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सोचना ही फ़ज़ूल है शायद

सोचना ही फ़ज़ूल है शायद
ज़िन्दगी एक भूल है शायद

हर नज़ारा दिखाई दे धुँधला
मेरी आँखों पे धूल है शायद

इक अजब -सा सुकून है दिल में
आपका ग़म क़ुबूल है शायद

दिस्ती प्यार दुश्मनी नफ़रत
यूँ लगे सब फ़ज़ूल है शायद

किस क़दर चुभ रहा हूँ मैं सबको
मेरे दामन में फूल है शायद

मैं तो मसरूफ़ किताबों में रहा

मैं तो मसरूफ़ किताबों में रहा
वो उधर अपने हिसाबों में रहा

साँस लेने की इजाज़त क्या मिली
यूँ चला जैसे नवाबों में रहा

ज़िन्दगी उसकी जहन्नुम ही रही
अमल के वक़्त जो ख़्वाबों में रहा

उससे बिछ्ड़ा तो कई रूप मिले
बूँद था जब मैं सहाबों में रहा

लाख चेहरे से उतारे पर्दे
आदमी फिर भी नक़ाबों में रहा

कामयाबी तो मुक़द्दर में रही
गो कि अक्सर मैं दो नावों में रहा

घर मेरा लूट के सब चल भी दिए
और मैं अपने सवाबों में रहा

ज़िन्दगी में हमें रावण ही मिले
राम का ज़िक्र किताबों में रहा

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