पद / 1
राधा चरन की हूँ सरन।
छत्र चक्र सुपह्म राजत सुफल मनसा करन॥
उर्ध्व रेखा जब धुजादुति सकल सोभा धरन।
मंजु पद गज-गति सु कुंडल मीन सुबरन बरन॥
अष्ट कोन सुवेदिका रथ प्रेम आनँदभरन।
कमल-पद के आसरे नित रहत राधा-रमन॥
काम-दुख संताप-भंजन बिरह-सागर तरन।
कलित कोमल सुभग सीतल हरत जिय की जरन॥
जयति जय नव नागरी पद सकल भव-भयहरन।
जुगल प्यारी नैन निरमल होत लखि लखि किरन॥
पद / 2
जुगल-छबि कब नैनन में आवै।
मोर मुकुट की लटक चन्द्रिका सटकारो लट भावै॥
गर गुंजा गजरा फूलन के फूल से बैन सुनावै।
नील दुकूल पीत पट भूषण मनभावन दरसावै॥
कटि किंकिनि कंकन कर कमलनि कनित मधुर धुनि छावै।
‘जुगल प्रिया’ पद-पदुम परसि कै अनत नहीं सचुपावै॥
पद / 3
माई मोकों जुगल नाम निधि भाई।
सुख संपदा जगत की झूठी आई संग न जाई॥
लोभी को धन काम न आवै अंतकाल दुखदाई।
जो जोरे धन अधम करम तें सर्बस चलै नसाई॥
कुल के धरम कहा लै कीजै भक्ति न मन में आई।
‘जुगलप्रिया’ सब तजौ भजौ हरि चरन-कम मन लाई॥
पद / 4
दृग तुम चपलता तजि देहु।
गुजरहु चरनारबिन्दनि होय मधुप सनेहु॥
दसहुँ दिसि जित तित फिरहु किन सकल जग रस लेहु।
नै न मिलिहै अमित सुख कहुँ जो मिलै या गेहु॥
गहौ प्रीति प्रतीति दृढ़ ज्यों रटत चातक मेहु।
बनो चारु चकोर पिय मुख-चन्द छबि रस एहु॥
पद / 5
प्रीतम रूप दिखाय लुभावै।
यातंे जियरा अति अकुलावै॥
जो कीजत सो तौ भल कीजत अब काहै तरसावै।
सीखी कहाँ निठुरता एतो दीपक पीर न लावै॥
गिरि के मरत पतंग जोति है ऐसेहु खेल सुहावै।
सुन लीजै बेदरद मोहना जिनि अब मोहिं सतावै॥
हमरी हाय बुरी या जग में जिन बिरहाग जरावै।
‘जुगल प्रिया’ मिलिबो अनमिलिबो एकहि भाँति लखावै॥
पद / 6
बाँकी तेरी चाल सुचितवनि बाँकी।
जब हीं आवत जिहि मारग हौ झुकम झुकम झुकि झाँकी॥
छिप छिप जात न आवत सन्मुख लखि लीनी छबि छाकी।
‘जुगल प्रिया’ तेरे छल-बल तें हौं सव ही बिधि थाको॥
पद / 7
नैन मोहन रूप छकेरी।
सेत स्याम रतनारे प्यारे ललित सलोने रँग रँगे री॥
बाँकी चितवनि चंचल तारे मनो कंज पै खंज अरे री।
‘जुगल प्रिया’ जाके उर भाये अधिक बावरे सोई भये री।
पद / 8
सखी मेरी नैननि नींद दुरी।
पिय सों नहिं मेरो बस कछु री,
तलफि तलफि यों ही निसि बीतति नीर बिना मछुरी॥
उड़ि उड़ि जात प्रान-पंछी तहँ बजत जहाँ बँसुरी।
‘जुगल-प्रिया’ पिया कैसे पाऊँ प्रगट सुप्रीति जुरी॥
पद / 9
नैन सलौने खंजन मीन।
चंचल तारे अति अनियारे, मतवारे रसलोन॥
सेत स्याम रतनारे बाँके, कजरारे रँग भीन।
रेसम डोरे ललित लजीले, ढीले प्रेम अधीन॥
अलसौं हैं तिर छौहैं भौहैं नागरि नारि नवीन।
‘जुगल प्रिया’ चितवनि में घायल हौवै छिन-छिन छीन॥
पद / 10
धरायो तबहिं बियोगी नाम।
जा दिन ते गुरुचरन चन्द्र नख अथये ललित ललाम।
ता दिन ते हों बिकल बावरो बसत बिरह के गाम।