दिन धूप में
एक दिन
धूप में
आसमान से उतर कर
एक चिड़िया आएगी
और चोंच मारने लगेगी
कांधे पर
तब मुझे
तुम्हारी याद आएगी
तुम
जो चिड़िया बनकर
एक दिन
आसमान में उड़ गई थीं ।
मुझे अकेला छोड़ ।
शर्त
ममाखियों के घरौंदे में
हाथ डाल
और जान ज़ोख़िम में
लाया हूँ
ढेर सारा शहद
पर एक शर्त है
शहद के बदले में
तुम्हें देना होगा
अपना सारा नमक ।
तुम्हारी मुंडेर पर
आसमान में
उड़ूँगा एक दिन
पतंग बन
कटने के लिए ।
कटूँगा
और गिर पड़ूँगा
सारे ज़माने को धता बताता
तुम्हारी मुंडरे पर ।
तुम नदी
सागर हूँ मैं
आपाद मस्तक खारा ।
तुम नदी ।
मुझे एक बूँद दो
कि मैं प्यास बुझा सकूँ
–मैं युग-युग से प्यासा ।
बनैली हवा
वह
भागती हुई
आती है
दूर जंगल के पार से
और
झूल जाती है
बाँहों में निढाल
हाँफती हुई
सिर टिका क्न्धे पर
गो मैं पहाड़ हूँ
और वह बनैली हवा ।
मेरी अल्हड़ चिर प्रिया
रूठी हुई
वह
मुक्के बरसाती है
मेरे कठोर स्याह सीने पर
बिना बतियाए
एकबारगी लौट जाती है
फिर आती है
लिपट जाती है पाँवों से
पखारती है पाँव
गो मैं चट्टान हूँ
वह समुद्री लहर
मैं प्रेमी हूँ
वह मेरी अल्हड़ चिर प्रिया ।
अकाल-1
आकाश में
जलपक्षी
लगातार भटक रहे हैं
उनके बसेरों का
कहीं कोई अता-पता नहीं
जलपक्षियों की आँखों में रेत
धरती की कथा आँक रही है ।
अकाल-2
जलपक्षी बेचैन हैं
बेतरह बेचैन ।
तलाश में भटकते।
बोझिल थके डैने ।
बोझिल शरीर ।
बोझिल किरकिराती आँखें ।
जलपक्षी लगातार उड रहे हैं
गंदे उदास और बेचैन ।
वे महीनों से नहीं नहाये
उनकी चोंच महीनों से नहीं धुली ।
जलपक्षियों ने
महीनों से मछलियाँ नहीं देखीं ।
मछलियों के तमाम घर
सूखे और वीरान पड़े हैं ।
अकाल-3
दूर-दूर तलक
खोजने पर
एक भी नीला आइना नहीं
नीले आइनों के देश में ।
ऊपर ताको, तो
चंचल सुनहरे धावकों का अता-पता नहीं ।
आइनों के चौखटों में
सिर्फ़ सूखे हाड़ चमचमा रहे हैं ।
अकाल-4
सारी पनचक्कियाँ ख़ामोश हैं
भाटों-भाट खुले
कच्चे मकानों में
गर्म हवा के सिवाय
कोई और नहीं ।
हवेली के
दरवाज़े-खिड़कियाँ बन्द हैं
भीतर बन्द पकते धान की
गंध बाँधने के लिए
हवेली के पास
बादल दुहने की मशीन है ।
काल को भी नहीं पता
तूतनख़ामेन के लिए-1
सदियों सोता रहेगा
तूतनखामेन
सम्राटों की घाटी में
मौन निश्चल
स्वर्णजटित वेदी पर
स्वर्णाभूषणों से लदा-फँदा
सूर्य के आलोक में नहीं,
रत्नों की चकाचौंध में
न हवा की दस्तक
न रोशनी की गुहार
न पंछियों का कलरव
न कोई पदचाप
शताब्दियाँ बीत जाएंगी
सोते हुए तूतन खामेन को
न कोई गाएगा लोरी
न डुलाएगा चँवर
न पहुँचेगा उस तक
प्रभाती का स्वर,
खगों का कलरव,
मुरगे की बांग
सोता रहेगा
तूतन खामेन
पौ फटने
और सूरज उगने के बावजूद
निश्चल, निस्पंद
और अवाक ।
तूतनख़ामेन के लिए-2
जीते जी सपना देखा
तूतनखामेन ने
सुनहरे जीवन का
मरने के बाद चला गया
मक़बरे में
अपने समस्त वैभव के साथ
राजमुद्रांकित द्वारों के
गोपन-कक्ष में
सोता रहा
सोता रहा
तूतनखामेन
शताब्दियों तक
ज़िन्दगी के इन्तज़ार में
और मौत सिरहाने खड़ी
थपकियाँ देती रही
तूतनखामेन के ललाट पर ।
तूतनख़ामेन के लिए-3
सदियों ख़ामोश बहती रही
नील नदी
सदियों बाद
दस्तक दी बेलचों और फावड़ों ने
सदियों बाद
अनावृत किया मजूरों ने
सुनहरा स्वप्नलोक तूतनखामेन का
सदियों पहले
न जागने को सोया था
तूतनखामेन
सदियों बाद
मक़बरे को रौंदा
इन्सानी क़दमों ने
सदियों बाद
हज़ारों की मौजूदगी में
जागा नहीं,
एक बार फिर मरा
पहले से मृत
अभागा तूतनखामेन ।
तूतनख़ामेन के लिए-4
सदियों पहले
ढेर सारी माया
और एक अदद झूठ के साथ
सोया था मक़बरे में
तूतनखामेन
सदियों सोया रहा
निविड़ अंधकार में
धूल में मिल गए राजवंश
वक़्त के घोड़ों ने रौंद डाले सिंहासन
काल के नखों ने चीथ डाला वैभव
पर नहीं जागा
सोता रहा निविड़ अंधकार में
एक करवट तक नहीं बदली
तूतनखामेन ने
शताब्दियाँ आईं,
चली गईं
निश्चल देह के साथ
पलता रहा एक अदद झूठ
सुनो तूतनखामेन !
सुन सकते हो तो सुनो–
अन्तिम नींद के बाद
कभी जागा नहीं करते आदमी
तूतनख़ामेन के लिए-5
मौत आई दबे पाँव
तो आँखें मूंद लीं
तूतनखामेन ने
दुनिया-ज़हान से
मौत है तो ज़िन्दगी नहीं
और ज़िन्दगी है तो
मौत की क्या बिसात ।
सब कुछ था
पर यह सच न था
तूतनखामेन के अपने खजाने में
ज़िन्दगी भर आँखें खोलकर भी
सबसे बड़े सच से
आँखें मींचे रहा
तूतनखामेन ।
तूतनख़ामेन के लिए-6
तुम जिए
और ज़िन्दगी जी तुमने भरपूर
ज़िन्दगी की
आँखों में आँखें डालकर
जिए आज में
और सोची कल की
भूलकर
कि काल को भी नहीं पता
कल का पता-ठिकाना ।
तूतनख़ामेन के लिए-7
काल ने नहीं,
प्रजा ने नहीं,
न बंधु-बांधवों ने
पुरोहितों ने तुम्हें छला
तुम्हें
तूतनखामेन
सबक किसी ने नहीं लिया
न तुमने
न तुम्हारे पुरखों ने
इतिहास पढ़कर भी नहीं सीखा
इतिहास का सबक
सब मक़बरे चिनाते रहे
खाली करते रहे टकसाल
और खजाने
तुम सो गए
सदियों के लिए नहीं,
सदैव के लिए
न जागने को अभिशप्त
तूतनखामेन
तुम कुछ भी नहीं हो फिलवक़्त
फ़कत धरोहर हो इतिहास की
जैसे मृदभाण्ड,
पुराने ठीकरे,
पुरातन पाण्डुलिपियाँ,
भग्नावशेष अथवा जीवाश्म ।
तूतनख़ामेन के लिए-8
जितना जीना हो
जी लो
तूतनखामेन
होठों से लगा
खाली कर दो चषक
रमण कर लो
जी भर सुन्दरियों से
निहार लो
आँख-भर वैभव सॄष्टि का
दौड़ा लो रथ
दिग-दिगन्त में
कर लो आखेट
काल के आखेट से पहले
तूतनखामेन !
मौत आएगी तो
पलक झपकाने को तरस जाओगे
तुम हमेशा-हमेशा के लिए
सो जाओगे गाढ़ी नींद
देख नहीं सकोगे
किसी दिशा में
मगर तुम्हें निस्सहाय, निश्चल, निर्वाक
देखेंगी दसों दिशाएँ ।
तूतनख़ामेन के लिए-9
आँखें हैं,
पर अन्धा है,
जुबान है,
पर गूंगा है
एक जोड़ कानों के बावजूद
बहरा है
तूतनखामेन
मक्खी तक नहीं मार सकता
न हुकुम दे सकता है,
न ताली बजा गुलाम को बुला सकता है
तूतनखामेन
सदियों पहले सपना देखा था तूतनखामेन ने–
जिऊंगा फिर से जीवन
सदियाँ बीत गईं ।
लोग कहते हैं–
तूतनखामेन क़ैद है
पत्थरों की क़ैद में ।
ग़लत कहते हैं लोगबाग
सौ फ़ीसदी ग़लत
पत्थर हो गए
मृत सपनों
और इच्छाओं की क़ैद में
क़ैद है तूतनखामेन ।
तूतनख़ामेन के लिए-10
तूतनखामेन नहीं,
सब कुछ क़ैद है वहाँ
हवा,
रोशनी,
और गंध ।
तूतनखामेन नहीं,
सब कुछ मुर्दा है वहाँ
हवा,
रोशनी,
और गंध ।
जागेगी एक दिन हवा,
जागेगी रोशनी,
जागेगी गंध ।
बस,
सोता रह जाएगा
जागेगा नहीं
एक अकेला तूतनखामेन ।
चिरंतन
जब भी हम भरते हैं
मुट्ठी में रेत,
मुट्ठी की रेत से ज़्यादा रेत
नीचे छूट जाती है,
वसुन्धरा ।
अनुपात
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी है
अगर है वहाँ ढेर सारा क्षार ।
मगर,
क्या कहना ज़िन्दगी का,
अगर वहाँ हो ढेर सारा क्षार
और थोड़ा-सा तेज़ाब ।