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बराबर उसके कद के यों मेरा कद हो नहीं सकता

बराबर उसके कद के यों मेरा कद हो नहीं सकता
वो तुलसी हो नहीं सकता मैं बरगद हो नहीं सकता

मिटा दे लाँघ जाए या कि उसका अतिक्रमण कर ले
मैं ऐसी कोई भी कमजोर सरहद हो नहीं सकता

जमा कर खुद के पाँवों को चुनौती देनी पड़ती है
कोई बैसाखियों के दम पे अंगद हो नहीं सकता

लिए हो फूल हाथों में बगल में हो छुरी लेकिन
महज सम्मान करना उसका मकसद हो नहीं सकता

उफनकर वो भले ही तोड़ दे अपने किनारों को
रहे नाला सदा नाला कभी नद हो नहीं सकता

ख़ुशी का अर्थ क्या जाने वो मन कि शांति क्या समझे
बिहंसता देख बच्चों को जो गदगद हो नहीं सकता

है ‘भारद्वाज’ गहरा फर्क दोनों के मिज़ाज़ों में
मैं रूमानी ग़ज़ल वो भक्ति का पद हो नहीं सकता

उनके माथे पर अक्सर पत्थर के दाग रहे

उनके माथे पर अक्सर पत्थर के दाग रहे
जो इमली अमरूदों आमों वाले बाग़ रहे

उन कदमों को पर्वत या सागर क्या रोकेंगे
जिनकी आँखों में पानी सीने में आग रहे

अँधियारे आँगन में रहतीं सपनों की किरणें
जैसे पूजा घर में जलता एक चिराग रहे

कुछ उजले महलों में रहकर भी काले निकले
कुछ काजल की कोठी में रहकर बेदाग़ रहे

केवल हाथ मिलाने भर से खून हुआ नीला
उनकी आस्तीन में अक्सर ज़हरी नाग रहे

साँसों की रथयात्रा हरदम रहती है जारी
जीवन की पीछे चाहे जितने खटराग रहे

इतनी ‘भारद्वाज’ रही प्रभु से विनती अपनी
सिर पर छाँव रहे न रहे पर सिर पर पाग रहे

हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ से शिकायत भी नहीं कोई

वसीयत भी नहीं कोई विरासत भी नहीं कोई
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ से शिकायत भी नहीं कोई

रहा खुद पर भरोसा या रहा है सिर्फ ईश्वर पर
सिवा इसके हमारे पास ताकत भी नहीं कोई

मिले बस चैन दिन का और गहरी नीद रातों की
हमें अतिरिक्त इसके और चाहत भी नहीं कोई

खड़ा है कठघरे में सिर्फ अपना सच गवाही को
हमारे पक्ष में करता वकालत भी नहीं कोई

करे जो दूध का तो दूध पानी का करे पानी
बिके सब हंस अब उनमें दयानत भी नहीं कोई

हवा का देख कर रुख लोग अपना रुख बदलते हैं
हवा को ही बदल दे ऐसी हिकमत भी नहीं कोई

हमारे नाम का उल्लेख ‘भारद्वाज’ हो जिसमें
कहानी भी नहीं कोई कहावत भी नहीं कोई

 

तमन्ना थी कि हम उनकी नज़र में खास बन जाते

तमन्ना थी कि हम उनकी नज़र में खास बन जाते
कभी उनके लिए धरती कभी आकाश बन जाते

अगर वे प्यास होते तो ह्रदय की तृप्ति बनते हम
अगर वे तृप्ति होते तो अधर की प्यास बन जाते

समय की चोट से आहत ह्रदय यदि टूटता उनका
परम विश्वास बनते या चरम उल्लास बन जाते

भिगोती जब किसी की याद पलकों के किनारों को
उमड़ते प्यार में डूबा हुआ अहसास बन जाते

समय की चाल पर जो ज़िन्दगी की हारते बाजी
जिताने के लिए उनको तुरुप का ताश बन जाते

पड़े होते अगर वीरान में बनकर कहीं पत्थर
वहाँ हर ओर उनके हम मुलायम घास बन जाते

दिखाई हर तरफ उनको ये ‘भारद्वाज’ ही देता
बिठा कर केंद्र में उनको परिधि या व्यास बन जाते

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