कविता – 1 जिन घरों की दीवारों पर रंग नही होते वहाँ दो चार मुरझाए हुए से फूलों में कैद…
पहली बारिश की बून्दों-सा नई बहू घर में आई है बन्दनवार लगे चीज़ों से जुड़ना बतियाना पीछे छूट गया पहली…
अब नहीं यह विलंबित अर्थच्युत स्वीकार राघव, अब नहीं। हिल गये मन के सभी आधार राघव, अब नहीं! ओ धरित्री…
बात पते की अम्माँ, अम्माँ मुझे बताना, ‘‘क्या सच है जो कहती दादी, बिन हथियार उठाए सचमुच क्या बापू ने…
हल्ला-गुल्ला एक आम का पेड़, लगा था उस पर बहुत बड़ा रसगुल्ला, उसे तोड़ने को सब बच्चे मचा रहे थे…
ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है काल से ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है काल से…
चाय प्रेम से सीझा एक प्रेम गीत अच्छी चाय कहीं फ़ुर्सत से चलकर पीते हैं चीविंगम चुभलाते मुँह का टेढ़ा-मेढ़ा…
यादराम 'रसेंद्र' मम्मी से यों रोकर बोली- मेरी जीजी नंदा- जाऊँगी स्कूल तभी, जब दिखला दोगी चंदा! मम्मी बोली-चुप रह…
हम अपनी पुश्त पर खुली बहार ले के चल दिए हम अपनी पुश्त पर खुली बहार ले के चल दिए…
आतिश-ए-ग़म में भभूका दीदा-ए-नमनाक था आतिश-ए-ग़म में भभूका दीदा-ए-नमनाक था आँसुओं में जो ज़बाँ पर हर्फ़ था बेबाक था चैन…