रोटी
रमुआ ने पूछा
माँ
तुम तोड़ती क्यों / पत्थर—
क्यों चिलचिलाती / धूप में
बरसते
अंगारों के बीच
बैठी हो
चुप्पी साधे
न छाया है
न पानी है
यहाँ तो केवल
तपती दोपहरी है
माँ ने कहा—
‘बेटे
दो जून की
रोटी जो कमानी है।
मेहतरानी की कोस
दिन में मेहतरानी की छाया से डरते
मूँछों पर ताव दे-दे
दूर-दूर हट-हट करते
रात्रि में उसके हारे
खेत में पथार में
उससे सटते, उसे चूमते-चाटते रहे
और एक दिन
कमला की गोद में
दे दिया एक लाल
दोहरी चाल वाले ठाकुरों ने
अब क्या करे कमला?
क्या वह रोज़ इज़्ज़त की ख़ातिर?
‘जैसे एक बार गयी— वैसे हज़ार बार गयी’
बात बरोबर ही है
तो फिर?
‘बदला लेना होगा—
इस दोहरे चलन का
नतीजा भोगना पड़ेगा गोद में लाज थमाने का’
मेहतरानियों की सभा बुलायी
जाओ कमला बनकर
एक-एक ठाकुर को वर लो
उनके बच्चों को जनो
और पकड़ा दो उन सबको फिर
एक-एक झाड़ू
एक-एक पंजा
और भेज दो
उनके बापों के घरों में
उन गोरे-चिट्टे ठाकुरों की औलादों को
उठाने के लिए
अपने बाप-दादों का मल-मूत्र!