हाय
हर सुबह लहू से लथपथ है, हर शाम अनय से काली है ।
मानवता लगता लुप्त हुई, अब दानवता की पाली है ॥
यह कैसा पवन प्रवाहित है ।
कण-कण में भीति समाहित है ।
शव की सीढ़ी मनुपुत्र चढा-
क्या पाने को लालायित है ।
चेतना शून्य जड़ जीव बना, बुद्धि विवेक से खाली है ।
हर सुबह लहू से लथपथ है, हर शाम अनय से काली है।
खेतों में उगते छल प्रपंच ।
सिंचित हो हो कुक्चिारों से ।
शहरों में बंटते द्वेष द्वन्द-
अभिसिक्त स्वार्थमय नारों से ।
अंकुरण बंद अनुराग नेह, रसहीन यहाँ हरियाली है।
हर सुबह लहू से लथपथ है हर शाम अनय से काली है ।
माता का
आंगन मुरझाया।
गुमसुम गुलाब बेकल बेली ।
गुंजन परिवर्तित क्रंदन में-
गायब तितली की अठखेली ।
हर ओर काल का गाल बढ़ा, हर ओर लपकती ब्याली है।
हर सुबह लहू से लथपथ है, हर शाम अनय से काली है।
नारी
करुणा की जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी
सदियों की यह व्यथा मलिन मन की मनमानी
जनम दिया उसने हमको और अपना दूध पिलाया
हम सो जायें जाग-जाग कर जिसने रैन बिताया
सारी दुनियाँ छोड़ नेह बंधन हमसे बंध जाता
हमको आये छींक चैन पल में उसका उड़ जाता
उससे बढ़कर क्या दाता है, क्या कोई बलिदानी
करुणा का जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी।
हँस हँस कर सहती पीड़ा मन की मन ही में मारे
फूल लुटाया है हम पर और लिया सदा अंगारे
जो कुछ हमने दिया उसी में कर संतोष दिखाया
त्याग, तपस्या, प्रेम, स्नेह कर, कर के हमें सिखाया
उसके मन की थाह यहाँ कब किसने है जानी
करुणा की जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी ॥
माता बनकर पाला पोसा बहना बनकर प्यार किया
बनी संगिनी जीवन भर की जन-जन का उपकार किया
सुख में पीछे दुख में आगे ही रहती जो आई
संग साथ रहती जीवन भर बनकर जो परछाई
उसकी कदर कहाँ की हमने, व्यर्थ बने है ज्ञानी।
करुणा की जो स्त्रोत उसी की करुण कहानी ॥
कलिमल हारिणी
हरित भू की हरितिमा तू धवल धारा धारिणी ।
मात गंगे नव तरंगें सकल कलिमल हारिणी ॥
विष्णुपद नख वासिनी,
पुनि बिधु कमंडलु हासिनी ।
गृह हिमंचल लासिनी,
शिव जटा जूट विलासिनी ।
कपिल मुनि के कोप शापित, सगर सुत उद्धारिणी ।
मात गंगे नव तरंगें सकल कलिमल हारिणी ॥
पाप मोचन जगत की.
वरदान सुन्दर मात रे ।
शिव प्रिया सुखमय सुधा,
जयगान दिवस रात रे ।
नृप भगीरथ की तपस्या, विद्यापति कवि तारिणी
मात गंगे नव तरंगें सकल कलिमल हारिणी ॥
हिम शिखर का वेग हो
या, कला समतल धार की ।
हो नहीं सकती प्रशंसा,
मात के व्यापार की।
पापहारी मोक्ष दातृ, जीव बंध निवारिणी ।
मात गंगे नव तरंगें सकल कलिमल हारिणी ॥