सपने
दिन के कन्धों पर लटके है
वेतालों से सपने
मजबूरी है सुननी ही है
नित इक नई कहानी
घोड़े हाथी की
राजा रानी की वही पुरानी
कुटिया में फिरते रहतें हैं
दिक्पालों से सपने
झूठ ओढ़ कर मौन रहे तो
चूर चूर होना है
सच बोले तो नए सिरे से
बोझे को ढोना है
थका थका दिन और-
चतुर मायाजालों से सपने
मुक्ति यत्न प्रश्नों की-
प्राचीरों में दिखते बेबस
समाधान के साथ हर दफ़ा
मिले नए असमंजस
अट्टहास कर रहे दशा पर
वाचालों से सपने
हम अधरों-अधरों बिखरेंगे
तुम पन्नों पर सजे रहो
हम अधरों-अधरों
बिखरेंगे
तुम बन ठन कर
घर में बैठो
हम सडकों से बात करें
तुम मुट्ठी में
कसे रहो हम
पोर पोर खैरात करें
इतराओ गुलदानों में तुम
हम मिट्टी में
निखरेंगे
कलफ लगे कपडे
सी अकड़ी
गर्दन के तुम हो स्वामी
दायें बाए आगे पीछे
हर दिक् के
हम सहगामी
हठयोगी से
सधे रहो तुम
हम हर दिल से गुजरेंगे
तुम अनुशासित
झीलों जैसे
हल्का हल्का मुस्काते
हम अल्हड़ नदियों
सा हँसते
हर पत्थर से बतियाते
तुम चिंतन के
शिखर चढ़ो
हम चिंताओं में उतरेंगे
गीत बुने हैं हमने
बारिश के धागों से
गीत बुने हैं हमने
नम तो होंगे ही
साँसों की बढ़ती
झुंझलाहट को जाँचा
थकी थकी पैड़ी की
आहट को बाँचा
बूँदों के मटकों पर
सूत मथे जीवन के
भीगे से सीले से
भ्रम तो होंगे ही
लहर लहर खंगाली
धारों को फटका
रेतीली चादर का
तार तार झटका
पल पल को भटकाया
है उजड़े द्वीपों पर
शब्दों में गीले
मौसम तो होंगे ही
कितना बुरा हुआ
अच्छा करना अच्छा कहना
कितना बुरा हुआ
कुछ नज़रों ने खिल्ली मारी
कुछ ने फेका कौतुक
कुछ ने ढेरों दया दिखा कर
बोला ‘बौड़म भावुक’
बिना मुखौटा जग में रहना
कितना बुरा हुआ
कुछ ने संदेहों के चश्मों
के भीतर से झांका
कठिन मानकों पर मकसद को
बहा पसीना आँका
सच्चा होना, सच को सहना
कितना बुरा हुआ
कुछ ने बेबस माना, हमदर्दी का
हाथ बढ़ाया
कुछ ने ‘अच्छा’ होने का सब
बुरा-भला समझाया
अपनी धार पकड़ कर बहना
कितना बुरा हुआ
सुनो सांता
सुनो सांता,
इस क्रिसमस पर
जो हम बोलें देखो बस तुम
वो ही लाना
टाफी बिस्कुट भले न हों पर
आशा हो कल की रोटी की
तनिक-मनिक-सी हँसी साथ में
और दवाई भी छोटी की
लगे ज़रा भी
यदि तुमको यह गठरी भारी
अपनी सोच-समझ से तुम
फेहरिस्त घटाना
सुनो सांता
गुम दीवारों के इस घर में
ठण्ड बहुत दंगा करती है
बिना रजाई कम्बल स्वेटर
बरछी के जैसी चुभती हैं
अगर बहुत महँगा हो यह सब
छोडो, लेकिन,
बेढब सर्द हवाओं को
आ धमका जाना
सुनो सांता
चलो ठीक है खेल-खिलौने
लाओगे ही, ले आना पर,
छोटा-सा बस्ता भी लाना
जिसमे रख लेना कुछ अक्षर
जिंगल-विंगल सीख-साख के
गाके-वाके
है हमको भी
तुमको अपने साथ नचाना
चकाचौंध पंडालों की
चकाचौंध पंडालों की इस बरस त्याग कर
नमो नमो माँ अम्बे अब की
नौ राते कुछ अलग मनाओ
उस खोरी को चलो
जहाँ सीला है क्षण-क्षण
सीली सीली आँखें हैं
सीले से दर्पण
अंधियारा है गगन जहाँ
धरती अंधियारी
हंसते हैं आभाव जहाँ
पर पारी-पारी
निरंकार है जोत तुम्हारी
यदि सच में माँ
अंधियारी खुशियों में भी
कुछ रोज़ बिताओ
जहाँ पतीली में पकती हैं
सिर्फ करछियाँ
सांस सांस पर नाच रहीं हैं
जहाँ पसलियाँ
स्वप्न जहाँ पर खुद ही खुद से
ऊब चुके हैं
आँखों के काले घेरों में
डूब चुके हैं
दुख हरनी, सुख करनी हो तुम
यदि सच में माँ
इन गलियों में हुनर ज़रा
अपना दिखलाओ
क्यों बेटी जीवन से पहले
मर जाती हैं
क्यों सड़कों की आँखों से वह
घबराती है
जयकारों का मोह त्याग
स्वीकारो सच को
पहचानो स्वांगों के
बहुरंगी लालच को
असुरमर्दिनी, विजया हो तुम
यदि सच में माँ
शातिर परम्पराओं में
जी कर बतलाओ
शहनशाही मन
खंडहर तन
की हवेली में अकड़ कर
घूमता है
शहनशाही मन
टहलती है
बुझ चुकी चिंगारियों की
सर्द गरमी
सख्त पत्थर की हथेली
खोजती है
तनिक नरमी
खुरखुरी
दीवार की झड़ती सतह पर
लीपता हैं
भीगते सावन
हाथ में रख
अनगिनत किस्सों कथाओं
की सुमरनी
जप रहा है
भोर से जाती निशा तक
बार कितनी
झींगुरों की
परुष ध्वनियों में निरन्तर
खोजता है
कुहुरवी गुंजन
चूल्हा और किसी के घर का
चूल्हा और किसी के घर का
किसी और का है भंडारा
और किसी का पत्तल-दोना
किसी और का है चटकारा
यहाँ वहाँ से मांग-तांग कर
हल्ला-गुल्ला, गर्जन-तर्जन
बहरे कानो ने लिख डाले
जाने कितने क्रंदन-कूजन
राम राम जप धरा जेब में
माल पराया मीठा-खारा
फुटपाथों की भोर-निशाएँ
‘पाँच सितारा’ ने रच डाली
भरे हुए पेटों ने परखी
भूख-प्यास की रीती थाली
पनही गाये फटी बिवाई
ले सिसकारी का इकतारा
खुले व्योम ने लिखी कथाएँ
पिंजरे वालों के पाँखों की
नदियों ने खींची तस्वीरें
तृषा भरी जलती आँखों की
कुल-कुनबे के गीत रच रहा
गलियों में फिरता बंजारा
जिया न जिन साँसों को हमने
शोध किया जी भर कर उन पर
शर्मिंदा करते हैं कह अब
पन्नो के अकड़े हस्ताक्षर
हम उन पृष्ठों के मालिक हैं
जिन पर कुछ भी नहीं हमारा