बानर जी
आँखों पर चश्मा है सुंदर, सिर पर गांधी टोपी है,
और गले में पड़ा दुपट्टा, निकली बाहर चोटी है।
टेबिल लगा बैठ कुरसी पर, लिखते हैं बानर जी लेख,
करते हैं कविता का कौशल, रहती जिसमें मीन न मेख।
तुकबंदी प्रति मास सुनाते, लिखते लेख विचार-विचार,
कथा-कहानी और पहेली, करते नई-नई तैयार।
रंग-बिरंगे चित्र दिखाते, करते, हँसी-ठिठोली हैं,
लड़के-लड़की सभी किलकते, सुनकर बंदर बोली हैं।