घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
रपट लिखाने मत जाना तुम ये धंधा सरकारी है
तुमको पत्थर मारेंगे सब रुसवा तुम हो जाओगे
मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैं
इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है
सारी दुनिया तेरी है तू ही सब का रखवाला है
मुसलमान का अल्लाह है और हिन्दू का गिरधारी है
भारतवासी कुछ दिन से रुखी रोटी खाते हैं
पानी पीकर जीते हैं मँहगी सब तरकारी है
नया विधेयक लाओ कि बूढ़े अब आराम करें
देश युवाओं को दे दो अब नए ख़ून की बारी है
जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा-फिरा कर बात करो
केवल सच्ची बातें करना बहुत बड़ी बीमारी है
बाद इसके मुझे ग़म दे के रुलाया जाए
बाद इसके मुझे ग़म दे के रुलाया जाए
पहले रोने का सलीक़ा तो सिखाया जाए ।
हुस्न को चाँद जवानी को कँवल लिख दूँगा
कोई ऐसा मुझे दुनियाँ मेँ दिखाया जाए ।
वो बुरा कह के मुझे ख़ुद भी तो शर्मिन्दा है
सोँचता है मुझे सीने से लगाया जाए ।
जान जब आ के अटक जाए मेरे होटोँ पर
मुझको ग़ालिब का कोई शे’र सुनाया जाए ।
उनसे शिकवा है शिकायत है गिला भी लेकिन
मैँ चला आऊँगा गर मुझको बुलाया जाए ।
रोज़ नया इक ख़्वाब सजाना भूल गए
रोज़ नया एक ख़्वाब सजाना भूल गए
हम पलकों से बोझ उठाना भूल गए
साथ निभाने की कसमें खाने वाले
भूले तो सपनों में आना भूल गए
उसे भुलाने की इतनी कसमें खाईं
कि हम अपना पता ठिकाना भूल गए
नज़र मिलाना जबसे तुमने छोड़ दिया
हम लोगोँ से हाथ मिलाना भूल गए
शहर में आकर क्या पाया कुछ याद नहीं
गाँव की गलियाँ वक़्त पुराना भूल गए
मंज़िल तक जिन लोगों को पहुँचाया था
वही हमारा साथ निभाना भूल गए
पीने वाले मस्जिद तक कैसे आए
हैरत है ग़ालिब मैख़ाना भूल गए
झूठों ने सारी सच्ची बातें सुन लीं
सूली पर मुझको लटकाना भूल गए
ज़रा जवानी ढली तो दुनिया बदल गई
वो नज़रों से तीर चलाना भूल गए
तुमने जबसे छत पर आना शुरु किया
लोग उतरकर नीचे जाना भूल गए
चकाचौंध में बिजली की ऐसे खोए
क़ब्रों पर हम दिये जलाना भूल गए
तेज़ धूप से कुछ ऐसा घबराए वो
औरों के घर आग लगाना भूल गए
दर्द पे कुछ लिखने की मैंने क्या सोची
मीर भी अपना दर्द सुनाना भूल गए
सुकरात को देकर ज़हर उन्होंने मार दिया
बातों को वो ज़हर पिलाना भूल गए
भला ग़रीबों से क्यों तुमको नफ़रत है
लगता है तुम बुरा ज़माना भूल गए
अँग्रेज़ी का भूत चढ़ा ऐसा सिर पर
बच्चे हिन्दी में तुतलाना भूल गए
वह भी पहचान नहीं पाया हमको
हम भी उसको याद दिलाना भूल गए
तेरे बाद मौसम सुहाने नहीं हैं
तेरे बाद मौसम सुहाने नहीं हैं
फिज़ाओं में अब वो तराने नहीं हैं
बढ़ाया था आगे हमें दोस्तों ने
कि आशिक़ तो हम भी पुराने नहीं हैं
किसी काम के अब नहीं रह गए ये
मगर ख़त तुम्हारे जलाने नहीं हैं
ये बिकती है ये बात सबको पता है
मोहब्बत की लेकिन दुकानें नहीं हैं
आओ मोहब्बत में वादे करें हम
मगर याद रखना निभाने नहीं हैँ
किसी काम की फिर नहीं उनकी सूरत
मेरे साथ उनके फसाने नहीं हैं
पतंगे तो अब भी उड़ाएँगे लेकिन
हमे अब कबूतर उड़ाने नहीं हैं
ये माना कि सब ज़ख़्म अपनो से पाए
मगर दुश्मनों को दिखाने नहीं हैं
तभी दोस्ती अब मैँ करता नहीं हूँ
मुझे और दुश्मन बनाने नहीं हैं
ख़ुदा सबको देता नहीं है मोहब्बत
ये पल भूलकर भी भुलाने नहीं हैं
गिर के उठने में सम्भलने में बहुत वक़्त लगा
गिर के उठने में सम्भलने में बहुत वक़्त लगा
ग़म-ए-उल्फत से निकलने में बहुत वक़्त लगा
नज़र से गिरने में इक पल नहीं लगा लेकिन
किसी के दिल में उतरने में बहुत वक़्त लगा
मैं इंतज़ार में छत पे खड़ा रहा पहरों
चाँद को आज निकलने में बहुत वक़्त लगा
कितनी दुशवार थीं राहें तेरे इंकार के बाद
अपने घर तक भी पहुँचने में बहुत वक़्त लगा
ख़ुदा ने दुनिया बना दी पलक झपकते ही
मेरा नसीब बदलने में बहुत वक़्त लगा
तेरा अफ़साना-ए-ग़म भी अजीब है ‘फ़ैसल’
देखने सुनने समझने में बहुत वक़्त लगा
आँखों को मेरी चाँद सुनहरा दिखाई दे
आँखों को मेरी चाँद सुनहरा दिखाई दे
सोकर उठूँ तो माँ का ही चेहरा दिखाई दे
कहती है मुसीबत कि तेरे पास क्या आऊँ
चारों तरफ दुआओं का पहरा दिखाई दे
कब तक करुँ मुज़ाहिरा सड़कों पे बैठकर
शासन मुझे यहाँ का तो बहरा दिखाई दे
बरसे नहीं बादल तो बरसने लगीं आँखें
फसलों पे अब किसानों को ख़तरा दिखाई दे
सींचा था जिस चमन को शहीदों ने लहू से
अपनों की ही वजह वो उजड़ा दिखाई दे
उनकी गली मेँ जाता हूँ तो
उनकी गली में जाता हूँ तो क़दम मेरे रुक जाते हैं
देख के वो हँसते हैं मुझको पर्दे में छुप जाते हैं
उनका मुस्काना फूलों को इतना अच्छा लगता है
उनकी एक मुस्कान पे गुल हँसते-हँसते थक जाते हैं
वो गर काँटे भी दें तो फूल से नाज़ुक लगते हैं
वर्ना ये भी होता है मुझे फूल चुभ जाते हैं
ख़ुशबू तितली चाँद सितारे उनके संग-संग चलते हैं
रुक जाएँ तो लहरेँ साँसे दरिया भी रुक जाते हैं
उनकी बोली उनकी बातें उनकी पायल की छम-छम
बागों मेँ गाते पंछी जब सुनते हैं चुप जाते हैं
उनके एक इशारे पर सब मिलकर मुझे सताते हैं
देख के हाथोँ में ख़त पंछी दूरी से ही उड़ जाते हैं
मैँ उनकी आँखों का दिवाना बन बैठा तो हैरत क्या
नज़र उठा लेते हैं वो जब तारे भी गिर जाते हैं
उनकी ज़ुल्फें बादल हैं या काली-काली राते हैँ
जिनके साये में आकर हम सूरज से बच जाते हैं
डूब गया मैं यार किनारे पर वादों की कश्ती में
डूब गया मैं यार किनारे पर वादों की कश्ती में
और ज़माना कहता है कि डूबा हूँ मैं मस्ती में ।
ठीक से पढ़ भी नहीं सका और भीग गईं आँखें मेरी
मीर को रख कर भेज दिया है ग़ालिब ने इक चिठ्ठी में ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैं
सरकारी ऐलान हुआ है आज हमारी बस्ती में ।
रोज़ कमीशन लग के वेतन बढ़ जाता है अफ़सर का
और ग़रीबी पिसती जाती मंहगाई की चक्की में ।
जिधर भी देखिए बस ख़ून का सैलाब दिखता है
जिधर भी देखिए बस ख़ून का सैलाब दिखता है
अयोध्या श्रीनगर के साथ ही गुजरात दिखता है
है लाचारी ग़रीबी गर मेरी आँखोँ से देखोगे
तुम्हारी आँखोँ से तुमको जो नक्सलवाद दिखता है
ये सी.एम. और पी.एम. क्या दबा लेता है वो सबको
मुझे तो भारत में अपने ठाकरे-राज दिखता है
तवाइफ़ करती है बर्बाद कुछ लोगोँ को कोठे पर
सियासत तेरे हाथोँ तो जहाँ बर्बाद दिखता है
ये क़ौमी-एकता पाठ दरिया मेँ कहीँ फेको
परीक्षा के हवाले से ये सब बेकार दिखता है ।
गाँधी जी को गाँवों में दिखता था हिन्दुस्तान
गाँधी जी को गाँवों में दिखता था हिन्दुस्तान
जहाँ है आज भी टूटी सड़केँ अंधकार अज्ञान
हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई हैं भारत की संतान
‘अतिथि देवो भव:’ से भी है भारत की पहचान
मौलवी पंडित उन लोगोँ को भड़का पाते हैँ
जिन लोगोँ ने पढ़ी नहीं है गीता और कुरान
आज़ादी के साठ बरस मेँ क्या-क्या बदला है
चार क़दम चलकर तो देखेँ संसद के भगवान ।
अपने अन्जाम का कब किसको पता होता है
अपने अन्जाम का कब किसको पता होता है
मैं जहाँ हाथ लगाता हूँ बुरा होता है
मेरी आवारगी भी कम नहीँ इबादत से
जब मैँ पी लेता हूँ होटों पे ख़ुदा होता है
उम्र भर साथ निभाएँगे सभी कहते हैँ
ऐसा दिखलाओ हक़ीकत मेँ कहाँ होता है
बिना मतलब किसी से अब कोई नहीं मिलता
हर मुलाक़ात में मक़सद भी छुपा होता है
आपके आने की आहट-सी मुझे मिलती है
देखता हूँ तो वहाँ सिर्फ़ धुआँ होता है
ख़्वाब मेँ रोज़ मैं बाहों में उसे भरता हूँ
आँख खुलती है तो वो मुझसे जुदा होता है
गर वो एहसान जताए ‘सिराज’ कह देना
लूट ले मुझको अगर तेरा भला होता है
अजीब दर्द लिये फिर रहा हूँ प्यार में मैं
अजीब दर्द लिए फिर रहा हूँ प्यार में मैं
किसी को छोड़ के आया हूँ इंतज़ार में मैं
ग़रीबी ख़ुद ही परीशान होके कहने लगी
पड़ी रहूँगी भला कब तलक बिहार में मैं
मैं तो काँटा हूँ बहारोँ से मुझे क्या मतलब
कभी खिला ही नहीँ आज तक बहार में मैं
हर तरफ मज़हबी नफ़रत है, सियायत है यहाँ
जिऊँ तो कैसे जिऊँ अब तेरे संसार में मैं
गाँव की धूल भरी गलियों से शहर की सड़कों तक
गाँव की धूल भरी गलियों से शहर की सड़कों तक
ठोकर खाते-खाते आए हैं हम सपनों तक
बात शुरू की ज़िक्र से तेरे, मैख़ाने में पर
चलते-चलते आ पहुँचे हम दिल के ज़ख्मों तक
कितनी रातें जाग के काटीं पूछो तो हमसे
वक़्त लगा कितना आने में उनके होंठों तक
कितना ही मैं ख़ुद को छुपाऊँ कितना ही बहलाऊँ
आँसू आ ही जाते हैं पर मेरी पलकों तक
रोज़ ग़ज़ल का फूल लगा देते ज़ुल्फ़ों में हम
अगर हमारे हाथ पहुँचते उनकी ज़ुल्फ़ों तक
रूठे हुए लोगों को मनाना नहीं आता
रूठे हुए लोगों को मनाना नहीं आता
सज्दे के सिवा सर को झुकाना नहीं आता
पत्थर तो चलाना मुझे आता है दोस्तो
शाख़ों से परिन्दों को उड़ाना नहीं आता
नफ़रत तो जताने में नहीं चूकते हो तुम
हैरत है तुम्हें प्यार जताना नहीं आता
मैं इसलिए नाकाम मोहब्बत में रह गया
झूठा मुझे वादा या बहाना नहीं आता
सारे शहर को राख मेँ तब्दील कर गया
कहते थे उसे आग लगाना नहीं आता
होटों पे सजी रहती है मुस्कान इसलिए
सीने मेँ मुझे दर्द छुपाना नहीं आता
तेरे शहर से जाने की हर कोशिश नाकाम हुई
तेरे शहर से जाने की हर कोशिश नाकाम हुई
ख़्वाब भी पूरा हुआ नहीँ शब भी यूँ तमाम हुई
मौत से पहले भी शायद कई बार हम मरते हैँ
तब तब जान गई मेरी जब हसरत नीलाम हुई
सदियोँ से इस दुनियाँ ने प्यार को क्या ईनाम दिया
मजनूँ ने पत्थर खाए लैला भी बदनाम हुई
इश्क़, मोहब्बत, नफ़रत, मज़हब, यकजहती की इक कोशिश
इसी मेँ पैदा हुए थे सब इसी मेँ सबकी शाम हुई
भूल सकते तुम्हें तो कब का भुला देते हम
भूल सकते तुम्हें तो कब का भुला देते हम
ख़ाक जो होती मोहब्बत तो उड़ा देते हम
ख़ुदकुशी जुर्म ना होती ख़ुदा की नज़रों में
कब का इस जिस्म को मिट्टी में मिला देते हम
बना रख्खी हैं तुमने दूरियाँ हमसे वर्ना
कोई दीवार जो होती तो गिरा देते हम
तुमने कोशिश ही नहीं की हमें समझने की
फिर भला कैसे तुम्हें हाल सुना देते हम
आपने आने का पैग़ाम तो भेजा होता
तमाम शहर को फूलों से सजा देते हम
फूलों की तुम हयात हो तारों का नूर हो
फूलों की तुम हयात हो तारों का नूर हो
रहती हो मेरे दिल में मगर दूर-दूर हो
ना तुम ख़ुदा हो, ना हो फरिश्ता, ना हूर हो
लेकिन मैँ खिंचा जाता हूँ कुछ तो ज़रूर हो
हूरें फलक़ से आती हैं दीदार को उसके
जब हुस्न ऐसा पास हो क्यों ना गुरूर हो
सारा शहर तबाह है उल्फ़त में तुम्हारी
तुम क़त्ल भी करती हो फिर बेक़ुसूर हो
लिख्खेगा ग़ज़ल ताजमहल-सी कोई ‘सिराज’
थोड़ी-सी इनायत जो आपकी हुज़ूर हो
हादसे सबकी ही क़िस्मत में, लिखूँ किस-किस पर
हादसे सबकी ही क़िस्मत में लिखूँ किस-किस पर
सारी दुनिया है मुसीबत मेँ लिखूँ किस-किस पर
तेरे बारे में लिखूँ गर मिले फुर्सत ख़ुद से
मैं परीशाँ हूँ हक़ीक़त में लिखूँ किस-किस पर
इश्क़ “ग़ालिब” की अमानत है वफ़ा “साहिर” की
दिल तो है “मीर” की सोहबत में लिखूँ किस-किस पर
उम्र भर मन्दिर-ओ-मस्जिद से ही फ़ुर्सत ना मिली
ज़िन्दगी कट गई नफ़रत में लिखूँ किस-किस पर
आग सीने में मोहब्बत की लगा देते हैं
आग सीने में मोहब्बत की लगा देते हैं
“मीर” मिलते हैं मुझे जब भी रुला देते हैं
एक तुम हो कि गुनाह कह के टाल जाते हो
एक “ग़ालिब” हैं कि हर रोज़ पिला देते हैं
मैंने “राहत” से कहा फूँक दो दिल की दुनिया
वो मेरे ख़त को उठाते हैं जला देते हैं
जब भी “राना” से मोहब्बत का पता पूछता हूँ
हँस के माँ पर वो कोई शे’र सुना देते हैं ।
मैं बड़ा हो गया
बचपन में परियाँ उठा ले जाती थीं चाँद पर
माँ को ख़बर भी नहीं होती थी
सारी रात गुज़र जाती थी सितारों की महफिल में
फूल मुझे देखकर मुस्कुराया करते थे
तितलियाँ खेलती थीं मेरे साथ
फरिश्ते फलक से आकर मुझे बोसा देते थे
मेरे मुस्कुराने पर एक अजनबी-सी मुस्कान फैल जाती थी सारे घर में
मेरे रोने पर काजल का टीका लगा दिया जाता था मेरे माथे पर
दिन भर ना जाने कितने लोगों की गोद मेरी पनाह बनती थी
मुझे ख़ुश रखने के लिये तरह-तरह के जतन किए जाते थे
मगर अब सब ख़त्म हो गया
अब कोई मेरे हँसने पर नहीं मुस्कुराता
अब कोई मेरे रोने पर मुझे नहीँ बहलाता
परियाँ भी नहीं आतीं
फूल भी नहीँ मुस्कुराते
तितलियाँ मेरे घर का रस्ता भूल गईं
फरिश्ते आसपास तो रहते हैं मगर अब वो मुझे बोसा नहीं देते
एक अजनबी ग़म घेरे रहता है मुझे
मैं बड़ा हो गया तो छीन लिया गया मुझसे वो सब कुछ
जो बिना माँगे दिया जाता था मुझे बचपन में
पहले माफ़ कर दिए जाते थे मेरे सारे गुनाह
मगर अब बिना गुनाह के सज़ा दी जाती है मुझे बड़े हो….
जब तुम जुदा हुए
जब हम तुम जुदा हुए
ख़ामोश थे लब पलकों ने कहा था कुछ
आँखों में समन्दर भरना किसने सिखाया
कुछ याद है तुम्हें
याद तो करो
नीम के पेड़ के नीचे क्या खोया था?
मैंने ही तो छुपा ली थी तुम्हारी पायल
तुम बहुत देर तक रोती रही थीं और मैं
मन ही मन हँसता रहा था,
और वो चाँद वाली बात
झूठ बोला था तुमसे कि चाँद मेरा दोस्त है
मुझसे मिलने आता है आधी रात को
चाँद से बातें करने के लालच में तुम छुप-छुपकर मेरी छत पर आया करती थीं,
याद तो होगा झीलों के किनारे पहरों गुमसुम बैठे रहना
झूठ ही तो कह दिया था कि दोपहर को झील किनारे परियाँ आती हैं
और
तुम थीं कि चली आती थीं धूप में
कितना झूठा था मैं
तुम भी तो झूठी थीं,
सब कुछ समझकर भी अन्जान बनी रहती थीं…
तुम मुझसे भी ज़्यादा झूठी निकलीं
कभी नहीं बताया कि छोड़कर चली जाओगी एक दिन
अकेला कर दोगी मुझे
झूठी तुम चली गईं
अब सच मेँ चाँद मेरा दोस्त है
बातें करता है मुझसे
और
झील किनारे परियाँ भी आती हैं मिलने
मगर
अफसोस अब तुम नहीं हो मेरे पास
मगर तुम्हारी पायल आज भी है,
ये झूठ नहीं बोलती क्योंकि अब मैं सच बोलने लगा हूँ…..
रात सुबह के इंतज़ार मेँ ख़त्म हो जाती है
और
दिन भर रात होने का इंतज़ार करता हूँ
गुज़र रहा था उधर से कल फिर तुम्हारा घर देखा
उजड़ा सा बरामदा
अधखुली खिड़की
धूल मेँ डूबा दरवाज़ा
गमले मे लगा सूखा गुलाब
अधखुली आँखों मेँ तैरता ख़्वाब,
अब रोज़ ही उधर से गुज़रने लगा हूँ
मगर
अब कोई ख़त
या
फूल ऊपर से नहीं गिरता
फिर भी मैँ झुक जाता हूँ यूँ ही,
जाने वाले तू सब ले गया पुराने दिन, ख़ुशबू, रंग, तितली, सुकून और
न जाने क्या-क्या ?
कफ़्न पर आँसू गिराना छोड़ दे
कफ़्न पर आँसू गिराना छोड़ दे ।
बेवफा अब तो बहाना छोड़ दे ।
नींद पर वर्ना सितम ढाऊँगा मैं,
मान जा ख़्वाबोँ मेँ आना छोड़ दे ।
शौक़ ये बर्बाद कर देगा तुझे,
तितलियों के पर जलाना छोड़ दे ।
अपना क़द दुनिया की नज़रों में बढ़ा,
मुझको नज़रों से गिराना छोड़ दे ।
दर्द पाएगा बहुत रोएगा तू,
ख़त किताबों में छुपाना छोड़ दे ।
कोशिशें कर जीतने की मुझसे तू
ख़्वाब में मुझको हराना छोड़ दे ।
हसरतों से आसमाँ मत देख तू
उड़ना है तो आशियाना छोड़ दे ।
इश्क से परहेज़ है जिसको भी, वो
मीर-ओ-ग़ालिब घराना छोड़ दे ।
अपनी फितरत किसने छोड़ी है ‘सिराज’
फूल कैसे मुस्कुराना छोड़ दे ।
मेरे बारे मेँ अपनी सोच को थोड़ा बदलकर देख
मेरे बारे में अपनी सोच को थोड़ा बदलकर देख ।
मुझसे भी बुरे हैं लोग तू घर से निकलकर देख ।
शराफ़त से मुझे नफ़रत है ये जीने नहीं देती,
कि तुझको तोड़ लेंगे लोग तू फूलों सा खिलकर देख ।
ज़रुरी तो नहीं जो दिख रहा है सच मेँ वैसा हो
ज़मीं को जानना है ग़र तो बारिश में फिसलकर देख ।
पता लग जाएगा अपने ही सब बदनाम करते हैं ।
कभी ऊँचाइयोँ पर तू भी अपना नाम लिखकर देख ।
अगर मैँ कह नहीं पाया तो क्या चाहा नहीं तुझको
मोहब्बत की सनद चाहे तो मेरे घर पे चलकर देख ।
तुझे ही सब ज़माने में बुरा कहते हैँ क्यों ‘फ़ैसल’
बिखर जाएगा यूँ ना सोच दीवाने संभलकर देख ।
मैँ रोता हूँ मेरे रोने को सब नकली समझते हैँ
मैँ रोता हूँ मेरे रोने को सब नकली समझते हैं ।
मगर संसद के घड़ियालों को सब मछली समझते हैं ।
मची है लूट सारे मुल्क में हालात हैँ बदतर,
लुटेरों की वो जन्नत है जिसे दिल्ली समझते हैं ।
वो ख़ुश है उसके भाषण पर बजी हैं तालियाँ लेकिन,
सियासत में सभी वादों को हम ‘रस्मी’ समझते हैं ।
हमें मालूम ना था छुपके मिलते हो रक़ीबों से,
तुम्हारी ज़ात को हम आज तक असली समझते हैं ।
तरक्की आपको और आपके शहरों को मुबारक,
हम अपने गाँव को ही दोस्तो इटली समझते हैं ।
फरेब खाकर हज़ारों इश्क़ में ख़ामोश बैठी है,
मुहल्ले वाले नाहक ही उसे पगली समझते हैं ।
किसी के ग़म में रो रोकर धुले हैं रंग सब उसके,
वही तस्वीर कि जिसको सभी धुँधली समझते हैं ।
वो एक दिन धूप में आये थे तो पानी बहुत बरसा,
मेरे घरवाले उस दिन से उन्हें बदली समझते है ।
दर्द मेँ भी अपने चेहरे को तुम हँसता रखना
दर्द में भी अपने चेहरे को तुम हँसता रखना ।
मेरी ग़ज़लों से तुम ख़ुद को बावस्ता रखना ।
आपके अपनों में शामिल हूँ इतना काफी है,
लेकिन मुझको अपने दिल का भी हिस्सा रखना ।
दुआ है मेरी शोहरत आपके क़दमोँ को चूमे
लेकिन मुझ तक वापस आने का रस्ता रखना ।
ख़ुश रहने का राज़ बताया है नेहरु जी ने,
नन्हे-मुन्ने बच्चों से तुम भी रिश्ता रखना ।
तितली का इल्ज़ाम है कि तुम गुल के क़ातिल हो,
फूल क़िताबों में ना कोई आइन्दा रखना ।
आप जब आँखोँ मेँ आकर बैठ जाते हैँ
आप जब आँखों में आकर बैठ जाते हैं
नींद के मुझसे फरिश्ते रुठ जाते हैं
आपके हँसने से मेरी साँस चलती है
आपके रोने पे तारे टूट जाते हैं
आपका जब पल दो पल का साथ मिलता है
मेरे पीछे सौ ज़माने छूट जाते हैं
आप जब मुझको इशारे से बुलाते हैँ
हम ख़ुशी में सच है चलना भूल जाते हैं
आपके संग होटोँ पे मुस्कान रहती है
आपके बिन हँसते पौधे सूख जाते हैं
रुठने से आपके तो कुछ नहीँ होता
जान जाती है मेरी जब दूर जाते हैं
आपकी नज़दीकियाँ मदहोश करती हैं
आपकी आँखों में सागर डूब जाते हैं ।
क़त्ल करें जो मासूमों का बैठें चाँद सितारों पर
क़त्ल करें जो मासूमों का बैठें चाँद सितारों पर
किसका हक़ है हमें बता ऐ जन्नत तेरी बहारों पर
हमने जान बचाई है कुछ भोले-भाले बच्चों की
लिक्खा जाए नाम हमारा मस्जिद की मीनारों पर
धूल झोंकते हैं जनता की आँखों मेँ जो रोज़ो -शब
लानत ऐसे नेताओं पर लानत है गद्दारों पर
शौक़ से खेलो ख़ून की होली लेकिन ये भी याद रहे
हमने भी इतिहास लिखा है दिल्ली की दीवारों पर
हिन्द के दुश्मन होश में आएँ भूलें मत ये सच्चाई
हिन्दुस्तानी चल सकते हैं काँटों और अंगारों पर
ये अंधा कानून अगर इंसाफ़ हमें देना चाहे
ख़ून के धब्बे देख ले आकर बस्ती की दीवारों पर
लाशों का सौदा करते हैं ये नापाक हुकूमत से
आग लगा दो शहर के इन सब बिके हुए अख़बारों पर
क़लम छुपाए बैठे हैं जो आज हुकूमत के डर से
सदियाँ लानत भेजेंगी ऐसे घटिया फ़नकारों पर