जब भी कोई पैकर देखो
जब भी कोई पैकर देखो
पहले उसके तेवर देखो
मंज़र तक जाने से पहले
मंज़र का पसमंज़र देखो
जीने का है एक सलीक़ा
अगले पल में महशर देखो
जिसकी छः-छः औलादें हैं
वो वालिद है बेघर देखो
जिस मिट्टी में होश सँभाला
उसमें अपना मगहर देखो
पहले सूरत देखो उसकी
फिर हाथों के पत्थर देखो
जिस रस्ते पर चला कबीरा
उस रस्ते पर चलकर देखो
याद से जाती नहीं वो आतताई ज़िन्दगी
याद से जाती नहीं वो आतताई ज़िन्दगी
छः गुणा बारह की खोली में बिताई ज़िन्दगी
ग़ुस्ल की ख़ातिर लगी लोगों की लम्बी लाइनें
और फटे पर्दे से करती बेहयाई ज़िन्दगी
एक मुर्ग़ा , एक बिल्ली , दस कबूतर साथ थे
मुफ़लिसी में भी मुआफ़िक थी पराई ज़िन्दगी
देख कर ऊँची दुकानों पर रज़ाई दूर से
गर्म हो जाती थी मेरी ठंड खाई ज़िन्दगी
हर सवेरा मुझ को देता था नया इक मसअला
इस तरह करती थी मेरी मुँह दिखाई ज़िन्दगी
वो पिघलती ही नहीं थी ज़ख़्म मेरे देखकर
अनसुनी करती थी मेरी हर रुलाई ज़िन्दगी
‘दीप’ फिर से कुछ पुराने दर्द ताज़ा हो गए
आज फिर से वो गुज़िश्ता याद आई ज़िन्दगी
दूसरों को ग़लत गर कहा कीजिए
दूसरों को ग़लत गर कहा कीजिए
आइने से ज़रा मश्वरा कीजिए
कब तलक सिर्फ़ अपनी कहेंगे मियाँ
कुछ हमारे भी दुखड़े सुना कीजिए
सब्ज़ ही सब्ज़ आता है जिससे नज़र
ऐसे चश्मे को ख़ुद से जुदा कीजिए
चाहतें हैं बग़लगीर होना अगर
अपने क़द को ज़रा सा बड़ा कीजिए
ज़ख़्म नासूर होने लगे हैं मेरे
कुछ मेरे दर्द की भी दवा कीजिए ण
चश्मे दुनिया जनाब आपकी सिम्त है
कुछ तो नज़रों की इज़्ज़त रखा कीजिये
आज़मा तो रहे हैं मेरे सब्र को
‘दीप’ क़ायम रहे ये दुआ कीजिए
अजब कैफ़ियत दिल पे तारी हुई है
अजब कैफ़ियत दिल पे तारी हुई है
बिना बात के सोग़वारी हुई है
क़फ़स में परिंदा कलपता हो जैसे
कुछ ऐसी मुई बेक़रारी हुई है
ज़माने की नज़रें बदलने लगी हैं
ज़रा जो तरक़्क़ी हमारी हुई है
सहम से गए हैं चनारों के पत्ते
सुना है उधर संगबारी हुई है
ये दिल डर के साये में रहता है हर पल
बड़ी जबसे बिटिया हमारी हुई है
फफोले पढ़े हैं मेरे पाँव में और
रहे मैक़दा रेगज़ारी हुई है
बदलने लगा है मेरा भी नज़रिया
कि जब से अदीबों से यारी हुई है
आसमाँ पर कौंधती हैं बिजलियाँ
आसमाँ पर कौंधती हैं बिजलियाँ
दे रहा हो कोई जैसे धमकियाँ
दिल लरज़ता है हर इक चमकार पर
क्यों चढ़ाई बादलों ने त्योरियाँ
बेबसी से ताकते हैं आसमाँ
लोग जिनका है सड़क ही आशियाँ
खेत पर बैठा दुआ करता किसान
ख़ैर कर मौला ! बचा ले रोटियाँ
बिजलियों के वार से सहमा है बाग़
अनगिनत झुलसी पड़ी हैं तितलियाँ
बादलों के दिल में एक सैलाब है
रोएंगे ले-ले के लम्बी हिचकियाँ
छिन गई जबसे हमारी “दीप” छत
गिर रही हैं और ज़्यादा बिजलियाँ