मज़दूरों के लिए
एक
श्रम के आँच में जल-जलकर
बहे हुए लहू-पसीने के कतरे-कतरे को
चूमा जाएगा
चूमा जाएगा उन कतरों को
चमन के फूलों की तरह नहीं
शहीदों को सलामी की तरह
एक दिन..!
दो
जो लड़े हैं हमेशा
मिट्टी और कुदाली से
अरे ! उनको… उनको पूजो
चूमो उनके मस्तकों पर हर-हर
झर-झर बहे हुए
सोना-चान्दी से बेशक़ीमती
उनके पसीने को चूमो
चूमो यार !
उन्हें चूमो
कि जिनके दम से
ये दुनिया ख़ूबसूरत दिखती है…!
तीन
हम मज़दूर हैं
मेहनत की शमा पर फ़िदा परवाने हैं
हम श्रम की आग में जल-जलकर राख होते हैं
तो जीता सारा ज़माना है !
चार
मुश्किलों में जीने वाले मज़दूरों
तुम्हें पता है कि
मौत क्या होती है
मगर
उन्हें पता नहीं
जो तुम्हारी हाड़तोड़ मेहनत की अमूल्य कमाई को
खाकर
सिर्फ अ ल ल ल उल्टियाँ करते हैं !
5
दिल जिगर छील के तुमने
इस दुनिया को,
दुनिया की दीवारों, महलों, मीनारों,
कल-कारखानों,
सड़कों, रेलमार्गों, खेतों को ख़ूबसूरत बनाया
तुम्हारे ही दम ने
अनगिनत ज़िन्दगियों की नींव को धँसाया
तुम्हारे ही बल पर
दुनिया के पूँजीपति-बनिया व्यापारी
चान्दी काटते हैं बड़ी मौज़ से !
तुम्हारी ही मेहनतकश हथेलियों की नरम मिट्टी पर
उगते आए हैं जीवन प्यार इनसानियत के सुन्दर-सुन्दर वनफूल !
अरे ! तुम्हारे जैसे अनमोल रत्नों को
कौन चटाता है क़दमों की धूल
कौन धँसाते है तुम्हारे हिये में शूल !
आओ, मजदूरों ! सभी आओ,
देखते हैं किसके ज़िस्म में कितना लहू है
किसकी पीठ पर कितना चूता है पसीना
किसकी आँखों में कितनी नदियों का पानी है
किसकी रूह में सबसे ज़ियादा गम है
आ, मजूर भाई, आ
सब साथियों को अपने साथ लेकर आ
देखते हैं किसके अन्दर
कठोर चट्टानों को तोड़कर
सात समुन्दर पार फेंक देने का दम है
आ, मजूर भाई, आ
सब साथियों को अपने साथ लेकर आ
देखते हैं कि तलवारों के नोक पर
अँगारों की लपटों पर
और मेहनतकशों के हथियारों की धारों पर
एक साँस में चलने के
साहसी किसके क़दम हैं
कि किसमें कितना खटने की हिम्मत है, लगन है
आ, मजूर भाई, आ
सब साथियों को अपने साथ लेकर आ
देखते हैं कि
श्रम के धधकती शमा पर फ़िदा परवाना बनकर
जल-जल के मर-मर जाने वाली
किसकी जवानी दीवानी है….!!
किसमें कितनी नौजवानी है… !!
मैं प्यार करता हूँ इस देश की धरती से…
मैं प्यार करता हूँ इस देश की धरती से
इस देश की धरती के हरे भरे वनों, जँगलों से,
वनों-जँगलों में चहचहाने वाली तमाम चिड़ियों से,
इस देश की धरती के खेतों से
खेतों में खटने वाले वाले मज़दूर-किसानों से
मैं प्यार करता हूँ
मैं प्यार करता हूँ
जिनके हाथ श्रम के चट्टानों से रगड़-रगड़ा कर
लहूलुहान हो चुके हैं
जिनकी पीठ और पेट एक में सट चुके हैं
भूख व दुख से
मैं प्यार करता हूँ उनसे
जिनकी समूची देह
खतरनाक रोगों से कृषकाय बन चुकी है
मैं प्यार करता हूँ
मैं प्यार करता हू~म
इस कपिली नदी से
इस कपिली नदी के तट पर की बांस की झाड़ियों से
जिनसे हमारी घरों की नीव धँसी-बनी
जिस नदी के सहारे
मैं और मेरा गाँव और मेरे गाँव की तमाम खेती-बाड़ी
ज़िन्दा है
मैं प्यार करता हूँ
प्यार करता हूँ मैं
अपने हाथों के श्रम के धारे से
मैं प्यार करता हूँ
गाय, बैल, हल, हेंगा, जुआठ, खुरपी-कुदाल से
प्यार करता हूँ
मैं प्यार करता हूँ उनसे
जिनकी समूची देह श्रम के लोहे की छड़ों से
रूई-सी बुरी तरह से धुनी जा चुकी है
मैं प्यार करता हूँ….
प्यार करता हूँ मैं….
अपनी इस जर्जर देह से
जिसका अनमोल रतन दूहा जा चुका है !
कोई अपना नहीं है अपनी सी लगती इस दुनिया में
मेरी फटती छाती और पीठ पर
उऽऽउफ़्फ़ !
कितने घाव हैं ?
उऽऽउफ़्फ़ !
उऽऽउफ़्फ़ !
कि कोई अपना नहीं है अपनी सी लगती
इस दुनिया में ।
कि एक मामूली मजबूर मजूर के घावों के भीतर
टभकते
कलकलाते मवाद को
धीरे-धीरे-धीरे आहिस्ते-आहिस्ते
और नेह-छोह के साथ
कोई काँटा चुभो दे
फोड़कर
उसे बहाने के लिए…उऽऽउफ़्फ़ !
कि कोई अपना नहीं है अपनी सी लगती
इस दुनिया में ।
ओह !
कितनी पराई दुनिया है ना ‘मोहन’
कि समझती नहीं
कोमल आह
हमारे जैसे बेबस मज़दूरों की !
उफ़्फ़ !
कि कोई अपना नहीं है अपनी सी लगती
इस दुनिया में
इसलिए आज भोर से ही बारिश हो रही है
कल धरती सूखे से चुपचाप रो रही थी
इसलिए
आज भोर से ही बारिश हो रही है
कल रो रहे थे
मेरे गाँव-गिराँव के श्रमिक किसान भाई भी
इसलिए
आज भोर से ही बारिश हो रही है
इस बारिश से
खेतों में रोपे गए मरिचा बैंगन बाजरे के बीज को
जीने के लिए नया बल मिल रहा है
जीने के लिए नया बल मिल रहा है
कृषकों के कृशकाय देहों में !
इसलिए आज भोर से ही बारिश हो रही है
हो रही है बारिश इसलिए
कि कपिली नदी के बीचो-बीच पानी कम था
बालू-पत्थर-कंकण ज़्यादा थे
और कपिली नदी के आर-पार बसने वाले
चिरई-चुरूँग
वन-जंगल
बांस, वनफूल बहुत प्यासे थे !
कि हो रही है बारिश
इसलिए कि गेहूँ के खेत ख़ाली हो गए हैं
अब खेत में नमी तो चाहिए ही
अब खेत तो जोतना ही है हलों-ट्रैक्टरों से
नई फ़सल रोपने के लिए
कि हो रही है बारिश
इसलिए कि
खेती में
बहे हुए लाल-लाल लहू के
दाग-धब्बे भरे निशानों को
धोना है मल-मल कर
और तैयार हो जाना है फिर
कमर कस कर
कलेजे में असीम साहस, लगन और हिम्मत भरकर
नई खेती में
असीम-असीम लहू-पसीने को
खाद की तरह छींट-छींट कर मिलाने के लिए..!!!
!