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सुन्दरकुवँरि बाई की रचनाएँ

आज्ञा लहि घनश्याम का चली सखा वहि कुंज

आज्ञा लहि घनश्याम का चली सखा वहि कुंज।
जहाँ विराज मानिना श्री राधा-मुख पुंज॥
श्री राधा मुख-पुंज कुंज तिहि आई सहचरि।
वह कन्या को संग लिये प्रेमातुर मद भरि॥
कहत भई कर जोर निहोरन बात सयानिनि।
तजहु मान अब मान मो राखहु मानिनि॥

प्रिय के प्रान समान हो सीखी कहाँ सुभाय

प्रिय के प्रान समान हो सीखी कहाँ सुभाय।
चख-चकोर आतुर चतुर चंद्रानन दरसाय॥
चंदानन दरसाय अरी हा! हा! है तोसों।
वृथा मान यह छोड़ि कही पिय की सुनि मासों॥
सूधै दृष्टि निहारि प्रिया सुनि प्रेम पहेली।
जल बिन झष अहि-मणि जुहीन इन गति उन पेली॥

श्री बृषभानु-सुता मन-मोहन जीवन प्रान अधार पियारी 

श्री बृषभानु-सुता मन-मोहन जीवन प्रान अधार पियारी।
चन्द्रमुखी सुनिहारन आतुर चातुर चित्त होकर बिहारी॥
जा पद-पंकज के अलि लोचन स्याम के लोभित सोभित भारी।
हौं बलिहारी सदा पग पै नव नेह नवेला सदा मतवारी॥

मेरी प्रान-सजीवन राधा

मेरी प्रान-सजीवन राधा।
कब तो बदन सुधाधर दरसै यों अँखियन हरै बाधा॥
ठमकि ठमकि लरिकौहीं चालन आव सामुहे मेरे।
रस के वचन पियूष पोप के कर गहि बैठहु मेरे॥
रहसि रंग की भरी उमंगनि ले चल संग लगाय।
निभृत नवल निकुंज विनोदन विलसत सुख-दरसाय॥
रंगमहल संकेत जुगल कै टहलिन करतु सहेली।
आज्ञा लहौं रहौं लहँ तटपर बोलत प्रेम-पहेली॥
मन-मंजरो जु कीनन्हों किंकरि अपनावहु किन बेग।
सुन्दरकंवरि स्वामिनी राधा हित की हरौ उदेग॥

त्राहि त्राहि बृषाभानु-नंदिनी तोकों मेरो लाज 

त्राहि त्राहि बृषाभानु-नंदिनी तोकों मेरो लाज।
मन-मलाह के परी भरोसे बूड़त जन्म-जहाज॥
उदधि अथाह थाह नहिं पइयत प्रबल पवन की सोप।
काम, क्रोध, मद, लोभ भयानक लहरन को अति कोप॥
असन पसारि रहे सुख तामहिं कोटि आह से जेते।
बीच धार तहँ नाव पुरानी तामहिं धोखे केते॥
जो लगि सुर मग करै पार यहि सो केवट मति नीच।
वही बात अति ही बौरानी चहत डुबोवन बीच॥
याको कछु उपचार न लागत हिया हीनत है मेरो।
सुन्दरकंवरि बाँह, गहि स्वामिनि एक भरोसो तेरो॥

कहत श्याम मेरे नहीं तुम बिन कोऊ आन

कहत श्याम मेरे नहीं तुम बिन कोऊ आन।
प्रानहु है प्यारी प्रिया काहि करत हौ मान॥
काहि करत हौ मान चलहु पिय संग बिहारौ।
राधा राधा मंत्र नाम वे रटत तिहारौ॥
नायक नन्दकुमार सकल सुभ गुन के सागर।
तिनसौ मान निवार बहुत बिनवत सुनि नागर॥

उतै अकेले कुञ्ज में बैठे नन्द किसोर

उतै अकेले कु´्ज में बैठे नन्द किसोर।
तेरे हित सज्जा रचत विविध कुसुम दल-जोर॥
विविध कुसुम दल-जोर तलप निज हाथ बनावत।
करि करि तेरो ध्यान कठिन सों छिनन बिहावत॥
जाके सब आधीन सुतो आधीनौ तेरे।
जिहिं मुख लजि ब्रज जियत वहै तो मुख रुख हेरे॥v

सुन्दर स्याम मनोहर मूरति श्रीव्रजराज कुंवर बिहारी

सुन्दर स्याम मनोहर मूरति श्रीव्रजराज कुंवार बिहारी।
मोर पखा सिर गुंज हरा बनमाल गरे कर बंसिका धारी॥
भूषन अंग के संग सुशोभित लोभित होत लखैं ब्रजनारी।
राधिका-बल्लभ मो दृग-गेह बसौ नवनेह रहौं मतवारी॥

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