ष है को शिवदीन सहाय।
राम गुण गायरे।

भारत धारत धीर धीर का धीरज छूटे

भारत धारत धीर धीर का धीरज छूटे,
देश भक्त बलवान डरें क्यों चौडे लूटे।
खद्दर चद्दर ओढ यही है बख्तर रण का,
धन्य शिरोमणी देश हो गया अग कण-कण का।
दिन में अरु दोपहर में लूटे आधी रात,
कौन सुने शिवदीन अब दुःखी जनों की बात।
राम गुण गायरे।

श्रद्धा सेवा भाव प्रेम अनुराग रहा ना

श्रद्धा सेवा भाव प्रेम अनुराग रहा ना,
कपट पाप पाखंड करे मानव मनमाना।
द्वेष ईर्ष्या जलन मूर्खता छाई जग में,
कंकर कांटे मूढ़ बिछावे सुथरे मग में।
बैर अकारण ही करें करें अनीति घोर,
शिवदीन समय बलवान है चले न कोई जोर।
राम गुण गायरे।

जीवत गारी लाख दें मरत ही घाले बार

जीवत गारी लाख दें मरत ही घाले बार,
जीवत भूख निकार हैं मरे मिठाई त्यार।
मरे मिठाई त्यार यार क्या कहना जग में,
मरे देत सुखसेज बिखोरे माया (तारा) मग में।
अंधकार संसार में भज मन सीताराम,
शिवदीन चले ना संग में कोई तन धन धाम।
राम गुण गायरे।

माता चुप हो बैठ जा बेटा बोले बोल

माता चुप हो बैठ जा बेटा बोले बोल,
बूढ़ा-बूढ़ी हो गई नहीं मेरे घर पोल।
नहीं मेरे घर पोल पडी या दुनियां सारी,
गारी देने लगी और बेटा की नारी।
कौन सुने किससे कहें कुंवें पडगी भांग,
शिवदीन उघाड्या लाजसी कोई सी भी जांघ।
राम गुण गायरे।

टेलीवीजन हर घरां देखे नंगा नाच 

टेलीवीजन हर घरां देखे नंगा नाच,
आगी लागी सब जगह क्यूं न लगेगी आंच।
क्यूं न लगेगी आंच जलेगें जल जायेगें,
सुबह नही तो शाम गर्त में सब जायेगें।
न्याय नीति मर्याद सब तोडें मूरख लोग,
औषध क्या शिवदीन अब बाढ़ि रहा भव रोग।
राम गुण गायरे।

अगनित जग से चले जा रहे

अगनित जग से चले जा रहे।
कर विवेक देख तो मनडा, बुरे जा रहे भले जा रहे।
कायम नहीं मुकाम जगत में, भजले रे मन राम जगत में,
नाता संत सजन का सच्चा, विघ्न अनेकों टले जा रहे।
राम नाम शुभ नाम निरंतर, सत्य नाम सियाराम हरि हर,
बेटा पोता काम न आवे, अंत आंख दो मले जा रहे।
धनबल जनबल व्यर्थ अकलबल, तनबल झूंठा जाय सकलबल,
राम नाम बल पार लगावे, बाकी योधा हिले जा रहे।
कहे शिवदीन समझ मन मेरा बनिहों संत चरन का चेरा,
राम नाम हिरदय धरि देखो, खलजन फांसी घले जा रहे।

वसंत के पद

शारदा सरावे बसंत गुन गावे गुनी,
सुन्दर हरियाली देख चहुं और छाई है।
पीरे फूल फूल-फूल फूलन के डारि उपर,
बैठ-बैठ पक्षीगण चह-चह मचाई है।
बज रहे अनूप चंग रंग रंगन को घोल घोल,
मानव पर मानव रंग डारत हरषाई है।
कहता शिवदीन बजी अनुपम अनोखी बीन,
साज बाज सहित आज रितु बसंत आई है।।

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हरी हरी हरियाली देखि-देखि मानव मगन,
कहता शिवदीन मधुर रसीली आवाज है।
गा रहे कमाल गीत छाई चहुं ओर प्रीत,
बज रहा मृदंग चंग व सुरंग साज है।
उड रहा गुलाल लाल सुनते हैं धमाल लाल,
सबके उर उमंग धन्य आया रितुराज है।
आनन्द के रूप संत महिमा है अनंत कोटि,
यह बसंत क्या बसंत हां बसंत आज है।।

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आई तू बसंत पता लाई है बतादे कछु,
फूले फूल, फूल रहे क्या-क्या और बात है।
केसरियाँ रंगे है वस्त्र रंग-रंग छाया रंग,
हृदय में उमंग मानव फूले ना समात है।
मंगल सुमंगल रूप ऐसा अनुराग जगा,
एहो रितुराज तेरा स्वागत दिन रात है।
कहता शिवदीन राम समय शुभ सराने योग,
एरी! ए! बसंत बता कहां संत तात है।।

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आई तू बसंत रंग लाई तू बसंत,
प्यार छाई तू बसंत, प्रेम साज से सलूनी है।
बजा-बजा ताल मस्त, गा रही धमाल मस्त,
मौसम बहार चहूं ध्वनि और दूनी है।
नहीं नये लोग जाने गाते मुनी मस्त गाने,
नई-नई बात नहीं बात बहुत जूनी है।
कहां वे उमंग चंग कहां वो बसंत रंग,
कहता शिवदीन प्रेमी संत बिना सूनी है।

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प्रेम भरा अनुराग भरा ये बसंत धरा पर प्यार ले आई।
लाल गुलाल अबीर उडे फल फूल अनुपम सार ले आई।।
साज अवाज अहो स्वर ताल कमाल करे फल चार ले आई।
शिवदीन प्रवीन यकीन करो शुभ संत बसंत बहार ले आई।

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चहूं ओर आनन्द अबीर उडे ये बसंत-बसंत बसंत है भाई।
मारत हैं पिचकारी भरी अहो गेरत हैं सब रंग सवाई।।
चंग मृदंग बजे मधुरे धुन मस्त धमाल बहार यू छाई।
शिवदीन का प्यार बसंत व संत ये याद मुझे प्रभु संत की आई।।

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ऋतुओं का राजा धन्य साज बाज साजा,
बज रहे बाजा ऋतु अमृत बरसावनी।
सुखद पवन चली सखियां नांच रही आली,
राधेबर श्याम श्यामा मौसम मन भावनी।
बगिया फूल फूले राधे रची रंग झूले,
देख-देख देखो हरि हरियाली छावनी।
कहता शिवदीन राम छवि छटा बरने कवि,
ऐजी महाराज आज आई बसंत पावनी।

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छाई-छाई हरियाली चहूँ ओर ठौर- ठौर,
प्रेमलता बागन में गीत मधुर गा रही।
फूल-फूल झूल रहे मोगरा महक महक,
चम्पा चमेली चमक अमर बीज बा रही।
बाजते मृदंग चंग रंग ओ अबीर उडे़,
समझो तो सही बात मौसम समझा रही।
कहता शिवदीन मस्त महिना माघ फाग का,
सज्जन जन निहारो यारो बसंत लहर आ रही।

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प्रेम प्यार रंग संग हृदय में उमंग भरा,
धन्य धन्य ये धरा तू बसंत आ गई।
लहर-लहर लहर ये शहर ग्राम-ग्राम में,
वृक्ष पात-पात में बसंत ही समा गई।
फूल-फूल फूल के मस्त झूल-झूल के,
नर और मादा में भी मस्ती खूब छा गई।
कहता शिवदीन पवन सुगंधित सुहानी चली,
कली-कली दिल की खिली अमि सुधा पा गई।

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मन में है उमंग हृदय रंग-रंग रंग भरा,
राम कृष्ण संग सुखदाई तू बसंत है।
नाना भंति की अबीर प्यारे डारु रघुबीर उपर,
कृष्ण पे गुलाल मन भाइ तू बसंत है।
ब्रह्मा शिव विष्णु पे प्रेम पिचकारी डारु,
संत चरण चूमू उर छाई तू बसंत है।
कहता शिवदीन लाल चंग साज-साज लाई,
आई तू बसंत आज आई तू बसंत है।

ग़म

गम में गमगीन, गमें गम में,
गम में रम के, गम और रमायें।
कोउ पूछे कहाँ, हमसे बतियां,
हममे गम हैं, हम गम में समाये।
गम खा के रहे, गम खा के जिये,
गम गीत सदा, गम के हम गाये।
गम देख खिले, अहा खूब मिले,
शिवदीन गमों से, ना आंसू बहायें।।

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भोर भये, गम खा के रहे,
और शाम की शाम, रहे गम खाये।
दिन बीत गये, गम-खा, गम-खा,
गम खा हमनें, कई बरस गमाये।
जो भी मिला, गम दे के मिला,
गम ले के भला, हम और सरायें।
गम खूब गिरे, गिरते-गिरते,
शिवदीन गमों को, भला करी पायें।।

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गम गामता है, यह बडा गम है,
गम्भीर बना, गम की बलिहारी।
गम मीठा सा, मीठा लगा, गम तो,
गम खा के ये जिन्दगी, खूब गुजारी।
तलाश खुशी की, करी करते,
गम और मिले, मोहे आगे अगारी।
शिवदीन गमों से, मोहब्बत है,
फिर क्यो न रहे, गम में होशियरी।।

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गम ताजा है राजा न बासी बुरा,
गम खाय के देखलो मानव जानो।
गम खा प्रहलाद मरा न जरा,
घ्रुव खा के गया गम वो पहिचानो।
संत सदा गम खाय बने,
वे धारे गरीब नवाज को बानो।
शिवदीन गमों से मिलो तो मिलो,
गम सार सदा कोऊ मानो न मानो।।

कृष्ण तेरी राधा गजब करे

कृष्ण तेरी राधा गजब करे।
तेरे को या अधर नचावत तू मन मौद भरे।
कृष्ण रूप धर राधा आवे इसका भेद कोई नहीं पावे,
तू क्या जाने कृष्ण कन्हैया इससे जगत डरे।
कुंज गली में गली-गली में सबसे कहती हूं हीं भली मैं,
नट खट श्याम बतावें तोकूं समझो हरे हरे।
पाय़ल की झणकार सुणाकर कुछ तूं भी मन माहीं गुणाकर,
य़ा मनमानी करत लाडली ना निचली रहत घरे।
सब अपराध क्षमा कर मेरे शिवदीन कहत है हित में तेरे,
मान मान मत मान श्याम श्यामा को क्यूं न बरे।

सुधि मोरी काहे बिसराई नाथ

सुधि मोरी काहे बिसराई नाथ।
बहुत भये दिन तड़फत हमको तड़फ तड़फ तड़फात।
अब तो आन उबारो नैया अपने कर गहो हाथ।।
अवगुन हम में सब गुन तुम में फिर काहे ठुकरात।
हम जो पूत कपूत हैं तेरे तुम हमरे पितु मात।।
नयन नीर भर आये हमरे बरसा ज्यों बरसात।
तुम बिन हमरी कौन खबर ले दिन सब बिते जात।।
अपने को अपना कर राखो कबहु न छाड़ो हाथ।
शिवदीन तुम्हारा गुण नित गावे ऊठत ही परभात।।

राम चरण चित लागी

राम चरण चित लागी, सुरता राम चरण चित लागी।
लागत ही सब पाप, साफ बहे, दुर्मति दिल से भागी।
प्रेम प्रवाह बह्यो घट भीतर, ज्योती उर में जागी।
मानस पट से तामस हटकर, राजस की सुध त्यागी।
भाव भक्ति से सदगुण व्यापे, भये प्रेम अनुरागी।
इड़ा पिंगला और सुषुम्ना, निज निज गती बतागी।
अजपा जप के मधुर शब्द से, अनहद नाद जगागी।
अष्ट सिद्धी सब लारें लागे, जो रसना अमृत पागी।
शिवदीन राम लख तत्व ज्योति को, ज्योति में ज्योति समागी।

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