मन पखेरु उड़ चला फिर
नेह की
नजरों से मुझको
ऐसे देखा आपने।
मन-पखेरु उड़ चला फिर
आसमां को नापने।
कामना का बाँध टूटा-
ग्रंथियां भी
खुल गईं।
मलिनता सारी हृदय की
आँसुओं से
धुल गई।
एक नई भाषा
बना ली,
तन के शीतल ताप ने।
शब्द को मिलती गईं
नव-अर्थ की
ऊँचाइयाँ।
भाव पुष्पित हो गए
मिटने लगीं
तनहाइयाँ।
गीत में स्वर
भर दिए हैं-
प्यार के आलाप ने-
मन पखेरु उड़ चला फिर,
आसमां को नापने॥
वही तो याद आते हैं
जो पास होते हैं वही जब दूर जाते हैं
तनहाई में
हमें अकसर वही तो याद आते हैं
मुझे देख कर
उसका मुस्कुरा देना
फिर कोई गीत फिल्मी
गुनगुना देना
अकेले में वो ख्याल सारे
गुदगुदाते हैं
तनहाई में
हमें अकसर वही तो याद आते हैं।
चाँद को देखूं तो
चाँदनी दिल जलाती है
उसका नाम ले लेकर
सखियां भी सताती हैं
रात भर ख्वाबों में
वही आते-जाते है
तनहाई में
हमें अकसर वही तो याद आते हैं।
बचपन के उस घरौंदे की
कसम तुमको
अब आ ही जाओ
कच्ची इमली की कसम तुमको
आज भी वो
नीम-पीपल-बरगद बुलाते है
तनहाई में
हमें अकसर वही तो याद आते हैं।
धरती का गीत
धरती पर फैली है सरसों की धूप-सी
धरती बन आई है नवरंगी रूपसी ॥
फूट पड़े मिट्टी से सपनों के रंग।
नाच उठी सरसों भी गेहूं के संग।
मक्की के आटे में गूँधा विश्वास
वासंती रंगत से दमक उठे अंग।
धरती के बेटों की आन-बान भूप-सी
धरती बन आई है नवरंगी रूपसी॥
बाजरे की कलगी-सी नाच उठी देह।
आँखों में कौंध गया बिजली-सा नेह।
सोने की नथनी और भारी पाजेब-
छम-छम की लय पर तब थिरकेगा गेह।
धरती-सी गृहिणी की कामना अनूप-सी
धरती बन आई है नवरंगी रूपसी॥
धरती ने दे डाले अनगिन उपहार,
फिर भी मन रीता है पीर है अपार।
सूने हैं खेत और, खाली खलिहान-
प्रियतम के साथ बिना जग है निस्सार।
धरती की हूक उठी जल-रीते कूप-सी
धरती बन आई है नवरंगी रूपसी॥
गीतिका – 1
राहों में तुम्हारी हम, जब-जब भी बिखर जाते।
हम खुद को मिटा देते, हम मिट के संवर जाते॥
दो लम्हों की गफलत से बरसों की ये दूरी बनी-
हम आ ही रहे थे तुम, थोड़ा तो ठहर जाते॥
इन आँखों की कश्ती पर करते जो भरोसा तो-
हर गम के समन्दर से तुम पार उतर जाते॥
मिलता न सहारा जो, इस दर्द को आँसू का
हम कैसे बयां करते, हम बोलो! किधर जाते?
प्रिय बिन जीना, कैसा जीना
प्रिय बिन जीना,
कैसा जीना
एक पल भी काटे कटे ना।
दो पल की दूरी ने
तन-मन
कुंठित कर डाला।
जो चाहोगे
पी लेंगे हम
आज विरह का ये प्याला।
पनघट सूना
घर भी सूना,
सन्नाटों की डोर कटे ना।
लाख छुपा ले
आँखें फिर भी,
बारिश थमती नही
सदियों से
बसी है जो दिल में,
तस्वीर मिटती नही,
तन से चाहे
दूर रहें पर
मन की मूरत मेटे मिटे न।
पाया साथ
तुम्हारा जबसे,
महक उठा हर कोना।
हुई बावरी
प्रेम पुजारिन
पहनाया जब प्रेम का गहना।
हाथों में अब
रची है मेहंदी ,
रंगत फीकी कभी पड़े न।
छोटा सा संसार
प्यार के है
हजार पल
एक पल उधार दे दे
जी सकें जिसमें तनिक, इक
छोटा सा संसार दे दे।
बाँट दे चाहे सभी को
मुस्कुराहटों के खजाने
लेकिन जमाने से छुपा कर
थोड़ा सा उपहार दे दे।
प्रेम के मोती पिरों कर
रख सकूं कहीं छिपाकर
देख तुझको मेरी कसम है
वो मोतियों का हार दे दे।
लोग
कहते हैं मसीहा
सारे जग को
देने वाले
ज्यादा नही पर थोड़ा सा ही
मुझको तेरा प्यार दे दे
जी सकें जिसमें तनिक, इक-
छोटा सा संसार दे दे।
दिल को चुराया
आधी बात कही थी तुमने
और आधी मैने भी जोड़ी
तब जाकर तस्वीर बनी थी।
सच्ची-झूठी थोड़ी-थोड़ी।
नटखट सी बातों के पीछे
दुनिया भर का प्यार छुपा
मुस्काती-सी आँखो में भी-
जाने कैसा स्वप्न दिखा
लूट लिया भोला-सा बचपन
मैने भी बस आँखें मूंदी
भूले बिसरे चित्र छुपाए-
समय के टुकड़े आज समेटॆ-
मौन में फिर से गीत सुनाए।
तब जाकर तस्वीर बनी थी
सच्ची-झूठी, थोड़ी-थोड़ी।
एक अजनबी
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा,
क्यूँ कोई दिल में आज मेरे धड़कने लगा…
किससे मिलने को बेचैन है चाँदनी,
क्यूँ मदहोश है दिल की ये रागिनी,
बनके बादल वफ़ा का बरसने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
गुम हूँ मैं एक गुमशुदा की तलाश में
खो गया दिल धड़कनों की आवाज़ में
ये कौन साँस बनके दिल में धड़कने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
हर तरफ फ़िजाओं के हैं पहरे मगर,
दम निकलने न पायें जरा देखो इधर,
जिसकी आहट पर चाँद भी सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
रात के आगोश में फूल भी खामोश है
चुप है हर कली भँवरा हुआ मदहोश है
बन के आईना मुझमें वो सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
ना मैं जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
जब तलक न उसकी खबर ही आयेगी
बनके आँसू आँख से क्यूँ बहने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा।
ये कौन है
ये कौन है जो चुपके से मुस्कुराया है
तेरा चेहरा है या चाँद निकल आया है
फैल रही है खुशबू फ़िजाओं मे तेरी-
आज हवाओं ने भी तेरा पता बताया है
लगे हैं फूलों के मेले शाखों पर ऎसे
कि जैसे परिन्दा नया कोई आया है
मुझसे मिलकर वो खुश तो बहुत होंगे
मै भी हूँ बेचैन जबसे उनका खत आया है
काग भी बोल रहा था मुंडेर पर कब से
घर पे तुम्हारे ये मेहमान कौन आया है
दिल मचल रहा है जाने किस बात से
कि तुमने हमें कैसा दीवाना बनाया है।
प्यार में अक्सर
प्यार में अक्सर दिल बेचैन होता है
किसी की याद में दिल का चैन खोता है।
एक अकुलाहट, बेताबी सी रह्ती है सीने में
एक झुंझलाहट, छ्टपटाहट रहती है जीने में
व्याकुल तन-मन इस कदर अधीर होता है
किसी की याद में दिल का चैन खोता है।
एक रौला, एक हलचल में, होंठ खुले रह जाते हैं
बिन बोले ही बात अधूरी सी कह जाते हैं
बेचैन निगाहों में आसुँओं का सैलाब होता है
किसी की याद में दिल का चैन खोता है।
बन्द पिंजर में पंछी सा मन फड़फड़ाता है
चलते-चलते पथिक राह तक भूल जाता है,
इन्तजार, बेताबी में तिलमिलाना बहुत होता है,
किसी की याद में दिल का चैन खोता है।