रुकते हुए क़दमों का चलन मेरे लिए है
रुकते हुए क़दमों का चलन मेरे लिए है
सय्यारा-ए-हैरत की थकन मेरे लिए है
मेरा कोई आहू मुझे ला कर नहीं देता
कहते तो सभी हैं कि ख़ुतन मेरे लिए है
तप-सी मुझे आ जाती है आगोश में उसकी
वो बर्फ़ के गाले-सा बदन मेरे लिए है
है जू-ए-तब-ओ-ताब पे अनवार के प्यासे
और शाम का ये साँवलापन मेरे लिए है
क़ंधार न काबुल न यमन मेरे लिए है
मिट्टी के उजड़ने की चुभन मेरे लिए है
बारूत में भुनते हुए अल्फ़ाज़ ओ मफ़ाहिम
अब तो यही तस्वीए-ए-सुख़न मेरे लिए है
दुनिया ही नहीं ख़ुद से ख़फ़ा रहता हूँ ’अरशद’
जीने का ये अंदाज़ ही फ़न मेरे लिए है