पद / 1
जिला जु आजमगढ़ अहै ता महँ एक बिचित्र।
ग्राम कोइरियापार के कवि द्विज रामचरित्र।
ताको कन्या एक मैं मूर्ति मूर्खता केरि।
कुलवंतिन-पद धूरि अस गुणवंतिन की चेरि॥
मम शिक्षक कोउ और नहिं निज ही पिता सुजान
कठिन! परिश्रम करि दियो विद्या-दान महान॥
पद / 2
प्रथम पढ़ायो ब्याकरण पुनि कछु काव्य-विचार।
तदनन्तर सिखयो गणित बहुरि सुरीति प्रकार॥
तब कछु उर्दू फारसी बँगला वर्ण सिखाय।
कुछ अँगरेजी अक्षरन पितु मोहिं दीन्ह दिखाय॥
ध्यान हू न होय जाको तव प्रीति ताकी दीठि,
फेरिबे की पूरी अधिकारी झनकारी है।
करहु कदापि अंगीकार ये सिंगार नाहिं,
पतिब्रत-धारी सुनो बिनय हमारी है॥
पद / 3
नारी-धर्म अनेक हैं, कहौं कहाँ लगि सोय।
करहु सुबुद्धि विचार ते, तजहु जु अनुचित होय॥
हानि लाभ निज सोचि कै, काजहि होहु प्रवृत्त।
सुख पायहु तिहँ लोक में, यश बाढ़ै नित नित॥
ऐसी नहीं हम खेलनहार बिना रस-रीति करें बरजोरी।
चाहै तजौ तजि मान कहौ फिरि जाहिं घरे वृषभानु-किशोरी॥
चूक भई हम से तो दया करि नेकु लखो सखियान की ओरी।
ठाढ़ी अहै मन-मारि सबै बिन तोहिं बनै नहिं खेलत होरी॥