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माँ शारदे ! तुमको नमन

श्वेतवर्णा ! भारती ! माँ गोमती ! माँ श्वेतानन!
ज्ञानमुद्रा ! वरप्रदा ! माँ शारदे ! तुमको नमन l

मैं अकिंचन, निरालम्बी सामने कबसे खड़ा,
माँ मुझे तुम दो सहारा, मैं चरण में हूँ पड़ा,
सर्वव्यापी शक्ति हो माँ, तुम धरा तुम ही गगन।

तुम कला साहित्य और संगीत की हो चेतना,
देवता भी बनके साधक करते हैं आराधना,
ज्ञान का आशीश दो माँ, रख सकूँ नि:स्वार्थ मन।

ज्ञान बिन मैं माँ अधूरा, मुझको विद्या दान दो,
भाव, पिंगल, शब्द भरकर गीत में नवप्राण दो,
माँ तुम्हारी ही कृपा से गा रहा हूँ मैं भजन l

शिवरात्रि का पर्व

शिवरात्रि के पर्व की, महिमा अगम अपार।
गौरी से जब शिव मिले, हुआ जगत विस्तार।।

गौरी माता मूल है, शिव जग के विस्तार।
शक्ति और शिव ने रचा, यह सारा संसार।।

होता है शिव भक्ति से, विघ्नों का प्रतिकार।
विष भी जग कल्याण को, किया हर्ष स्वीकार।।

सत वाणी,मन, कर्म से, करके शिव का ध्यान।
जीवन में पाता मनुज, खुशियों का वरदान।।

करते हैं सबके हृदय, शिव औ शक्ति निवास।
पाते इनको हैं वही, सत जिनका विश्वास।।

त्रयोदशी का यह दिवस, श्रद्धा का त्योहार।
शिव दर्शन की चाह में, लम्बी लगी कतार।।

हर-हर, बम-बम नाद से, गूँज रहा शिव धाम।
सुर में सारे बोलते, शिव-शंकर का नाम।।

वासंतिक फल

नहीं क्षणों में पतझड़ बीता
औ बसंत का हुआ आगमन
सूखी डालों को क्षण भर में
नहीं मिला है वासंतिक धन

नहीं जगे ये बौर अचानक
नहीं खुशी क्षण-भर में छाई
नहीं क्षणों में इस धरती पर
मधुर-धूप ने ली अंगड़ाई

शिशिर-काल इन सबने झेला
औ संघर्ष किया पतझड़ से
जुड़े रहे ये दुखद समय में
अपने जीवन रूपी जड़ से

इसी तरह जीवन का पतझड़
समय बीतते है टल जाता
विपदा से जो लड़ बचता है
वह ही वासंतिक फल खाता

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