हमारे पास एक दिन जब
हमारे पास
एक दिन जब केवल दुःखों की दुनिया बच जाएगी
हम सोचेंगे अपने तमाम अच्छे-बुरे विशेषणों के साथ
उनके बारे में / हमें कहना ही पड़ेगा
यह दुःख उजला था / वह काला / यह चमकीला
वह पीला भूरा / वह गहरा / वह उथला
वह कोलतार पुते रास्ते-सा / यह साथ-साथ चलता था काटता
आत्मा के पाँव जूतियाँ बनकर / यह अक्सर पीछे छूट जाता था
पथराई उम्मीदों की तरह।
वह फूल-सा / यह शूल-सा / वह बादल-सा बरस गया
यह बर्फ़-सा जम गया / वह चुभ गया कील-सा।
यह भी हो सकता है कि कोई दुःख पुराना हो / कोई नया
बिलकुल इधर का धरती से आकाश तक अटा-पटा
स्वप्न से कल्पना तक फैला-पसरा।
हमारे अनुभव से उतरेगा निर्बाध भाषा में
वह बच्चों की किताब-सा फूल जाएगा
स्मृतियों की बारिश में भींगकर
चाहकर भी हँस नहीं पाएगा
इस तरह दुःखों से भरे हमारे जीवन में
भाषा की सारी ख़ूबियाँ इसी तरह जानी जाएँगी
धीरे-धीरे गायब हो जाएँगे वे सारे शब्द
पारिजात पुष्पों की तरह
बहुत मुश्किल से याद आएँगे भूले-बिसरे भावों की तरह
कोश में इनका अर्थ काल्पनिक होगा
हमें यकीन नहीं आएगा इनके अर्थ-व्यापार पर
फिर भी जैसे-तैसे भाषा अपना काम करेगी
बचाएगी आदमी के अनुभव को सपाट होने से
कम-से-कम अपने दुःखों में फर्क कर पाएगा आदमी
लेकिन क्षमा करें रसिकगण
यह दुःख का दूसरा पाठ नहीं है
न दुःख के बारे में कोई उत्तर आधुनिक तर्क
दुःख अंततः दुःख होता है नमक के बोरे-सा गलता-गलाता हुआ
उसका दूसरा या तीसरा पाठ नहीं होता ।
नींद में पुल
बार-बार समय को पकड़ना कविता में
अपने आपको पकड़ना है।
मैं लौटकर आ गया हूँ उन्हीं सवालों के नीचे
कितना कठिन है मेरा समय? कितना कठिन है जीवन?
…रोज़ मैं उन रास्तों को पार करता हूँ
थके होने के बाजवूद स्वप्न में चलता हूँ मीलों दूर
पहुँचता हूँ उन स्मृतियों के पास।
वहाँ मेरा, छूटा हुआ प्रेम है बचपन का
माँ का स्नेह / पिता का आशीष
भाई का धूल-माटी हुआ संबल
वह नदी है गाँव की रेत में धँसी हुई
वह खेत है धूप में जला हुआ
एक पूरा जंगल कटा हुआ…
जहाँ उम्मीद पर टिकी है दुनिया
मौसम की मार के बाद भी जहाँ बचा है जीवन!
यह कोई राजनीति नहीं है कविता में / सच है समय का
अलगाव और विस्थापन के चाकू से कटा हुआ
यहाँ भीड़ है इस तरफ / पूरी भाग-दौड़
हिंसा और छल के रिश्ते / विज्ञापन और सौदेबाजी का
रंगारंग संसार / भीतर बाहर घरघराता शोर
नींद है, पर जागने की कीमत पर।
बहुत कम समय में आपको कहीं जाना हो
तो कहाँ जाएँगे आप? दफ़्तर या गाँव?
वह पुल सुबह की सायरन की आवाज के साथ टूट जाएगा
अक्सर टूट जाता है / छूट जाता हूँ मैं नींद के इस पार
सचमुच कितना असंभव है उस पार जाना
रोज़ नींद में एक पुल बनाना!
उलटबाँसी है यह…
इस दुनिया में हत्यारे सबसे सुखी हैं
कोई दुःख नहीं है उनको
दुःख नितांत निजी अनुभव नहीं है
लेकिन उसका सीधा संबंध है दिल से।
यह कहना कि हत्यारे के पास दिल है
हत्या के तर्क को झुठलाना है
हत्यारे सबसे पहले हत्या करते हैं अपने दिलों की
इसलिए हत्यारे सबसे सुखी हैं इस दुनिया में
दुःखी होने के लिए नहीं है उनके पास दिल।
यह कहना कि उनकी आँखें नहीं होतीं
शायद उचित नहीं होगा
पर हत्यारे रोते नहीं हैं कभी भी
भूलकर भी नहीं करते हैं पश्चात्ताप
नहीं डरते हैं पाप-पुण्य के सवालों से
वे झाँकते हैं ईश्वर की आँखों में तरेर कर
इसलिए कि ईश्वर उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता
वे ईश्वर के बारे में जानते हैं हमसे कहीं ज़्यादा।
इसलिए जो लोग परिचित हैं हत्यारों के मनोलोक से
जिनके अंदर शेष है अब भी कोई तर्क
कि जो खड़े हैं आत्मा की अदालत में बनकर शोध-पत्र
गुजारिश है उनसे कि वे भूल जाएँ
दशकों पहले के अपने अनुभव को
छोड़ दें उन कहानियों और कविताओं को
जिन्हें गुज़रना पड़ा नाटकीय हृदय-परिवर्तन से
अविश्वसनीय नहीं है वह भी
पर आज किसी क्रौंच-वध से कविता तो लिखी जा सकती है
लेकिन कोई हत्यारा कवि नहीं हो सकता
यह कविता से अधिक हत्यारे की तौहीन होगी
हत्यारे अपने समय के सबसे बड़े नायक हैं
चूँकि यह समय नायकों का नहीं है
इसलिए
आप कह सकते हैं, वे खलनायक हैं।
बड़े बहुरुपिये
जो निपुण हैं स्वांग करने में विभिन्न भाव-दशाओं के
पर कोई भाव उन्हें छू भी नहीं सकता
वे भावनाओं के कमजोर चैखटे को तोड़कर
आ गए हैं बाहर
बहुत मज़बूत हो चुका है उनका संकल्प!
वे जानते हैं कि संबंधों की गरिमा को
लिए-दिए वे नहीं चल सकते
बहुत सोचकर नहीं जिया जा सकता आज
वे इन पचड़ों को छोड़ चुके हैं बहुत पीछे।
इसलिए, शायद इसलिए
वे जी रहे हैं अकेले सारी दुनिया की ख़ुशी
हँस रहे हैं अकेले सारी दुनिया की हँसी
हिला रहे हैं अकेले अमर पेड़ के फल
कहा जाए, भोग रहे हैं अकेले इंद्र का ऐश्वर्य।
ताज्जुब होगा सोचकर कि फिर भी आप नहीं कह सकते
कि अमुक आदमी हत्यारा है
पुलिस भी शतप्रतिशत नहीं कर सकती दावा।
हो सकता है हत्यारे
आपके अगल-बगल बैठे हों
बहुत साफ़ सफ़्फ़ाक कपड़ों में
कि पुलिस की वर्दी में
कि मासूम-परेशान चेहरे में
बतिया रहे हों आपसे हत्यारों के बारे में
कि उठकर चले गए हों
आपको लाँघकर संसद के गलियारे में
याकि हों सामने महामहिम की कुर्सी पर विराजमान ।
यह कोई उलटबाँसी नहीं है
कि हत्यारों की शिनाख़्त बहुत मुश्किल है अब
आप भी जानते हैं / वे आपकी आँखों में
आकर भी धूल झोंक सकते हैं
बचाव के लिए
गीता, रामायण कि गंगाजल कुछ भी छू सकते हैं ।
हत्यारे हो गए हैं इतने शातिर कि देखकर ख़ुद को
बच्चे की आँखों में नहीं डिगते हैं / मचलकर औरत
की बाँहों में भी नहीं पिघलते हैं
कोई शब्द, माता, पिता, बहन, भाई, दोस्त
जो महज शब्द नहीं हैं
नहीं रोक सकते हैं उन्हें कभी भी
प्रार्थनाओं का भी नहीं होता है उन पर कभी कोई असर
वे अपने इरादे में
इतने पक्के हैं कि हत्या करते हैं पहले
बाद में घटती हैं घटनाएँ ।
यह उलटबाँसी नहीं है…
सच है समय का
बहुत क्रूर और निर्मम सच।
कि यह संवेदनशील लोगों के लिए बहुत ख़तरनाक समय है
यह उनके मारे जाने का समय है / जो जीना चाहते हैं
तमाम हसरतों को लिए-दिए / महसूस करना चाहते हैं
अपनी नसों में पूरी दुनिया की धड़कनें
कि जिनके पास रोने के लिए बची हैं आँखें
कि जीने के लिए हैं अदद दिल
कि जो हत्यारे नहीं हैं
और इसलिए नहीं हैं सुखी ।
यह कोई उलटबाँसी नहीं है
कि परिन्दे समुद्र में डूबकर कैसे मर गए
कि सपने कैसे आत्मघात कर रहे हैं खुली आँखों में
कि घर के रहते लोग कैसे चले गए आत्म-निर्वासन पर
कि इतनी फकत इतनी रोशनी में भी कहीं कुछ
दीख रहा है नहीं क्यों? कि इतने गवाहों
बयानों के रहते हत्यारे की शिनाख़्त क्यों नहीं हो रही?
कि तमाम सवालों से होकर गुजर जाएँ तो भी
क्या मिलेगा आपको / बस इतना जानें कि
बध्य हो गई हैं सारी परिस्थितियाँ
आगे-पीछे, अगल-बगल / ऊपर-नीचे
कि धरती से लेकर अंतरिक्ष तक
हर कहीं कायम हो गया है हत्यारों का साम्राज्य
मँडरा रहे हैं मौत के ख़तरे इस कदर @ कि हदस कर
फूलों ने खिलना छोड़ दिया है मन के मधुवन में।
आप ही बताएँ, कोई कैसे सुखी हो सकता है
सुखी होने के लिए हमारा हत्यारा होना जरूरी है।
उलटबाँसी नहीं है यह
कि हममें से जो हत्यारे नहीं हुए हैं / सुखी नहीं हो सकते
दुःखी होने के लिए बहुत कारण मौजूद हैं उनके पास
कि जैसे आदमी होने के लिए बहुत से दुःख हैं उनके पास
उलटबाँसी नहीं है यह कि दुःखी है आदमी
यह आदमी होने का ठोस प्रमाण है ।
सबूत कि बच रहे हैं अभी भी आदमी
हम उम्मीद कर सकते हैं कि फिर भी बची रह जाएगी
यह पृथ्वी अपने दुःखों के बीच / ज़िन्दा रह जाएँगे
क्रूस पर लटककर ईसा
कि जैसे जहर पीकर सुकरात
गोली खाकर बापू ।
कि जैसे सारी दुनिया के दुःखों को ढोकर
बहती है अभी भी नदी / कि रोज तोड़े जाने के बाद भी
बच रहे हैं पहाड़ / काटे जाने के बाद भी ख़त्म नहीं हुए हैं जंगल
बचे रहेंगे आदमी !
उलटबाँसी नहीं है यह
कि सदियों के इतिहास के हास और भूगोल के भूडोल के बीच
बचा रहा है दुःख / कि बचा रहता है दुःख
अनगिनत हमलों और हमलावरों से परास्त होकर भी
कि आने से पहले / कि उनके जाने के बाद भी
हमें बचाए रहता है हमारा दुःख ।
उलटबाँसी नहीं है यह कि दुःखी हैं लोग
दुःख ठोस सबूत हैं उनके होने के ।
उलटबाँसी है यह कि हत्यारे सुखी हैं
कि सुखी होने के लिए
हमारा हत्यारा होना जरूरी है।
मानव-बम और तीसरे आदमी की राजनीति
न बाप चाहता है
और न माँ जनती है
भूख के पेट में पलते हैं कुछ सपने
वही पैदा करते हैं बंदूक ।
दुःख का डायनामाइट
जब तोड़ता है आस्था का पहाड़
फैल जाती है धरती पर दूर तक बारूद
कोई ऐसे नहीं बनता है आदमी से बम
एक आख़िरी मौत मरने से पहले
उसे करना पड़ता है ज़िन्दगी का सबसे ख़ौफनाक करार
फिर बहुत आसानी से चिपकाए जाते हैं इश्तहार
जो उस आदमी के नहीं, बम के होते हैं
मानवाधिकार के सारे झूठे वायदों को याद करते हुए
यह कहना जरूरी लगता है
कि कानून व्यवस्था की बदचलन बीवी है
तो आज़ादी फ़िरकापरस्तों की रखैल
वह स्वयं किसी गरीब और मजलूम की
लुटी हुई आबरू है, जिससे चलती है उसकी दुकान
हज़ारों बेघरबारों / बेरोज़गारों के भविष्य का सवाल
हज़ारों डेटोनेटरों और बिजली के बेतरतीब नंगे तारों का
एक उलझा हुआ नक्शा है, जिसे आपस में बाँट रहे हैं कुछ बड़े लोग
भले ही पूरा हो किसी का मकसद
जब भी फटता है कोई मानव बम
मज़बूरी से लिथड़ा हुआ
आँसू और ख़ून में छितराया हुआ
होता है उसका अपना एक मकसद
इस बात से अनजान कि हजारों लोगों की भीड़ का
एक हिस्सा वह भी है, जिसके पास
एक घिसे वजूद के सिवा कुछ नहीं होता
बस एक जद्दोजहद होती है जीने की
चाहे आदमी मरें या मरे मानव बम
वह तीसरा आदमी हाथ में रिमोट लिए
होता है उनसे बहुत दूर ।