Skip to content

वेदना ओढ़े कहाँ जाएँ

वेदना ओढ़े कहाँ जाएँ!
उठ रहीं लहरें अभोगे दर्द की!
कैसे सहज बन मुस्कुराएँ!!

रुँधा है कंठ
कैसे गीत में उल्लास गाएँ!
टूटे हाथ जब
कैसे बजाएँ साज़,

सन्न हैं जब पैर

कैसे झूम कर नाचें व थिरकें आज!

खंडित ज़िंदगी —

टुकड़े समेटे, अंग जोड़े, लड़खड़ाते
रे कहाँ जाएँ!

दिशा कोई हमें
हमदर्द कोई तो बताए!

अपना बसेरा छोड़ कर

अपना बसेरा छोड़ कर
अब हम कहाँ जाएँ?
नहीं कोई कहीं —
अपना समझ
जो राग से / सच्चे हृदय से

मुक्त अपनाए!

देखते ही तन
गले में डाल बाहें झूम जाए,
प्यार की लहरें उठें
जो शीर्ण इस अस्तित्व को
फिर-फिर समूचा चूम जाए!
शेष, हत वीरान यह जीवन
सदा को पा सके निस्तार,
ऐसी युक्ति कोई तो बताए!

बेहद ख़ूबसूरत थी हमारी ज़िन्दगी

बेहद खूबसूरत थी हमारी ज़िंदगी;
लेकिन अचानक एक दिन
यों बदनुमा … बदरंग कैसे हो गयी?
भूल कर भी;
जब नहीं की भूल कोई
फिर भुलावों-भटकनों में
राह कैसे खो गयी?

रे, अब कहाँ जाएँ,
इस ज़िंदगी का रूप-रस फिर
कब … कहाँ पाएँ?
अधिक अच्छा यही होगा
हमेशा के लिए
चिर-शांति में चुपचाप सो जाएँ!

पछतावा ही पछतावा है!

पछ्तावा ही पछ्तावा है!
मन / तीव्र धधकता लावा है!
जब-तब चट-चट करते अंगारों का
मर्मान्तक धावा है!

संबंध निभाते,
अपनों को अपनाते / गले लगाते,
उनके सुख-दुख में जीते कुछ क्षण,
करते सार्थक रीता जीवन!
लेकिन सब व्यर्थ गया,
कहते हैं — होता है फिर-फिर जन्म नया,
पर, लगता यह सब बहलावा है!

सच, केवल पछ्तावा है!
शेष छ्लावा है!

Leave a Reply

Your email address will not be published.